May 28, 2015

हकलाहट को स्वीकार करने के लाभ

मैंने हकलाहट की स्वीकार्यता को एक व्यापक रूप में
अपनाया है और महसूस किया है। इस दौरान मैंने पाया कि
स्वीकार्यता सिर्फ हकलाहट ही नहीं, बल्कि जीवन की हर
चुनौती का सहजता से सामना करने का मूलमंत्र है। अगर
आपने स्वीकार्यता को पूर्ण रूप से और खुलकर अपना
लिया, तो आपका जीवन सुखमय बना जाता है। आप दुःख
होते हुए भी दुःख का अहसास नहीं कर पाएंगे, क्योंकि
स्वीकार्यता आपको दुःख का सामना करने की हिम्मत
देगी। यहां स्वीकार्यता के कुछ लाभों की ओर आप सबका
ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं, जो मैं समझ पाया हूं।
1. स्वीकार्यता जीवन को सहजता प्रदान करती है। जब
आप खुलकर हकलाना स्वीकार करते हैं, तब आपको पता
चलता है कि अरे! फालतू में कितना बड़ा बोझ लेकर हम घूम
रहे थे सालों से! स्वीकार करने के बाद हकलाहट से संघर्ष
खत्म हो जाता है।
2. जब आप हकलाहट को स्वीकार करते हैं, तो आप अपनी
हकलाहट के बारे में अधिक सकारात्मक हो जाते हैं। आप
अपनी हकलाहट को लेकर सभी नकारात्मक विचार त्याग
देते हैं। जैसे- हकलाहट मेरे करियर में बाधा है, लोग मेरी बात
समझते ही नहीं, लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं, मेरा जीवन
व्यर्य है। इस तरह के सभी विचार सकारात्मकता में बदलने
लगते हैं।
3. हकलाहट को स्वीकार करने से हमारे अन्दर एक हिम्मत
आती है। साहस आता है दूसरे लोगों से बातचीत करने का।
खुलकर हकलाहट के विषय में चर्चा करने का साहस आता
है।
4. स्वीकार करने से हकलाहट की शर्मिदंगी, डर, भय और
चिन्ता से हम मुक्त हो जाते हैं। हमें पता चलता है कि
हकलाहट है भी तो क्या हुआ, हम हर स्थिति का सामना
कर सकते हैं।
5. हकलाहट को स्वीकार करने के बाद हमें समझ में आता है
कि हकलाहट तो संचार में बाधा कभी थी ही नहीं। बाधा
थी तो सिर्फ हमारे अन्दर का डर जो हमें बार-बार समाज
के लोगों से जुड़ने और उनसे बातचीत करने से रोकता है।
6. हम हकलाहट को खुलकर स्वीकार करके संचार की
बारीकियों को सीखते हैं। तब हमें अहसास होता है
धाराप्रवाह बोलना जरूरी नहीं है, बल्कि अर्थपूर्ण और
सार्थक बोलना जरूरी है।
7. हकलाहट की स्वीकार्यता हमारी प्रगति के द्वार
खोलती है। हम कल तक जिन कामों को करने से कतराते थे,
आज उन्हीं कामों को बड़े उत्साह से करते हैं। खासकर
जिनमें बोलने की जरूरत होती है। बाहरी लोगों से संवाद
करना होता है, वह सभी काम हम खुद करते हैं।
8. हम अपने जीवन में मानवीय मूल्यों और सामाजिक
संबंधों को और अधिक गहराई से समझने और उन्हें पालन
करने की कोशिश करते हैं। हमारी सामाजिकरण यानी
सोशलाईजेशन होने लगता है।
9. स्वीकार्यता केवल हकलाहट की नहीं, बल्कि जीवन में
आने वाली हर चुनौती को खुलकर स्वीकार करना। इससे हम
तमाम मुश्किल हालातो ंका असानी से सामना कर पाते
हैं।

-हंसराज फुलवारी जी  इस ब्लाग के लेखक हैं ,मैं सिर्फ एक माधयम हूँ

4 comments:

Satyendra said...

बहुत सुन्दर अभिषेक ॥ वैसे भी सच्चाइ को नकारने से क्या फायदा ? मजा तो चुनौतियों से निपटने और आगे बढने मे है...

ABHISHEK said...

सर जी मैं सिर्फ एक माधयम हूँ .हंसराज इस लेखन के लिए बधाई के पात्र हैं

Satyendra said...

ओह - सौरी; .हंसराज इस लेखन के लिए बधाई के पात्र हैं
सचिन

Unknown said...

बिलकुल सही सच्चाई को स्वीकार करने से इंसान हर तरह से अपने आप की स्वतंत्र महसूस करता हे।इसके विपरीत सच्चाई को नकारना इंसान को अपने आप तक ही सिमित रखती हे।