September 24, 2012

जिन्दगी ने मोड़ लिया कैसा ,हमने सोचा नही था कभी ऐसा, आता नही यकीं क्या से क्या हो गया, बदला बदला सा ये जहा हो गया !!!


कॉलेज में कभी senior  से खुल कर बात नही किया | की कही वो मुझसे कुछ पुछ न ले | सेमेस्टर में क्लास स्टार्ट होने के ७-८ दिन बाद ही जाते थे कही इंट्रो न देना पद जाये | मुझे याद नही है की किसी teacher  से कॉलेज में  कभी कोई question  भी पूछे होंगे | कॉलेज में ५० times  तक viva  
हुए होंगे और  ईमानदारी से कहू तो सिर्फ  सॉरी सर बोला है सभी viva में और  आते हुए question  का भी कभी answer  नही दिया |.प्लेसमेंट  स्टार्ट हुआ और मै लखनऊ गया  अपने  कॉलेज फ्रेंड के साथ | सभी के पास रिज्यूमे  था और आँखों में सपने थे | मैंने cv  नही बनाया क्योकि 
मेरा  जाने का मन नही था क्योकि मै डर रहा था की कैसे interview देंगे | नाम तो बताना ही होगा और पता नही क्या क्या पूछेगा | लेकिन मै चला गया | मैंने ट्रेन में cv  बनाई | और सेन्टर पे चला गया लेकिन एंट्री करने से पहले मुझे नाम और डेट ऑफ़ बर्थ बताना था | और ये मेरे बस का नही था अपना नाम और डेट ऑफ़ बर्थ बताना इसलिए मैंने interview  नही दिया और मूवी देखने चला गया | दोस्तों से कह दिया मैंने ३-४ interview face  किया लेकिन हुआ नही | कॉलेज में कंपनी आई और मैंने हॉस्टल में  बैठ कर मूवी देखना सही लगा | इस तरह कॉलेज लाइफ २०११ में समाप्त हो गई और मै अपने घर फरीदाबाद आ गया | घर पे आने के बाद लोग पूछने लगे कही प्लेसमेंट हुआ ? मै बहुत डर डर के रहने लगा | कुछ समझ नही आ रहा था क्योकि एक belief  सिस्टम बन गया था की मै viva  में कुछ बोला नही तो interview  कैसे दे सकता हु | ज्यादा गैप हो गया तो कंपनी में एंट्री कैसे होगी ? किसका जायदा स्कोपे है devloping  का या testing  का ? मैंने कॉलेज में ही अपनी पेर्सोनिलिटी पे क्यों नही ध्यान दिया ? लास्ट इयर मैंने जून में tisa  के बारे में सुना और चंडीगढ़ में workshop  हो रही थी मै attend  करने चला गया | बहुत अच्छा लगा फर्स्ट टाइम पता चला की मै इतना ज्यादा हकलाता हु | बहुत सी techanique सीखी और  उसे चंडीगढ़ में ही छोड़  कर चला आया क्योकि मै उस बौंसिंग को एक्सेप्ट नही कर पा रहा था |  घर पे आने के बाद मैंने  प्रक्टिस नही की | एक बात अच्छी लगी की मुझे वहा पे अपने जैसे लोग मिले | और  मुझे पता चला की हकलाना क्या होता hai |  कुछ टाइम बाद harbatpur में workshop हुई और उसे attend किया |  फिर मै जितना कांफिडेंस गेन किया था वो फरीदाबाद आते आते लिक्क हो गया| मैंने delhi /ncr में interview देना स्टार्ट किया |   लेकिन वहा पे इतना डर जाता था की अपने दोस्तों से बोलता यार मै cv  की सोफ्ट कॉपी pendrive  में लाया हु और अभी प्रिंट करके आता हु  या toilet  का बहाना करके मै वहा से भाग जाता था | फिर मै delhi मीटिंग  से जुडा | मै इसलिए जुडा की मुझे लगा की अगर मीटिंग में रेगुलर जाते है तो मेरा हकलाना ठीक हो जायेगा | मैंने जुलाई , अगस्त , सितम्बर २०११ तक करीब १५ बार से जायदा गया लेकिन interview नही दिया | वही सोफ्ट कॉपी वाला बहाना दोस्तों से करता था | इस प्रकार सभी दोस्तों की जॉब लग गई और मै अकेला रह गया interview देने के लिए | लेकिन इन सब के बाबजूद मै मीटिंग में रेगुलर जाता रहा | मुझे उस समय नही पता चल रहा था की मीटिंग में जाने से क्या फायदा हो रहा है क्योकि मै ३-४ महीने मीटिंग में जाने के बाद भी हकलाना कम नही हुआ था | २२ अक्टूबर को डेल्ही में वोर्क्शोप हुई | और बहुत से लोगो को फ़ोन करके बुलाना पड़ रहा था  | मन में कभी कभी ये आता था की क्यों फालतू में टेंशन ले लिए इससे हमें क्या फायदा हो रहा है | अपने करियर पे फोकस करते तो जॉब भी लग जाती | ऐसा करने से हकलाना ठीक नही होगा | मन  ऐसे क्रियाकलाप  में भाग न लेने के बहुत से तर्क दे रहा था | और मेरे पास बहुत से कारन थे की ऐसे क्रियाकलापों में  भाग लेना चाहिए  था | बहुत लोगो ने कहा की ये सब करके तुम अपने कैर्रिएर से दूर जा रहे हो | ये तब कर सकते हो जब तुम्हारी कही जॉब लग जाये | वो भी सही बोल रहे थे | लेकिन वोर्क्शोप ओर्गानिसे करने का कारन सिर्फ इतना था की हकलाना ठीक हो या ना हो मेरा डर ख़तम हो जाये | और ऐसा हुआ भी मेरा फ़ोन का डर बहुत कम हो गया | और जो मेरा बेलिएफ सिस्टम टूट गया की मै  किसी इवेंट का एक पार्ट नही  हो सकता हु | देर से ही सही अपनी रेस्पोंसिबिलिटी  लेना सिख गया | अभी भी मेरी जॉब नही लगी थी और अभी भी मै दूसरो पे बिस्वास कर रहा था की मेरे इतने जानने वाले है कही ना कही जॉब लगवा देंगे | लेकिन फिर सोचे किसी के रेफेरेंस से भी जायंगे तो भी अपने बारे में बताना पड़ेगा | फिर मै interview देना स्टार्ट किया लेकिन ये सोचकर की आज प्लेसमेंट लेकर ही आना है | और मै दबाव में आकर कुछ भी नही बोल पाता | १७-१८ मीटिंग और ३ वोर्क्शोप अटेंड करने के बाद भी मै interview में बोल नही पा रहा  तो मीटिंग में जाने का कोई फायदा नही है | लेकिन कुछ टाइम बाद महसुश हुआ की मै अब परिस्थति का सामना कर पा रहा हु ना की अवोइड कर रहा हु | दो सन्डे गैप करने के बाद फिर से मीटिंग में जाना स्टार्ट किया | दिकत ये थी की मै interview मै बोल ही नही पा रहा था क्योकि मै ये सोच कर जा रहा था की आज सेलेक्ट होकर आऊंगा | फिर मैंने कुछ interview बिना उम्मीद के दिए की मुझे रेलक्स रहना है और सिर्फ जो कुछ आता है हिंदी में या  इंग्लिश में बस बोलना है ना की सेलेक्ट होना है | और मै बोल लिया | मै सेलेक्ट  नही हुआ लेकिन मुझे ख़ुशी हुई की मैंने  पहली बार उत्तर  दिया | और अपना इंट्रो भी अच्छे से दिया |  मीटिंग में जाने से नए नए लोगो से मिलने पर जो डर लगता है वो कम होता जा रहा था |  कुछ interview देने के बाद लगा की मेरी तैयारी में भी कुछ कमी है और साथ में कोर्से ज्वाइन किया |  मीटिंग  को जब अपने रियल लाइफ से जोड़ कर देखा तो मुझे लगा की यार मै सब कुछ तो कर रहा हु , जो मुझे रियल लाइफ में करनी होती है | जो मै अपने आपको बता रखा था की मै किसी के सामने अपनी बात नही रख सकता , मै जोक नही सुना सकता , मै किसी ऑफिस में नही जा सकता , मै नए लोगो से फ़ोन पे बात नही कर सकता , मुझे कोई हकलाते हुए देख ना ले , मेरी दिकत समजने वाला कोई नही है, मुझे अकेले कही जाने से डर लगता है की कही कुछ पूछना ना पड़ जाये , बस सिर्फ इतनी सी बात थी की मै किसी से बात नही करता था | मीटिंग में मै गया था अपना हकलाना ठीक करने लेकिन मेरी दिकत हकलाने को सही से ना समजने के कारन थी | एक टीम के साथ काम करना सिखा और ये भी सिखा की टीम से कैसे काम कराते है | मार्च स्टार्ट हो गया था और अभी भी मुझे जॉब नही मिली थी | अब यहाँ पे मुझे एक बात क्लेअर हो गई थी की जो कुछ करना है मुझे ही करना है और मै कर सकता हु | और मैंने योगा पे फोकस करना स्टार्ट किया और मीटिंग में जाता रहा | मीटिंग से मैंने टाइम पुन्चुलिटी सिखा | जो जल्दीबाजी  थी बोलने को लेकर वो आज भी है लेकिन मीटिंग में जाने से पहले उस पर कण्ट्रोल नही था लेकिन अब वो कण्ट्रोल आ गया है | पहले मै अपने भावनाओ  में बह जाता था | और कुछ भी गलत होने पे अपने हकलाने को जिमेद्वार कर देता था  लेकिन अब उसे वास्तविक रूप में देख पा रहा हु |  मई स्टार्ट हो गई मेरी जॉब लग गई | कुछ समय बाद मै कोम्फोर्ट जोन में आने लगा की अब क्या मीटिंग में जाना अब तो जॉब लग गई | ऑफिस में कभी कभी फ़ोन उठाना होता था तो वहा पे भी मीटिंग का अनुभव काम आता | लेकिन कुछ समय बाद मुझे लगा की अभी मै प्रैक्टिस बंद करता हु तो वही से स्टार्ट करना पड़ेगा जहा से किया था | और ये नेक्स्ट जॉब के लिए अच्छा होगा की मै अपने इस कमजोरी  पे और वर्क करू | फिर डेल्ही मेम्बर के साथ मिलकर १५ जुलाई को वोर्क्शोप हुई | लगातार मीटिंग में जाने से न्यू कंपनी में भी जायदा दिकत नही हुई क्योकि मीटिंग के टच में था आसानी से अडजस्ट कर लिया | मीटिंग का अनुभव इवेंट में काम आया जो कुछ टाइम पहले मैंने पोस्ट लिखा था | मै एक बार फिर से interview की तरफ फोकस करना चाहता  था| क्योकि मै  कन्फुज  था की हकलाने को अपनी सीवी में लिखे की नही ? 
मेरे ऑफिस की टाइमिंग १२.३० से ८ .३० है | इसलिए मै डेली एक interview  दे रहा हु | और मैंने अपनी चार टाइप की सीवी बना रखी है | फर्स्ट सीवी में हकलाने को नेगटिव पॉइंट में रखे है  दूसरी सीवी में पोसिटिव पॉइंट में रखे है | और तीसरी सीवी में हकलाने को मीटिंग और वोर्क्शोप के थ्रो एक्स्ट्रा कर्रिकुलर में और फौर्थ सीवी में  हकलाने को नही बताये है | और इस एक्सपेरिमेंट में मेरे पास तीन जॉब के ऑफर आ गए है | 
और हा मैंने एक्स्सल शीत पे डेल्ही, नॉएडा गुडगाँव की सभी सॉफ्टवेर कंपनी की लिस्ट तैयार करके उनको फ़ोन करता हु की आपके यहाँ इस पर्टिकुलर जॉब की जगह खाली है क्या ? वो कहते है हा तो मै कहता हु की interview के लिए कब आऊ | कुछ कंपनी वाले interview में कहे भी पहले आपको नौकरी .कॉम , पे अप्लाय करना चाहिए |  मैंने कहा सर वैसे तो सभी करते है मै कुछ नया करना चाहता हु | हो सकता है की ये तरीका ना हो लेकिन एक्सपेरिमेंट करने में क्या जाता है ? मै सिर्फ इतना ही कहना चाहता हु मीटिंग ना जाने के बहुत से कारन हो सकते है लेकिन  मीटिंग जाने का सिर्फ एक ही कारन हो सकता है हमें उम्मीद से ज्यादा मिलेगा बस थोरा सा वेट करना पड़ेगा | 

      जिन्दगी या कैर्रिएर की जंग में सिर्फ वे ही नही जीतते जो TALENTED  होते है | जीतते वो भी जिसे यकीं है की वो जीत जायंगे |
                                                                                                                                                    
                                                                                                                               थैंक्स माय तीसा फॅमिली 

4 comments:

Satyendra said...

Beautiful!
Abhishek, other "techniques" may or may not work but two TISA techniques- Courage and Honesty always work. You have proved this. Thank you and keep on writing. You may be changing lives of many young pws among our readers..

अरे भैय्या - तू कमाल कर देहला..जुग जुग जिया..

प्रभु ! कृपा हि केवलम् said...

ABHISEK BHAI, AAPKA BLOG PD KR AISA LGA , JAISE AAPNE MERI KAHAANI CHURA LI HO, (MAINLY COLLEGE ME AND CAMPUS INTERVIEWS ME MAINE BHI AISA HI KIYA THA).
THANKS TO TISA-JISNE IN SOONEE AANKHO ME HAZAARO SPNE BHAR DIYE.

प्रभु ! कृपा हि केवलम् said...
This comment has been removed by the author.
J P Sunda said...

Bahut badiya Abhishek...I asked you to share your story and you wrote it so promptly..Tum to pake professional ban gaye ho...and yes you are right - the benefit of attending SHG meetings regularly are UNIMAGINABLE...I don't think anyone can figure it out unless they ATTEND the meetings regularly..BTW you have touched many lives in last one year by arranging so many SHG meetings and workshops in Delhi..thanks from all of us in TISA :-)