Today a total of nine PWS attended the meeting. The meeting started with a silence for two minutes. Then a formal introduction was given about every PWS stating his name,occupation and address.
Celebration of our diversity! Better attitudes through knowledge! A community dedicated to self-help.
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October 20, 2013
Delhi SHG Meeting - Naya Savera.......
Today a total of nine PWS attended the meeting. The meeting started with a silence for two minutes. Then a formal introduction was given about every PWS stating his name,occupation and address.
June 12, 2013
मेरा कम्फोर्ट जोन!
आज सुबह एक पुराने मित्र का कई दिन बाद फोन आया। मैं अपने कमरे पर था। आदत के मुताबिक कमरे से बाहर जाकर बात करना चाहता था, लेकिन बाहर जाने का समय नहीं था, इसलिए अन्दर ही फोन रिसीव किया। पांच मिनट तक बात की। बाउंसिंग, प्रोलांशिएशन और पाजिंग तकनीक का इस्तेमाल किया। काल खत्म होने पर मैंने पाया कि एकदम सही तरीके से हकलाहट पर नियंत्रण रखकर बात कर पाया।
April 6, 2013
अच्छी कोशिशों का नाम ही जिन्दगी है...
मेरे घर के पास एक सज्जन रहते हैं। वे इस समय थोडा मानसिक रूप से बीमार हैं। रास्ते में जब भी कोई मिलता है, हर किसी से मुस्कुराकर नमस्ते करते है। मुझसे भी हमेशा नमस्ते करते है, जबकि मैं उनसे परिचित नहीं हूं। शायद वे मानसिक अवस्था ठीक नहीं होने के कारण ऐसा करते हैं। उनका ऐसा करना यह सोचने पर मजबूर करता है कि एक मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति भी एक अच्छी कोशिश कर रहा है, समाज के लोगों से जुडने की, उनसे बात करने की। इस व्यकित को इस बात की न तो चिन्ता है कि लोग क्या कहेंगे, और नही डर।
हम हकलाने वाले अक्सर इस डर से बात करने में कतराते हैं कि लोग क्या कहेंगे? इस दुविधा में हम बातचीत करने और बोलने के कई सुन्दर अवसर खो देते है। यह बहुत कुछ ऐसा है कि हमने बिना कुछ किए ही उसके परिणाम से डरकर खुद को समाज से अलग कर लिया। वास्तव में हम जब तक कोशिश नहीं करेंगे, तब तक किसी को सपना तो आता नहीं कि वह खुद जान जाएगा कि हम हकलाते हैं, और हमसे बात करेगा, हमारी मदद करेगा।
एक दिन मैं अपने आफिस में अपने सहकर्मियों से बात कर रहा था, तब एक सहकर्मी ने कहा कि जब आप बात करते हैं, तो आपकी आंखें बन्द क्यों होने लगती हैं? मैंने बडी बेबाकी से उन्हें उत्तर दिया - सर, मैं बोलने में हकलाता हूँ। और जानते हैं इस पर उन्होंने किसी भी प्रकार कि नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी। यानी कई लोगों के लिए हमारा हकलाना ज्यादा मायने नहीं रखता। हम हकलाने वाले खुद ही इसे इतना ज्यादा महत्व देने लगते हैं कि अपना जीवन और अच्छी कोशिशें करना भूल जाते हैं।
जरा कल्पना कीजिए, उस मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति की जिसमें इतनी जागरूकता तो है कि वह लोगों का अभिवादन करता है, वह भी मुस्कुराकर। यह हमें सिखाता है कि हम जीवन के कितने ही बुरे दौर में हों, कितनी ही चुनौतियों का सामना कर रहे हों, हमेशा अच्छे प्रयास लगातार करते रहें।
- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
मो- 09300939758
February 12, 2013
जो डूबा सो पार . . . !
नया जॉब ज्वाइन करने के बाद मैं अपनी हकलाहट को लेकर बहुत परेशान था की कैसे इतने सारे स्कूल्स में जाकर टीचर्स से बात करूँगा? दो-चार दिन तक तो आफिस में वर्क करता रहा लेकिन फील्ड में तो जाना ही था। बहुत संकोच करते हुए मैं पहली बार एक प्राइवेट स्कूल में गया। थोड़ी-सी रुकावट के बाद मैं वहां पर सार्थक ढंग से बोल पाया और अपना काम कर पाया। इसके बाद मेरे अन्दर आत्मविश्वास जाग आया। मैं धीरे-धीरे सरकारी स्कूल में जाने लगा और अब तक मैं पचास से ज्यादा जगहों पर जा चुका हूँ। हर बार एक नया और अच्छा अनुभव रहा है। हकलाहट के कारण कोई खास समस्या अब तक मुझे नहीं आई। मैंने अपनी हकलाहट को छुपाने की नाकाम कोशिश नहीं की।
ऐसा ही एक और वाकया हुआ। एक बार आफिस के काम से एक अनजान व्यक्ति से पहली बार फ़ोन पर बात करना था। मैंने हिम्मत की और फोन लगाया। कुछ रुकावट के साथ मैंने उस व्यक्ति से पूरी बात की। मैं अपने आफिस पर आने वाले लोगों से खुद आगे होकर मिलता हूँ, उनसे बात करता हूँ।
इससे मैं यह जान पाया की हकलाहट का सही अर्थों में सामना करने के लिए हमें सारी शर्म और डर को भुलाकर बाहर निकलना होगा और बातचीत करनी होगी। जिस प्रकार हम पानी में उतरे बिना, उसमें डूबे बिना पार नहीं जा सकते वैसे ही हम जब तक बाहर नहीं जाएंगे, लोगों से मिलेंगे नहीं, उनसे बात नहीं करेंगे तब तक हकलाहट से पार पाना मुश्किल है।
मेरी एक महिला सहकर्मी लोगों से बात करने में संकोच करती हैं, फ़ोन पर भी बात करना होता है तो मुझे ही कहती हैं, जबकि उन्हें हकलाहट की कोई समस्या नहीं है। इससे मैं यह जान पाया की हम हकलाने वालों के अलावा दूसरे लोग भी अकसर बात करने में संकोच करते हैं। बस हर हाल में जरूरी है थोड़ी सी हिम्मत और धैर्य की . . . !
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- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
0 9 3 0 0 9 - 3 9 7 5 8
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