October 5, 2013

3rd नेशनल टीसा कोंफ्रेंस, दिल्ली

हेलो फ्रेंड्स मैं अनिल,

      वैसे बोस के तरफ से छुट्टी मिल नहीं रही थी, फिर भी बहुत रिकवेस्ट की तो मान गए | पर वर्क लोड ज्यादा था तो ५ दिन की छुट्टी की जगह २ दिन की ही मिल पाई, चलो ठीक है, कहते है न-   नहीं मामा से काना मामा अच्छा | पर डिसाइड किया तब  कम दिन बचे थे, तो आने की टिकिट कन्फर्म नहीं थी, पर चलता है| कुछ पाने के लिए थोडा बहुत खोना भी पड़ता है|


       पहले दिन प्रोग्राम सुबह  ९ बजे शुरू हुआ पहले इसमें इंट्रोडकशन से शुरू हुआ, जिसे बोल गेम में बोल पास करते हुए एक दूसरे के नाम बताते जाना था| इसमें बहुत से लोग मिले जो हर्बटपुर अप्रेल २०१३ वर्कशॉप में आये थे|
कुछ समय बाद में श्रीलंका से आई दो महिलाओ ने अपनी स्पीच दी उनके बाद मनिमारन जी ने स्पीच दी हलाकि तीनों की स्पीच इंग्लिश में थी तो मेरे तो सर के ऊपर से गयी| इनके बाद डी.के. तेजपाल जी ने अपने अनुभव शेयर किये जिसमे विपासना ध्यान शिविर के बारे में बताये, उनकी स्पीच हिंदी में थी, और अच्छी भी थी, उन्होंने बताये की उन्होंने विपासना से किस प्रकार अपनी स्टेमरिंग ठीक किये| इसके बाद कार्तिक जी ने स्काइप के बारे में और विशाल गुप्ता जी ने हेंगआउट के बारे में बताये| हलाकि ये भी इंग्लिश में ही थी|
कुछ समय बाद लंच ब्रेक हुआ| खाने की सुविधा इंडियन सोसल इंसीट्युट में ही थी, खाना बहुत अच्छा था, सादा था बढ़िया खाना ऐसा लगा मानो जैसे घर का ही हो|
         इसके बाद लगभग ७० लोगो को ४ ग्रुप में बाँटा गया| इन ग्रुप में सभी लोगो को अपने अनुभव शेयर ५-५ मिनिट में शेयर करना था| सभी लोगो ने किये| ये सेशन अच्छा लगा क्योकि हम स्टेमर लोगो या भीड़ में बोलने से कतराते है, और इस कंडीशन में ज्यादा अटकते है ज्यादा हकलाते है| अगर ऐसा अभ्यास हम रियल लाइफ में ज्यादा करेंगे तो हमारे स्टेमरिंग कंट्रोल में बहुत फायदा होगा|
     इनके बाद तारक जी ने टोस्ट मास्टर के बारे में बताये की यह SHG की तरह इंडिया के मैन सीटीज में है| इसमें बताया जाता है की हमें किस प्रकार बोलना है अपनी बात कैसे रखना है etc ets... इनकी स्पीच हिंदी में थी अच्छी लगी इनके साथ इंग्लिश में ट्रांसलेट के लिए यंग एज थे उनकी टोन तरीका और लहजा एकदम वेस्टर्न टाइप था और आवाज भी क्रिस्टल क्लियर थी|
पहले दिन के अंत में कार्तिक जी ने लाफिंग सेशन और ब्रीथिंग करवाई, बहुत अच्छा लगा और एकदम माइंड बॉडी रिलेक्स हो गये|फिर लास्ट में स्नेक और सोफ्ट ड्रिंक्स लिए| और फर्स्ट डे का समापन हुआ|
        फिर मै छुट्टी नहीं होने की वजह से वापस होने के लिए निकल गए, ट्रेन देर रात को थी तो विजय जी और अमित जी  के साथ मेट्रो से होते हुए चांदनी चौक में घूमने गए|
अच्छा हुआ ३ दिन के लिए नहीं आया था नहीं तो क्योकि इंग्लिश-विन्ग्लिश की वजह से कुछ समझ में नहीं
आ रहा था, सोचो १ दिन में ये हाल था तो ३ दिन में क्या होता| हलाकि पिछले टाइम हरबर्टपुर में दोनों भाषाओ का ख्याल रखा गया था|
हा एक और बात सचिन सर की बहुत कमी खली|
यहाँ पर आये  ७० लोगो में से केवल ७ लोग ही हिंदी नहीं जानते थे| हालाकि अगले लेख में हिंदीकरण की आवश्यकता और विश्लेष्णात्मक अध्धयन प्रस्तुत करूँगा|
अनिल
बतुल मप्र

2 comments:

प्रभु ! कृपा हि केवलम् said...

गुहार जी आप सही हैं ।
पता नहीं क्यों .......... हम हिंदुस्तानियों को दुसरों की नकल करने से ही आत्मविस्वास आता है फ़िर चाहे वो बोलना हो या आहार-विहार या आचार-विचार ।
कितनी विडंबना है कि हमारे रुपये की तुलना उस अमेरिकन डोलर से की जाती है जो खुद दिवालिया होने के कगार पर है ।

Satyendra said...

प्रिय अनिल - आप हिम्मत मत हारना - इसी तरह प्रयास करते रहना - एक दिन जरूर तीसा में हम सिर्फ हिन्दी ही नही बल्कि तमाम भारतीय भाषाओ में काम करना शुरू करेंगे - क्योंकि तीसा आम हकलाने वालों की संस्था है - उनका घर है ; अगर हम अपनी जुबान में हकला भी न पाएं तो यह संस्था किस के लिए बनी है ? गौर करें की तारक और राजा पोलादी जैसे सदस्यों ने कितना सुन्दर उदहारण पेश किया है , हम हिंदी भाषियों के लिए। मेरा निवेदन है की आप सब इसी तरह असहमति के स्वर जोरशोर से उठाते रहे । तीसा के विकास के लिए यह बेहद आवश्यक है…