3-5 अक्टूबर 2014 को खण्डाला (पुणे) में सम्पन्न टीसा की नेशनल कान्फ्रेन्स में शामिल होने का शुभ अवसर मुझे भी प्राप्त हुआ। यह एन.सी. मेरे लिए बहुत ही यादगार और रोचक अनुभवों से भरी रही। हकलाहट के साथ ही संचार और जीवन के कई अनछुए पहलुओं को नजदीक से देखने, जानने, समझने और महसूस करने का अद्भुत मौका मिला। 100 से अधिक हकलाने वाले व्यक्तियों को एकसाथ देखना वाकई किसी भी हकलाने वाले के लिए आश्चर्य और सुखद अनुभूतियों का गवाह पल हो सकता है। मैंने हाल के कुछ दिनों में कई पोस्ट के माध्यम से एन.सी. के अपने अनुभवों को आप सबसे साझा किया है। अब मैं कुछ ऐसा शेयर करना चाहता हूं जो मेरे जीवन को एक नई सीख दे गया।
1. एन.सी. में जाने से पहले मैं बड़ी कशमकश की हालत में था। अपने गंभीर रूप से बीमार पिताजी को छोड़कर जाने का सोचकर भी अपराधबोध से ग्रसित हो जाता था। अगर मैं एन.सी. में चला जाउंगा, तो मेरे पापा की देखभाल मेरे परिवार के लोग ठीक से कर पाएंगे या नहीं? कहीं एन.सी. मे जाकर अपने कर्तव्यों से तो नहीं भाग रहा? क्या मैं अपने पिता के साथ अन्याय तो नहीं कर रहा एन.सी. में जाकर? खैर, मैं एन.सी. गया और वापस आकर पाया की सबकुछ पहले की तरह ठीक-ठाक है। मेरे पिता की देखभाल परिवार के लोगों ने अच्छी तरह से करी थी। अक्सर हम लोग अपने परिवार, समाज और देश की जिम्मेदारियां उठाते-उठाते इस भ्रम में जीने लगते हैं, कि अगर मैं नहीं रहूंगा, तो पता नहीं क्या होगा? मुझे सीख मिली की मेरे घर पर नहीं रहते हुए भी पापा की देखभाल हो सकती है।
2. मैं पुणे महानगर के बारे में सोचता था कि वहां पर स्टेशन में बहुत भीड़ होगी। लोकल ट्रेन में तो और भी ज्यादा। उपर से दशहरा का पर्व है। पता नहीं क्या होगा? जब वहां पर पहुंचा तो एकदम उलट था। पुणे स्टेशन पर भीड़ बहुत कम थी और लोकल ट्रेन में भी कोई दिक्कत नहीं हुई। इससे यह सीख मिली की किसी भी स्थान/जगह को देखे बिना, जाने बिना, पूर्वाग्रह पालना, सोच लेना की ठीक नहीं होगा, यह गलत है।
3. हकलाने वाले व्यक्ति चाहे भारत के हों या अमेरिका के सबके जीवन की चुंनौतियां और अनुभव एक जैसे ही हैं। अक्सर हम यह सोचते हैं कि विकसित देशों में हकलाने वालों को अधिक भेदभाव या समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता होगा, जबकि यह सच नहीं है। भौगोलिक दूरियां होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता है।
4. हकलाने वाले विदेशी मेहमानों से बातचीत कर यह ज्ञान हुआ कि हकलाहट और भाषा आपको प्रभावी संचार करने, बातचीत करने, मित्र बनाने से नहीं रोक सकती। आप हकलाकर, गलत भाषा यानी किसी भाषा का कम ज्ञान होने पर भी लोगों से संचार कर सकते हैं। सबसे अधिक महत्वपूर्ण आपकी भावनाएं।
5. हकलाने वाली महिलाओं की चुनौतियां भी भारत और अमेरिका में काफी हद तक एक जैसी हैं।
6. विदेशी प्रतिभागी भी हमारी तरह इंसान हैं, कोई दूसरे ग्रह से आए हुए प्राणी नहीं हैं। उनकी भी खानपान की आदतें और दिनचर्या हमारे जैसी ही हैं।
7. यूक्रेन के सिरजे को योग का अभ्यास करते हुए देखकर ऐसा लगा कि भारतीय परम्पराएं योग, ध्यान और प्राणायाम को हमें भी गंभीरता से अपनाना चाहिए।
8. एन.सी. में कई नहीं हकलाने वाले प्रतिभागी भी शामिल हुए। उनसे बातचीत करके जाना कि समाज में हकलाहट के प्रति लोगों में जागरूकता और संवेदनशीलता का प्रसार हो रहा है।
9. टीसा की एन.सी. एक ऐसा मंच है, जहां पर हम खुद अभ्यास करके संचार की बारीकियों को सीखते हैं। हकलाहट को खुलकर स्वीकार करना सीखते हैं। हमें कैसे हकलाहट को अपने जीवन में आत्मसात करना है, हकलाहट के दुःख को, अवसाद को, आनन्द में कैसे बदलना है यह सब स्वयं सीखते है।
10. टीसा का मंच हकलाहट और संचार की बारीकियों को सीखने के साथ ही व्यक्तित्व विकास का भी मंच है। हम यहां पर आकर लोगों से बातचीत करना, शिष्टाचार और अन्य जीवनोपयोगी व्यवहार को सीखते हैं।
11. एन.सी. हमें हर साल भारत में नई जगहों को देखने और जानने का सुन्दर अवसर प्रदान करती है।
12. एन.सी. के दौरान हम कई सामूह अभ्यासों के द्वारा हकलाहट के डर को दूर करने और संचार करने की बातें सीखते हैं।
13. एन.सी. में अगर हम हर साल जाते रहें तो निश्चित ही संचार/संवाद और जीवन के बारे में कई सकारात्मक बातों को सीखते रहेंगे।
14. हम घर से बाहर रहकर भी अपने जीवन के जरूरी कार्य जैसे- सुबह की सैर, ध्यान, प्राणायाम आदि को जारी रख सकते हैं। सिर्फ हममें इच्छाशक्ति होनी चाहिए। मैंने तो चलती ट्रेन में भी आधा घंटे प्राणायाम करने का आनन्द लिया। खण्डाला में दोनों दिन मार्निंग वाक और प्राणायाम किया। बस जरूरत होती है, खुद को स्थान और समय के अनुसार मैनेज करने की।
15. हमें दूसरों की बात को गंभीरतापूर्वक सुनना चाहिए, दूसरों को बोलने का अवसर देना चाहिए। हम दूसरों की बात को धीरज के साथ सुनकर एक अच्छे संचारकर्ता बन सकते है।
16. सभी के साथ मैत्रीभाव, सदभावना और सामान्य शिष्टाचार के नियमों का पालन कर हम दूसरों को आनन्द दे सकते हैं, और खुद भी सुखमय और यादगार अनुभव के साक्षी बन सकते है।
17. चाहे होटल का स्टाफ हो या हकलाने वाले साथी सभी के काम की तारीफ करना और धन्यवाद ज्ञापित करना, यह एक मुख्य अंग है एक सफल संचार का।
और हां, लोनावाला की स्वादिष्ट चिक्की तो भूल ही रहा हूं। जीवन में पहली बार इतनी अच्छी चिक्की खाने और खरीदने का अवसर मिला।
अंत में, पुणे स्वयं सहायता समूह के मुखिया श्री वीरेन्द्र सिरसे जी और सभी साथियों को इस अद्भुत और सुन्दर आयोजन के लिए बधाई, धन्यवाद और साधुवाद।
- अमितसिंह कुशवाह
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758
1. एन.सी. में जाने से पहले मैं बड़ी कशमकश की हालत में था। अपने गंभीर रूप से बीमार पिताजी को छोड़कर जाने का सोचकर भी अपराधबोध से ग्रसित हो जाता था। अगर मैं एन.सी. में चला जाउंगा, तो मेरे पापा की देखभाल मेरे परिवार के लोग ठीक से कर पाएंगे या नहीं? कहीं एन.सी. मे जाकर अपने कर्तव्यों से तो नहीं भाग रहा? क्या मैं अपने पिता के साथ अन्याय तो नहीं कर रहा एन.सी. में जाकर? खैर, मैं एन.सी. गया और वापस आकर पाया की सबकुछ पहले की तरह ठीक-ठाक है। मेरे पिता की देखभाल परिवार के लोगों ने अच्छी तरह से करी थी। अक्सर हम लोग अपने परिवार, समाज और देश की जिम्मेदारियां उठाते-उठाते इस भ्रम में जीने लगते हैं, कि अगर मैं नहीं रहूंगा, तो पता नहीं क्या होगा? मुझे सीख मिली की मेरे घर पर नहीं रहते हुए भी पापा की देखभाल हो सकती है।
2. मैं पुणे महानगर के बारे में सोचता था कि वहां पर स्टेशन में बहुत भीड़ होगी। लोकल ट्रेन में तो और भी ज्यादा। उपर से दशहरा का पर्व है। पता नहीं क्या होगा? जब वहां पर पहुंचा तो एकदम उलट था। पुणे स्टेशन पर भीड़ बहुत कम थी और लोकल ट्रेन में भी कोई दिक्कत नहीं हुई। इससे यह सीख मिली की किसी भी स्थान/जगह को देखे बिना, जाने बिना, पूर्वाग्रह पालना, सोच लेना की ठीक नहीं होगा, यह गलत है।
3. हकलाने वाले व्यक्ति चाहे भारत के हों या अमेरिका के सबके जीवन की चुंनौतियां और अनुभव एक जैसे ही हैं। अक्सर हम यह सोचते हैं कि विकसित देशों में हकलाने वालों को अधिक भेदभाव या समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता होगा, जबकि यह सच नहीं है। भौगोलिक दूरियां होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता है।
4. हकलाने वाले विदेशी मेहमानों से बातचीत कर यह ज्ञान हुआ कि हकलाहट और भाषा आपको प्रभावी संचार करने, बातचीत करने, मित्र बनाने से नहीं रोक सकती। आप हकलाकर, गलत भाषा यानी किसी भाषा का कम ज्ञान होने पर भी लोगों से संचार कर सकते हैं। सबसे अधिक महत्वपूर्ण आपकी भावनाएं।
5. हकलाने वाली महिलाओं की चुनौतियां भी भारत और अमेरिका में काफी हद तक एक जैसी हैं।
6. विदेशी प्रतिभागी भी हमारी तरह इंसान हैं, कोई दूसरे ग्रह से आए हुए प्राणी नहीं हैं। उनकी भी खानपान की आदतें और दिनचर्या हमारे जैसी ही हैं।
7. यूक्रेन के सिरजे को योग का अभ्यास करते हुए देखकर ऐसा लगा कि भारतीय परम्पराएं योग, ध्यान और प्राणायाम को हमें भी गंभीरता से अपनाना चाहिए।
8. एन.सी. में कई नहीं हकलाने वाले प्रतिभागी भी शामिल हुए। उनसे बातचीत करके जाना कि समाज में हकलाहट के प्रति लोगों में जागरूकता और संवेदनशीलता का प्रसार हो रहा है।
9. टीसा की एन.सी. एक ऐसा मंच है, जहां पर हम खुद अभ्यास करके संचार की बारीकियों को सीखते हैं। हकलाहट को खुलकर स्वीकार करना सीखते हैं। हमें कैसे हकलाहट को अपने जीवन में आत्मसात करना है, हकलाहट के दुःख को, अवसाद को, आनन्द में कैसे बदलना है यह सब स्वयं सीखते है।
10. टीसा का मंच हकलाहट और संचार की बारीकियों को सीखने के साथ ही व्यक्तित्व विकास का भी मंच है। हम यहां पर आकर लोगों से बातचीत करना, शिष्टाचार और अन्य जीवनोपयोगी व्यवहार को सीखते हैं।
11. एन.सी. हमें हर साल भारत में नई जगहों को देखने और जानने का सुन्दर अवसर प्रदान करती है।
12. एन.सी. के दौरान हम कई सामूह अभ्यासों के द्वारा हकलाहट के डर को दूर करने और संचार करने की बातें सीखते हैं।
13. एन.सी. में अगर हम हर साल जाते रहें तो निश्चित ही संचार/संवाद और जीवन के बारे में कई सकारात्मक बातों को सीखते रहेंगे।
14. हम घर से बाहर रहकर भी अपने जीवन के जरूरी कार्य जैसे- सुबह की सैर, ध्यान, प्राणायाम आदि को जारी रख सकते हैं। सिर्फ हममें इच्छाशक्ति होनी चाहिए। मैंने तो चलती ट्रेन में भी आधा घंटे प्राणायाम करने का आनन्द लिया। खण्डाला में दोनों दिन मार्निंग वाक और प्राणायाम किया। बस जरूरत होती है, खुद को स्थान और समय के अनुसार मैनेज करने की।
15. हमें दूसरों की बात को गंभीरतापूर्वक सुनना चाहिए, दूसरों को बोलने का अवसर देना चाहिए। हम दूसरों की बात को धीरज के साथ सुनकर एक अच्छे संचारकर्ता बन सकते है।
16. सभी के साथ मैत्रीभाव, सदभावना और सामान्य शिष्टाचार के नियमों का पालन कर हम दूसरों को आनन्द दे सकते हैं, और खुद भी सुखमय और यादगार अनुभव के साक्षी बन सकते है।
17. चाहे होटल का स्टाफ हो या हकलाने वाले साथी सभी के काम की तारीफ करना और धन्यवाद ज्ञापित करना, यह एक मुख्य अंग है एक सफल संचार का।
और हां, लोनावाला की स्वादिष्ट चिक्की तो भूल ही रहा हूं। जीवन में पहली बार इतनी अच्छी चिक्की खाने और खरीदने का अवसर मिला।
अंत में, पुणे स्वयं सहायता समूह के मुखिया श्री वीरेन्द्र सिरसे जी और सभी साथियों को इस अद्भुत और सुन्दर आयोजन के लिए बधाई, धन्यवाद और साधुवाद।
- अमितसिंह कुशवाह
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758
3 comments:
मजा आ गया .. बहुत गहराई मेँ विवेचना की इस बार..
धन्यवाद अमित...
Bahuth khoob.. Dhanyawad.
आषकी कथन शैली को देख कर ऐसा लगता है की हमे अपनी हिंदी पे काम करना शुरू कर ही देना चाहिए ।
धन्यवाद अमित जी
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