July 26, 2013

महिला डाक्टर का आशीष अविस्मरणीय बन गया . . . !

बात अगस्त 2000 की है। मैं भोपाल में पढ़ता था। 12वीं कक्षा में। एक बार स्कूल से आने के बाद मुझे तेज बुखार आया। अपने घर में काम करने वाले सहायक के साथ मैं पास के सरकारी अस्पपाल पर गया। शाम के समय एक महिला डाक्टर ड्यूटी पर थीं। उन्होंने मेरी समस्या सुनकर पर्ची पर दवाईयां लिखीं। कमरे से वापस आते समय डाक्टर ने मेरे सिर पर हाथ रखकर आशीष दिया।


इसके बाद मैं कई अस्पतालों पर इलाज कराने के लिए जाता रहा हूं। लेकिन जो अनुभव उन महिला डाक्टर के साथ रहा वैसा मैं दोबारा कभी भी महसूस नहीं कर पाया। वह वाक्या मेरे मानसपटल पर अंकित हो गया। डाक्टर का आशीष पाकर मैं अभिभूत हो गया था। मेरी आधी तकलीफ तो उसी समय खत्म हो गई थी जब डाक्टर ने मेरे सिर पर हाथ रखा था।

हम सबकी जिन्दगी में रोजाना ऐसे अवसर आते हैं जब हम किसी परिचित या अजनबी से दो मीठे बोलकर या खुद आगे होकर किसी की थोड़ी मदद कर सकते हैं। इसमें हमारा कुछ भी खर्च नहीं होता है और सामने वाले के दिल में हम अमिट छाप छोड़ सकते हैं।

अक्सर हम अपने आसपास ऐसे लोगों को भी देखते हैं जो किसी से बातचीत करना पसंद नहीं करते। मेरे एक पड़ोसी हैं जिनके चेहरे पर हमेशा बारह बजे रहते हैं। दूसरों को देखते ही नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं। नमस्कार करने पर ऐसा उत्तर देते हैं कि दूसरी बार उनकी तरफ देखने की भी इच्छा न हो। ऐसे लोगों को हमारे समाज में मतलबी माना जाता है। मैं ऐसे व्यक्तियों को मतलबी नहीं बल्कि मानसिक कमजोर मानता हूं, क्योंकि वे खुद ही समाज से जुड़ने की कोशिश नहीं कर रहे। अपनी ही दुनिया में मस्त हैं।

हकलाहट के कारण व्यक्ति समाज से दूर होने लगता है। वह लोगों से बात करने, मेलमिलाप से परहेज करता है। ऐसा लम्बे समय तक करने से यह हमारी आदत में शुमार हो जाता है। इसका असर हमारे व्यक्तित्व और सामाजिक संबंधों दोनों पर पड़ता है। फलतः हम और अधिक अकेलापन महसूस करने लगते हैं।

हम इनसे बच सकते हैं। इसके लिए स्वयं पहल करनी होगी। रास्ते में आते-जाते जो भी परिचित मिले मुस्कुराकर अभिवादन करने भर से ही आप दूसरे लोगों के लिए ज्यादा प्रिय हो सकते हैं। किसी का जन्मदिन हो तो उसे फोन करके या एसएमएस बधाई देना, त्यौहार पर परिचितों को बधाई देना आदि सामान्य शिष्टाचार के ऐसे अचूक नुस्खे हैं जिन्हें अपनाकर आप निश्चित ही अपना सामाजिक दायरा बढ़ा सकते हैं।

मैं भोपाल में 2005 से 2007 तक एक समाचार पत्र में रिर्पोटर रहा। उस समय एक कम्प्यूटर आपरेटर भी साथ में था। वह हर किसी से बड़ी ही आत्मीयता से मुस्कुराकर बात करता, उनकी हर बात पर तारीफ करता। नतीजा यह होता कि लोग उसके दीवाने हो जाते। उसके सम्पर्क और दोस्ती का दायरा काफी बढ़ गया। वहीं दूसरी तरफ मैं और मेरे साथ काम करने वाले अन्य सहकर्मी कम्प्यूटर आपरेटर के इस व्यवहार की आलोचना करते। हम लोग सोचते कि यह तो सभी को बेवकूफ बनाना जानता है। मीठी-मीठी बातें कर लोगों को फंसाता है। आज कई साल बाद यह अहसास हो रहा है कि निश्चित ही उस समय हम लोग गलत थे और वह एकदम सही था। भला, आप दूसरे लोगों की तारीफ किए बिना और उनसे आत्मीयता से बात किए बिना कैसे उनसे अच्छे संबंध बना सकते हैं।

मेरे जीवन में परिवार से बाहर 3 लोग ऐसे हैं जो मेरे आदरणीय हैं और जिनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है। मैं लगातार कई सालों से उनके सम्पर्क में हूं। जब भी कोई त्यौहार होता है तो उन्हें बधाई सन्देश भेजता हूं। समय मिलने पर अक्सर मिलने भी जाता रहता हूं। मेरा इन सभी लोगों से न तो कोई व्यक्तिगत स्वार्थ है और न ही भविष्य में कोई सहयोग की अपेक्षा है। पर इन सबसे बढ़कर इनसे जुड़ा हुआ आत्मीय रिश्ता अनमोल है। जिसे मैं जीवन पर्यन्त जारी रखना चाहता हूं।

अक्सर हम सबका यह तर्क होता है कि सिर्फ धनवान, उच्चपद और प्रतिष्ठा वाले लोग ही समाज में ज्यादा सम्मान पाते हैं। अब एक उदाहरण देखिए। आपके जिले का कलेक्टर या एसपी अगर साधारण कपड़ों में आम जनता के सामने आ जाए तो उस जिले के 50 प्रतिशत लोग तो पहचान ही नहीं पाएंगे। जबकि इनकी फोटो अक्सर अखबारों में छपती रहती है।

वास्तव में हम उन लोगों के ज्यादा करीब होते हैं जिनसे हमारा सतत सम्पर्क होता है या जो लोग ज्यादा सामाजिक और खुशमिजाज किस्म होते हैं। एक और उदाहरण, आप अपने शहर के कितने धनवान लोगों के नाम याद हैं। संभवतः 2-4 के बाद आपकी याददाश्त कमजोर हो जाएगी। आप ऐसे लोगों को जानते ही नहीं होंगे। फिर आप कैसे कह सकते हैं कि धन होने से ही समाज में सम्मान मिल सकता है?

आप थोड़ा अपनी ओर से कोशिश करके, पहल करके अपने सामाजिक संबंधों को ज्यादा मधुर और सुखद बना सकते हैं। हकलाहट इसमें कोई बाधा नहीं है। बाधा है तो सिर्फ हमारा डर से हमें बार-बार सामाजिक होने से रोकता है। इस डर से दूर होने का यही एक तरीका है कि आप और ज्यादा सोशल हो जाएं . . . !

Amit - 09300-939-758

2 comments:

Satyendra said...

I totally agree. Becoming social (attending parties, helping others, joining various committees etc.) too is a path of recovery. It just needs a little courage..
Thank you, Amit, for the great write up..

Unknown said...

Thanks Amit, this is really nice post.