नमस्कार मित्रो।
में अपनी हकलाहट की कहानी को 3 पात्रों में विभाजित करके आप लोगो के सामने पेश कर रहा हु।
पात्र-1विलेन(हकलाहट)
2 कलाकार(बॉउंसिंग/परलोंग)
3 दर्शक (जिसके सामने में हकलाता हु)
में पिछले 25 वर्षो से अपने अंदर एक वयक्ति को लेकर बेठा था।जीसे में विलेन समझ रहा था पर tisa से जुड़ने के बाद पता चला वास्तव में वो विलेन न होकर एक बेहतर कलाकार हे।बस जरुरत हे उसे पहचान कर सही रूप देने की।पर सबसे बड़ी चुनोती थी उस 25 वर्ष पुराने विलेन को दर्शको के सामने कलाकार के रूप में कैसे पेश किया जाया।उस समय मेरी सोच ही थी जो मुझे अपने अंदर बेठे विलेन को कलाकार के रूप में बदलने में मेरा साथ दे रही थी।कलाकार वाही हे जो लोगो को हँसाने के साथ साथ खुद भी हस सके।विलेन के साथ जीने से बीते 25 वर्षो में मुझे नहीं लगता हे की में कभी हँसा हु।पर कलाकार के साथ जीने से मुझे भी हँसने का उतना ही मौका मिलाता हे जितना मेरे सामने वाले दर्शक को।मेनेअपने 25 वर्षो के अनुभव में देखा हे की जब मेंअपनी हकलाहट को विलेन बनाकर जीता था तो वो वह अंदरुनी चोट बनकर दील और दिमाग के सहारे मेरे अवचेतन मन में काफी पीड़ा देती थी।और पीड़ा भी ऐसी जो न किसी को बता सकता ना छुपा सकता।और उस चोट के ऊपर सामने वाले की हँसी जले पर नमक का काम करती थी।और वह नमक उस चोट को और गहरा बनाता जाता।अब अपने आप में थोडा बदलाव करके अपने अंदर बेठे विलेन को कलाकार बनाकर कर अपनी चोट को लोगो को बताना सिख रहा हु।जिससे पता चला की उस विलेन से कही बेहतर हे कलाकार बन कर जीना।और विलेन अभी भी मेरे अंदर बेठा हे और वो मेरे अंदर बेठे कलाकार की की तुलना में बड़ा भी हे।पर हिंदी फिल्मो की तरह अंत में जीत कलाकार की ही होती हे।और मुझे भी पूरा विश्वास हे की मेरे अंदर बेठे विलेन का धीरे धीरे अंत होगा और मेरा कलाकार मेरे आने वाले दिनों को मुझे बेहतर ढंग से जीना सिखायेगा।
धन्यवाद
संजय राठौर
9827396355
में अपनी हकलाहट की कहानी को 3 पात्रों में विभाजित करके आप लोगो के सामने पेश कर रहा हु।
पात्र-1विलेन(हकलाहट)
2 कलाकार(बॉउंसिंग/परलोंग)
3 दर्शक (जिसके सामने में हकलाता हु)
में पिछले 25 वर्षो से अपने अंदर एक वयक्ति को लेकर बेठा था।जीसे में विलेन समझ रहा था पर tisa से जुड़ने के बाद पता चला वास्तव में वो विलेन न होकर एक बेहतर कलाकार हे।बस जरुरत हे उसे पहचान कर सही रूप देने की।पर सबसे बड़ी चुनोती थी उस 25 वर्ष पुराने विलेन को दर्शको के सामने कलाकार के रूप में कैसे पेश किया जाया।उस समय मेरी सोच ही थी जो मुझे अपने अंदर बेठे विलेन को कलाकार के रूप में बदलने में मेरा साथ दे रही थी।कलाकार वाही हे जो लोगो को हँसाने के साथ साथ खुद भी हस सके।विलेन के साथ जीने से बीते 25 वर्षो में मुझे नहीं लगता हे की में कभी हँसा हु।पर कलाकार के साथ जीने से मुझे भी हँसने का उतना ही मौका मिलाता हे जितना मेरे सामने वाले दर्शक को।मेनेअपने 25 वर्षो के अनुभव में देखा हे की जब मेंअपनी हकलाहट को विलेन बनाकर जीता था तो वो वह अंदरुनी चोट बनकर दील और दिमाग के सहारे मेरे अवचेतन मन में काफी पीड़ा देती थी।और पीड़ा भी ऐसी जो न किसी को बता सकता ना छुपा सकता।और उस चोट के ऊपर सामने वाले की हँसी जले पर नमक का काम करती थी।और वह नमक उस चोट को और गहरा बनाता जाता।अब अपने आप में थोडा बदलाव करके अपने अंदर बेठे विलेन को कलाकार बनाकर कर अपनी चोट को लोगो को बताना सिख रहा हु।जिससे पता चला की उस विलेन से कही बेहतर हे कलाकार बन कर जीना।और विलेन अभी भी मेरे अंदर बेठा हे और वो मेरे अंदर बेठे कलाकार की की तुलना में बड़ा भी हे।पर हिंदी फिल्मो की तरह अंत में जीत कलाकार की ही होती हे।और मुझे भी पूरा विश्वास हे की मेरे अंदर बेठे विलेन का धीरे धीरे अंत होगा और मेरा कलाकार मेरे आने वाले दिनों को मुझे बेहतर ढंग से जीना सिखायेगा।
धन्यवाद
संजय राठौर
9827396355
6 comments:
संजय जी बहुत खूब!! सचमुच हकलाना हमारा विलेन नही बल्कि हमारे अन्दर का हीरो है।बस जरूरत है उसे पहचानने की॥
संजय जी बहुत खूब!! सचमुच हकलाना हमारा विलेन नही बल्कि हमारे अन्दर का हीरो है।बस जरूरत है उसे पहचानने की॥
एक दम सही कहा आपने - "अंत में जीत कलाकार की ही होती हे"..
सत्यमेव जयते !!
ek dum sahi Sanjay bhai...har kisi ki life me villain aur hero hota h bus jarurat hai usse pechane ki...
bhut badiya bhai sanjay bhai
Sanjay ji.... Ye to sahi ha.... par hum log kare kya jisse ye thik ho jaye..?
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