October 16, 2014

NC 2014 : हकलाहट को स्वीकार करना है जरूरी . . .

अमेरिका से आए प्रतिभागी रूबिन के साथ एक रोचक इंटरव्यू।
मे-मे-मेरा  नाम Reuben Schuff है। मैं संयुक्त राज्य अमेरिका के नार्थ कैरोलिना स्थित एक कम्पनी में एयरोनाटिकल इंजीनियर के रूप में कार्य कर रहा हूं।

मुझे याद नहीं की जीवन में पहली बार हकलाहट कब हुई। मेरे पेरेन्ट्स हकलाहट के बारे में बातचीत नहीं करते थे। एक बार डाॅक्टर को दिखाया तो उन्होंने कहा कि चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा।

दिन बीतते रहे। स्कूल में टीचर मुझे पढ़ने और प्रश्न का उत्तर देने नहीं देते थे। क्लास में कुछ भी बोलकर पढ़ नहीं पाता था। विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान मुझे सहायता की बहुत जरूरत थी, लेकिन मैं नहीं जानता था कि क्या करूं?

भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में हकलाहट के बारे में कुछ चीजें एक समान हैं, तो कुछ एकदम अलग हैं। लोग संचार को महत्वपूर्ण समझतें है। लोग स्पीच तकनीक की बात करते हैं, लेकिन मेरा मत है कि हकलाहट की स्वीकार्यता बहुत जरूरी है।


ईश्वर ने हमें धाराप्रवाह बोलना नहीं सिखाया, लेकिन अर्थपूर्ण और प्रभावी तरीके से संचार/संवाद करने की क्षमता जरूर प्रदान की है। भारत और अमेरिका दोनों ही जगह कुछ लोग हकलाहट के क्योर की ओर भागते हैं, तो कुछ संचार पर कार्य करना अधिक पसंद करते है।

हकलाने वाले साथी सही तरह से नहीं सुनते हैं। जबकि वे ठीक तरह से सुनकर अच्छे संचारकर्ता बन सकते हैं। वे अपने भय को दूरकर अच्छा श्रोता बन सकते हैं। हकलाने वाले व्यक्ति किसी भी फील्ड में काम कर सकते हैं।

अमेरिका में भी हकलाने वाले लोगों को शिक्षा और रोजगार प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। स्कूल और काॅलेज में काफी समस्या आती है हकलाहट के कारण। हमारे यहां हकलाने वाले टीचर, नर्स, एक्टर, राजनेता, अस्पताल की आपालकालीन सेवा के कर्मचारी हैं। वहां भी नियोक्ताओं की सोच है कि एक हकलाने वाला व्यक्ति कैसे यह सब काम कर पाएगा?

एक अच्छी खबर है कि अमेरिका में हकलाने वाले साथियों ने मिलकर एक कम्पनी शुरू किया है, जो कि बहुत सफल रही है। रोजगार पाने की आशा में भटकने से बेहतर है, खुद एक नियोक्ता बनना, दूसरों को रोजगार देना।

टीसा की तरह हमारे देश में भी नेशनल स्ट्टरिंग एसोसिएशन काफी सक्रिय होकर कार्य कर रहा है। वहां पर लगभग 5 हजार हकलाने वाले लोग इससे जुड़े हुए हैं। पिछली नेशनल कांफ्रेन्स में वाशिंगटन में 950 लोग शमिल हुए थे। हकलाहट पर जागरूकता के लिए कई सारे कार्यक्रम, सेमिनार, वर्कशाप अभिभावकों, डाॅक्टरों और स्पीच थैरेपिस्ट के लिए निरंतर आयोजित की जाती हैं।

भारत में टीसा की एन.सी. 2014 में आकर मुझे काफी अच्छा लगा। बहुत ही रोचक और अद्भुत अनुभव रहे। सभी साथियों को बधाई और धन्यवाद।

(जैसा उन्होंने टीसा को बताया)

3 comments:

Satyendra said...

अमित - आप साधुवाद के पात्र है..
Great interview. I hope all those friends who have been advising us to aopt Hindi, will be reading these interviews and will be kind enough to leave a comment!!!
Amit, I am sure you have lot more interviews hidden up your sleeve..!

I am Santosh said...

Amit ji! Bahut badiya likha hai aapane.

Aap waakai me Sadhuwaad ke paatra hai.

ABHISHEK said...

It shows that pws across the world have similar experiences