February 11, 2014

इंग्लिश इस्पिकिंग कोर्स = टीसा वेबसाइट

आज मैं अपनी शॉप पर था| मेरा साइबर कैफे है| वहा पर रेहान नाम का एक लड़का आता है उसकी उम्र लगभग 16-17 साल होगी|वो नेट यूज करने के लिए आता रहता है| आज कोई गेम की सीडी नहीं चल रही थी तो मुझसे सीडी के बारे में पूछा तो तब पता लगा की वो स्टेमर करता है| बहुत सारी बात हुई और स्टेमरिंग के बारे में भी|  फिर टीसा की बात निकली| पर वेबसाइट खोला तो उसमे सब इंग्लिश में| कोई भी आर्टिकल हिंदी में सामने नहीं दिखा| और उसे इंग्लिश नहीं आती है|

स्टेमरिंग को डील कैसे करना है, इसको कंट्रोल कैसे करना है ये सब मुझे टीसा से पता लगा|

 ये प्रॉब्लम हमारे अन्दर बैठा डर है, बोलने से पहले ही हजार प्रकार की बात सोच लेना की मैं जो बोल रहा हु तो कोई क्या सोचेंगा इसका क्या असर होगा इट्स.. इट्स...| इसका सम्बन्ध फिजिकल या न्युरोजिकल प्रॉब्लम से ज्यादा  मनोविज्ञानिक प्रॉब्लम से होती है| तो इन समस्याओ का समाधान या सीधे कहे की बोलने का डर या झिझक को दूर करना हो तो जानो अपने डर को| लोगो के अनुभवों से जानो की इन लोगो ने इन समस्याओ पर कैसे विजय पायी या नियंत्रण किया| पर हर कोई टीसा के कांफ्रेंस में नहीं जा सकता है पर आजकल हर यंगएज के पास स्मार्टफोन और नेट है जिसमे वो टीसा से आसानी दुसरो के अनुभवो से

इस पर कंट्रोल कर सकते है| लेकिन............ यहाँ पर तो दुर्लभ :-)  भाषा यानि इंग्लिश में लिखे आर्टिकल होते है| जो की अधिकांश भारतीयों को नहीं आती| आपको जानकर आश्चर्य होगा कई भारत की केवल 10.35% आबादी इंग्लिश बोलना जानती है| और इसके उलट 80% आबादी हिंदी का ज्ञान रखती है और 50% पुर्णतः हिंदी को समझती एवं बोलती है| तो बताईये की किस लैंग्वेज में लिखना ज्यादा उपयोगी रहेगा| स्वाभाविक है की हिंदी में| इतना तो गणित का ज्ञान हर किसी में होता है की 10% से बड़ा होता है 80%| इट्स कॉमन सेन्स यार|लेकिन इस आर्टिकल के बारे में कुछ लोगो के मन में एक भ्रम भी है की देश में सभी राज्यों की मातृभाषा हिंदी नहीं है तो वे लोग किस प्रकार समझेंगे हिंदी को, पर हिंदी का ज्ञान देश के मुख्यधारा जुड़े अधिकांश लोगो को है|इनका सोचना कुछ हद तक सही है  बस इतना है की रिमोट एरिया में जैसे असम, आँध्रप्रदेश के पहाड़ी इलाके, कर्नाटक के पहाड़ी इलाको में रहने वाले ठेठ अनपढ़ आदिवासी को हिंदी नहीं समझती है| आपको जानकर आश्चर्य होगा की माननीय मनमोहन सिंह से ज्यादा लोकप्रियता मोदी की क्यों है| क्योकि वे इंग्लिश के बजाये हिंदी में अपने को व्यक्त करते है क्या मोदी को इंग्लिश नहीं आती, वही मान. मनमोहन सिंह जी इंग्लिश में स्पीच की वजह से जनता उनको समझ नहीं पाती है| इंग्लिश तो केवल हाय प्रोफाइल लोगो की भाषा है| आम जनता की भाषा हिंदी है|

चलिए जाते जाते एक बात और मैं कोई हिंदी प्रेमी नहीं की मैं कहू की हम लोगो को अपनी मातृभाषा का का सम्मान करना चाहिए एसा और वैसा| मेरा केवल इतना ही कहना है की टीसा को ज्यादा उपयोगी एवं अधिसंख्य लोगो को सुलभ करना हो तो हिंदी पर बल देना जरुरी होगा|

तो बंद करो इंग्लिश इस्पिकिंग कोर्स!!!

*मुख्यधारा= एसा व्यक्ति जिसका प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक सामाजिक रूप से जुडाव हो|

http://en.wikipedia.org/wiki/List_of_countries_by_English-speaking_population

10 comments:

vishal gupta said...
This comment has been removed by the author.
vishal gupta said...

Anil Ji Google ne blog ke liye Translator nikala jisse aap blog ke content ko kisi bhi akshar me convert kar skte ho. aap chinta mat karo mai Sachin sir se bolkar us translator widget ko activate karwata hu uske baad aap tisa ke blog hindi me aur baaki duniya ki saari language me pad skte ho bahut bahut dhanyawaad aapki baaton se hum sehmat hai. but iska solution yahi hai ki hume dono language ko use karna chahiye aur jiske liye translator best hai.

Satyendra said...

yes Vishal - I am trying to put in that widget - needs some fine tuning - people are welcome to write in Hindi..

Ashish Agarwal said...

Yes....it is good if we can do something to translate the content in hindi as well.

But, anil ji, kya aapko nahi lagta ki jab givernment schools ke andar bhi 6th class se english padhayi jaati hai to humein bhi kam se kam itni angrezi aani chaiye ki angrezi bolni na sahi lekin padhni to ache se aani hi chaiye.Hindi hamari mother tounge hai but angrezi par achi pakad hona aaj ke samay main bahut hi zaruri hai....to kya hamein apni angrezi ka gyan durust karne ki zarurat nahi hai

Unknown said...

agar english ki baat chhod de fir bhi duniya ko ek COMMON language ki jarurat hoti..BY CHANCE that common language is ENGLISH..so we sud not hate english...yes for better communication with aam public we should have more posts in hindi..

Amitsingh Kushwah said...

धन्यवाद अनिल जी। टीसा का ब्लाग हकलाने वाले व्यक्तियों के अनुभवों और विचारों का मंच है। हम सभी हिन्दीभाषियों को ब्लाग पर अधिक से अधिक लिखने का प्रयास करना चाहिए, इससे ब्लाग पर काफी मात्रा में हिन्दी में पठन सामग्री संकलित हो सकेगी।

Amitsingh Kushwah said...

अनिल जी, टीसा के न्यूजलेटर संवाद के सभी अंक टीसा के वेबपार्टल पर अपलोड हैं। इन सभी अंकों में हिन्दी में हकलाहट पर काफी आलेख हैं। आप चाहें तो उनका इस्तेमाल कर सकते हैं या दूसरों को पढ़ने के लिए बता सकते हैं।

Kamal said...

अन्धेरे को हम कयों कोसें
क्यूँ न इक दीप जलाएँ ?

बातों बातों में क्यूँ भरमाएँ
क्यूँ न सौ दीप जलाएँ ?

कमल
(इक उभरता कवि !)

Satyendra said...

I have put the Google translation link on right hand top..
Yes, it is a machine translation and not perfect. BUT, some volunteers can certainly edit that Hindi text and repost it on the blog.
We can also start using a new label "Hindi" for all the Hindi posts, so that Hindi readers can search for Hindi label and see all the Hindi posts at once..
Bottomline is - we the Hindi speakers, will have to volunteer and do all this..No one will come from Managal grah to do this for us..!!

vishal gupta said...

wow Sachin sir!!!!