आपने मीटिंग में देखा होगा की एक मिनट का टाइम दिया जाता है अपना परिचय देने के लिए । उम्मीद की जाती है की वो अपना नाम, कहा से है, शिक्षा , क्या करते है बतायेंगे ? इतना बताते बताते एक मिनट हो जाता है । और दूसरे का टर्न आ जायेगा । लेकिन ऐसा देखने में आता है की परिचय देने के अलावा भी हकलाने के बारे में कुछ और भी शेयर करने लगते है। जैसे बचपन में मेरा हकलाना ऐसा था उसके बाद कुछ ऐसा हो गया। …………………………… और ऐसा कहते कहते चार -पांच मिनट हो जाते है । जबकि सिर्फ एक मिनट का टाइम दिया गया था अपना परिचय देने के लिए।
हमे टॉपिक मिला भारतीय राजनीती का वर्तमान परिदृश्य इस पे मीटिंग में पांच मिनट बोलना है । हमने शुरु कुछ ऐसे किया ' हमारे यहाँ राजनीती का बहुत बुरा हाल है भ्रष्टाचार ने इसको खत्म कर दिया है । अब मैंने राजनीती को छोड़ कर भ्रष्टाचार को पकड़ लिया । अब भ्रष्टाचार से होने वाले नुकसान और इसे रोकने के उपाय बताने लगे फिर याद आता है सूचना का अधिकार इस शब्द को पकड़ कर इस पे बोलने लगे । तभी याद आता है की बात तो राजनीती की करनी थी । अब सूचना का अधिकार को राजनीती से जोड़ने का जुगाड़ करने लगते है ।
ऑब्जरवेशन :
जब मुझे किसी टॉपिक पे बोलना होता है तो ऐसे ही रैन्डम विचार आते है । इस तरह जो टॉपिक का मूल विषय होता है वो बिखर जाता है । मेरे पास बहुत से विचार उस टॉपिक से संबंधित एक ही साथ आ जाते है । मै उन विचारो की प्राथमिकतायें तय नही कर पाता की उस टॉपिक से रिलेटेड क्या अभी बोलना जरुरी है ?
प्रश्न :
मुझे उस पांच मिनट की स्पीच के लिए उसी समय किस तरह से अपने आपको तैयार करना होगा ?
क्या बोलते वक्त जो भी विचार आये वो सिलसिलेवार आ सकते है ?
क्या ये मेरी मनोवैज्ञानिक कमजोरी को दिखा रहा है ? यदि हा तो इसे कैसे सुधार करे ?
हमे टॉपिक मिला भारतीय राजनीती का वर्तमान परिदृश्य इस पे मीटिंग में पांच मिनट बोलना है । हमने शुरु कुछ ऐसे किया ' हमारे यहाँ राजनीती का बहुत बुरा हाल है भ्रष्टाचार ने इसको खत्म कर दिया है । अब मैंने राजनीती को छोड़ कर भ्रष्टाचार को पकड़ लिया । अब भ्रष्टाचार से होने वाले नुकसान और इसे रोकने के उपाय बताने लगे फिर याद आता है सूचना का अधिकार इस शब्द को पकड़ कर इस पे बोलने लगे । तभी याद आता है की बात तो राजनीती की करनी थी । अब सूचना का अधिकार को राजनीती से जोड़ने का जुगाड़ करने लगते है ।
ऑब्जरवेशन :
जब मुझे किसी टॉपिक पे बोलना होता है तो ऐसे ही रैन्डम विचार आते है । इस तरह जो टॉपिक का मूल विषय होता है वो बिखर जाता है । मेरे पास बहुत से विचार उस टॉपिक से संबंधित एक ही साथ आ जाते है । मै उन विचारो की प्राथमिकतायें तय नही कर पाता की उस टॉपिक से रिलेटेड क्या अभी बोलना जरुरी है ?
प्रश्न :
मुझे उस पांच मिनट की स्पीच के लिए उसी समय किस तरह से अपने आपको तैयार करना होगा ?
क्या बोलते वक्त जो भी विचार आये वो सिलसिलेवार आ सकते है ?
क्या ये मेरी मनोवैज्ञानिक कमजोरी को दिखा रहा है ? यदि हा तो इसे कैसे सुधार करे ?
3 comments:
Reason is- we have not whole heartedly accepted and dealt with our stammering once for all. So, day in and day out, in season and out of season, with friends or in a formal interview- we are thinking of only how NOT to stammer. We are so obsessed with fluency that we just dont pay attention to preparation, content, ground rules ... We simply forget about COMMUNICATION. We just focus on one thing - how to avoid stammering someow or the other. Ofcourse result is just opposite.
Solution- Accept that sometime you will stammer and t is no big deal. Prepare well, rehearse manytimes and focus on the content and the context- the ground rules. Focus on communication. Take everyone along - rather than on inividual victory: "I spoke very well. And to hell with others!!" Such attitudes are self defeating....
Second thoughts: All this is sometime done by those too, who dont stammer. It is because we think that speaking is a natural act and therefore requires no homework. Not so. Here are some courses, which I think are really helpful/ good (I actually did it):
https://www.coursera.org/learn/publicspeaking
https://www.coursera.org/course/commscience
Try them out. They are free. But you have to work hard.
Thanks i will do that.
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