February 6, 2014

हकलाहट को सहज रूप में स्वीकार करने से ताकत मिलेगी

हकलाना, एक ऐसा शब्द है जो बचपन से ही हमें परेशान करता रहा है। इससे जुड़ी ढेरों मुश्किलों से हम जितना भागने की कोशिश करते रहे, वे उतनी ही विकराल रूप में हमारे सामने खड़ी नजर आईं।

जब एक शब्द भी बोलने की लाचारी हो, तब जिन्दगी में नीरसता का भाव होना एक आम बात है। टीसा ने हकलाने वाले लोगों के जीवन में आशा की एक किरण दी है, और वह है हकलाहट की स्वीकार्यता।

आप भारत में कहीं भी चले जाइए। कितना ही बड़ा हास्पिटल हो, स्पीच थैरेपिस्ट हो, हमेशा फिजिकल एक्सरसाइज पर ही ज्यादा जोर देते हैं। कभी कोई भी थैरेपिस्ट हकलाहट को खुलकर स्वीकार करने की बात नहीं कहता।



मान लीजिए, अगर आपकी हकलाहट को सुनकर कोई व्यक्ति हंस रहा है तो उससे विचलित होने, परेशान होने और गुस्सा करने से कहीं ज्यादा बेहतर है इस स्थिति को इग्नोर करना। अपनी हकलाहट को इग्नोर करते जाना। उस पर ज्यादा ध्यान नहीं देना।

आपके ऐसा करने से हकलाहट आपके लिए और आप पर हंसने वालों दोनों के लिए एक सामान्य-सी बात हो जाएगी। याद कीजिए, जब आप दूसरों के हंसने पर खींजते हैं, गुस्सा करते हैं, तब और अधिक आपको परेशान करने या मजाक उड़ाने की कोशिश करते हैं। वहीं जब आप इन बातों पर ध्यान ही नहीं देंगे तो मामला खत्म हो जाएगा।

अभी होता यह है कि जब भी हम हकलाते हैं, तो उस खुद से ही दुःखी हो जाते हैं, खुद पर ही गुस्सा आता है। अरे! मैं इतना नकारा, इतना बेकार आदमी हूं कि 2 शब्द भी ठीक से नहीं बोल पाता। हकलाहट की स्वीकार्यता का मतलब ही यह है कि हकलाहट आपके दिमाग से बाहर निकल जाए।

अगर हकलाहट हो भी तो आप उस पर मातम नहीं करें, एकदम सहज, सामान्य रूप में लें। हां, ठीक है हकलाहट हो गई तो क्या हुआ, फिर से दोबारा बोलने की कोशिश कर लेते हैं। यह विचार आत्मसात करने की जरूरत है।

किसी को आपकी हकलाहट पर हंसी आ गई तो आप भी थोड़ा-सा मुस्कुरा लें, अपने आप पर या यूं कहिए दूसरों की सोच पर। हमें हमेशा उस स्थिति की खोज करना है जिसमें हमारा भला हो। मतलब हकलाहट को लेकर तनाव नहीं आए। यह तभी संभव है जब हकलाहट को स्वीकार करना शुरू कर देंगे।

हममें से कई लोगों ने सालों तक स्पीच तकनीकों का घर के अंदर घंण्टों अभ्यास किया, लेकिन हकलाहट की स्वीकार्यता एक कदम आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करती है। हकलाहट की स्वीकार्यता हमें तमाम मुश्किलों, बंधनों और अवसाद से आजाद करती है।

- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758

4 comments:

प्रभु ! कृपा हि केवलम् said...
This comment has been removed by the author.
प्रभु ! कृपा हि केवलम् said...

Superb Attitude for Life!

Log 👥 hamare bare me kya sochte hain,
Agar yeh bhi hum hi sochenge toh phir log kya sochenge..!
Jiyo bindas...
🐾🐾🐾🐾🐾🐾🐾🐾🐾🐾


If you have a "Magnetic" personality and yet people don't get attracted to you, it's not your fault...
They have "IRON" deficiency in their bodies... 

jasbir singh said...

SLPs can't realise the principle of acceptance because they are not stammerers. There knowledge on the subject is intellectual not experiential. They cannot realise how acceptance is first step towards path to recovery in stammering.

Good work.
Please keep sharing.
May all beings be happy.

Satyendra said...

बहुत सही विश्लेषण किया -
मुश्किलों का सामना करने से मुश्किलें दूर होती हैं - डरने या भागने से नहीं..
शत शत साधुवाद ..