कल 10/7/2015 को मैंने टीचर्स की एक मीटिंग आयोजित करवाया था। इस मीटिंग में सिर्फ मैं ही बोलने वाला था। तेज बारिश के कारण मीटिंग में 18 टीचर्स ही आ पाए।
इस बार मैंने बोलने के लिए कोई तकनीक नहीं इस्तेमाल किया। केवल बीच-बीच में रूककर अपनी बात बोलता रहा। कई बार हकलाया। बोलते-बोलते 90 मिनट निकल गए। इस बार मैंने ब्लैकबोर्ड पर भी लिखकर विषय को समझाया।
इस मीटिंग में मैंने हकलाने वाले बच्चों के बारे में विस्तार से शिक्षकों को जानकारी दिया। उन्हें बताया की कक्षा में हकलाने वाले बच्चों की पहचान कैसे करना है, उनकी क्या-क्या समस्याएं हो सकती हैं और उनकी कैसे मदद करना है आदि।
मैंने कहा कि विशेष आवश्यकता वाले बच्चों या हकलाने वाले बच्चों को कक्षा में एकदम आगे बैठाना चाहिए। इस दौरान एक शिक्षक ने कहा- सर, अगर हम ऐसे बच्चों को कक्षा में आगे बैठाते हैं, तो वे डर के कारण स्कूल आना बंद कर देते हैं। मैंने सलाह दिया- ऐसे बच्चों की क्षमताओं को परखने के बाद उनके स्तर के अनुसार आसान सवाल पूछना या कोई सरल गतिविधि करवाकर उन्हें प्रेरित करना, शाबाशी देना चाहिए। इससे वे स्कूल में आने के लिए उत्सुक रहेंगे और कक्षा में उनकी सहभागिता बढ़ेगी।
मैंने टीचर को बताया कि हकलाने वाले बच्चों को कक्षा में खड़े करवाकर पढ़ने का अभ्यास करवाना चाहिए, उन्हें चिढ़ाने से बचना चाहिए और उनकी बात को ध्यान से सुनना और बोलने का पूरा मौका देना चाहिए।
यह पहली बार था जब मैंने अपने लेक्चर के दौरान हकलाहट के बारे में खुलकर बातचीत किया। बैठक खत्म होने के बाद एक टीचर ने कहा- सर, आपने बहुत अच्छी जानकारी दिया और बहुत ही सरल तरीके समझाया।
अंत में, मुझे इस बात संतोष हुआ कि मैं 90 मिनट तक लगातार बोलता रहा, ब्लैकबोर्ड पर लिखकर समझाने का प्रयास किया और बार-बार टीचर के पास जाकर बोला। अपनी बाडी लैग्वेज को विषय के अनुरूप और संयत बनाने का प्रयास किया।
मुझे यह सीख मिली की हम हकलाते हुए भी एक कुशल वक्ता बन सकते हैं।
- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758
इस बार मैंने बोलने के लिए कोई तकनीक नहीं इस्तेमाल किया। केवल बीच-बीच में रूककर अपनी बात बोलता रहा। कई बार हकलाया। बोलते-बोलते 90 मिनट निकल गए। इस बार मैंने ब्लैकबोर्ड पर भी लिखकर विषय को समझाया।
इस मीटिंग में मैंने हकलाने वाले बच्चों के बारे में विस्तार से शिक्षकों को जानकारी दिया। उन्हें बताया की कक्षा में हकलाने वाले बच्चों की पहचान कैसे करना है, उनकी क्या-क्या समस्याएं हो सकती हैं और उनकी कैसे मदद करना है आदि।
मैंने कहा कि विशेष आवश्यकता वाले बच्चों या हकलाने वाले बच्चों को कक्षा में एकदम आगे बैठाना चाहिए। इस दौरान एक शिक्षक ने कहा- सर, अगर हम ऐसे बच्चों को कक्षा में आगे बैठाते हैं, तो वे डर के कारण स्कूल आना बंद कर देते हैं। मैंने सलाह दिया- ऐसे बच्चों की क्षमताओं को परखने के बाद उनके स्तर के अनुसार आसान सवाल पूछना या कोई सरल गतिविधि करवाकर उन्हें प्रेरित करना, शाबाशी देना चाहिए। इससे वे स्कूल में आने के लिए उत्सुक रहेंगे और कक्षा में उनकी सहभागिता बढ़ेगी।
मैंने टीचर को बताया कि हकलाने वाले बच्चों को कक्षा में खड़े करवाकर पढ़ने का अभ्यास करवाना चाहिए, उन्हें चिढ़ाने से बचना चाहिए और उनकी बात को ध्यान से सुनना और बोलने का पूरा मौका देना चाहिए।
यह पहली बार था जब मैंने अपने लेक्चर के दौरान हकलाहट के बारे में खुलकर बातचीत किया। बैठक खत्म होने के बाद एक टीचर ने कहा- सर, आपने बहुत अच्छी जानकारी दिया और बहुत ही सरल तरीके समझाया।
अंत में, मुझे इस बात संतोष हुआ कि मैं 90 मिनट तक लगातार बोलता रहा, ब्लैकबोर्ड पर लिखकर समझाने का प्रयास किया और बार-बार टीचर के पास जाकर बोला। अपनी बाडी लैग्वेज को विषय के अनुरूप और संयत बनाने का प्रयास किया।
मुझे यह सीख मिली की हम हकलाते हुए भी एक कुशल वक्ता बन सकते हैं।
- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758
8 comments:
bahot achha amit jee, aap hamesha kuch naya karte rahte hai, hum isse sikhte rahte hai...nice carry on.
Bahut achcha. Isse hamein apne comfort zone se baahar nikalne ki seekh milti hai.
Wah... Kamal kar diya, Amit ji. Ye agar cure nahi hai to fir aurkya hai??
Dhanyavad...
Sir its really nice one its give us a lot of courage...and motivation ....
Thank u
Vivek jain
Bahut ache...ek teacher ka bhaut important role hota hai society me...
Share krne k liye Dhanyawad..
Kya Baat..Kya Baat...Kya Baat Amitji. Great Work.
ऐसी ही हिम्मत अगर हर हकलाने वाला वयक्ति कर ले तो हकलाहट क्या हे वो भूल ही जाएगा ।बहुत खूब अमित जी
बहुत अच्छे अमित जी।आप ने दिखा दिया की हकलाहट हमें दूसरे लोगो से अलग नहीं बनाती हे।
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