July 14, 2014

I said - yes, I am Stammer!

इस साल गर्मी में बिजली ने हम लोगों की हालत खराब कर दी है। जब देखो तब लाइट बंद। मैं बार-बार बिजली कम्पनी के काल सेन्टर पर फोन करके शिकायत करता रहा।

कल जब मैंने शिकायत करने के लिए फोन किया तो काल सेन्टर बैठे युवक ने मुझसे पूछा - क्या, आपको प्रोगांशिएसन में प्राब्लम है? मैंने सहजभाव से उत्तर दिया - हां, मैं बोलने ह-ह-हकलाता हूं। उस युवक ने कहा - कोई बात नहीं।

कुछ साल पहले तक किसी से फोन पर बात करने का सोचकर ही मैं घबरा जाता था। दिल की धडकनें बढ जाती थीं, चेहरा गरम हो जाता था। लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं होता। मैं अपने घर में हर तरह के काम खुद आगे होकर करता हूं। कहीं भी जाना हो, किसी से भी बात करनी हो, सब मैं ही करने की पहल करता हूं।

यह परिवर्तन आया है हकलाहट की स्वीकार्यता के कारण। मैंने हकलाहट को सही तरह से जान लिया, समझ लिया, इसलिए हकलाहट का डर दूर हो गया। अब हकलाहट हो भी जाए तो गम नहीं। किसी के सामने हकलाहट को स्वीकार करने में शर्म नहीं।

श्री तारक गडोदिया जी ने ‘‘स्टैमर डाग’’ नाम से एक नई और रोचक बात को हम सबके सामने रखा है। वास्तव में हम हकलाहट से जितना दूर भागते हैं, वह उतनी ही तेजी से हमारा पीछा करती है।

अब हकलाहट से कोई डर नहीं। सबकुछ सामान्य है। जीवन में नई आशा और विश्वास जागृत हुआ है।

- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758

2 comments:

Satyendra said...

सच - कुत्ते उसी का पीछा करते है जो दूर भाग रहा है डर के....

kumar kundan said...

aap ke is uplabdhi ke liye mai aapko badhai deta hun amit sir..apni prerna dayak anubhav ko isi tarah ham logon ke sath sajha karte rahiye...