कुछ
दिन पहले मैं अपने आफिस के कार्य से एक दूसरे आफिस गया था। वहां पर साइन
करते समय क्लर्क ने बड़े आश्चर्य से मुझसे कहा- अरे! आप बाएँ हाँथ से लिखते
हैं? मैंने स्वीकृति में सिर हिलाया। मुझसे अक्सर कुछ लोग इस तरह के सवाल
करते हैं। लोगों को यह देखकर आश्चर्य होता है की मैं बाएँ हाँथ से लिखता
हूँ।
दरअसल,
हमारे समाज में एक व्यक्ति के लिए यह जरूरी समझा जाता है की उसमें वे सारी
कुशलताएँ और योग्यताएं हों जो अधिकतर लोगों में होती हैं, अगर किसी में ये
सब नहीं हों तो सामान्य लोग उसे एक अलग ही नजरिए से देखते हैं।
वास्तव
में यह कतई संभव नहीं की समाज का हर व्यक्ति एक जैसा दिखे। शारीरिक बनावट,
वेशभूषा, रहन-सहन, सामाजिक और आर्थिक स्थिति हर व्यक्ति को एक अलग पहचान
देती है। हकलाना इसी तरह की एक विशेषता है। हम इसे सकारात्मक रूप में लें
तो यह भी बोलने का एक तरीका है, जो दूसरों से थोडा अलग है।
हम
कहीं न कहीं धाराप्रवाह बोलने को अपनी सबसे बड़ी योग्यता मानने की गलती
करते हैं। लेकिन इतिहास में कई सफल लोग हैं, जो धाराप्रवाह नहीं बोल सकते।
बहुत ही कम स्पीड में बोलते हैं। इसलिए हकलाहट को सही सोच के साथ स्वीकार
कर आगे बढ़ना ही बेहतर है।
- अमितसिंह कुशवाह
Mobile No. 093009-39758
3 comments:
Main bhi left hand se likhta hoon
Thats why Amit ji we should excel in our hidden qualities, which shall eventually shadow our speech impediment.
Yes, Professor Loriente also says the same thing in his essay "Transfluency"..
Since society can not cure it, it should allow us to view stammering in a different light: a diversity rather than a disease to be cured at any cost - or to be endured in shame & silence..
Perfect write up..
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