January 24, 2013

बोलने की स्पीड कम करने का आइडिया सफल रहा . . . !


कल आफिस में अपने एक सहयोगी को एक लेटर लिखवाना था। लाईट नहीं थी, कंप्यूटर चल नहीं सकता था। मेरे पास दो ही विकल्प थे या तो मैं खुद उसे लेटर लिखकर दूँ या फिर मैं बोलकर उसे लिखवाऊं। मैंने दूसरा विकल्प चुना। उस समय मेरे पास कार्यालय के और भी लोग बैठे थे। मैंने अपने सहयोगी को पेपर पेन लेकर लिखने को कहा। मैंने बोलना शुरू किया। मैंने अपनी बोलने की स्पीड कम कर ली। और एकदम धीरे-धीरे बोलने लगा। जैसे- महोदय ... आपका ... पत्र ... दिनांक ... का ... उत्तर ... इस तरह मैं एक सांस में एक-दो शब्द ही बोल रहा था। इस तरह मैंने लगभग दस मिनट तक बोलकर लिखवाया। इससे 3 लाभ हुए एक तो मैं बिना हकलाए और एकदम स्पष्ट रूप से बोल पाया, लिखने वाला मेरे हर शब्द को सही तरीके से समझ पाया, और लिखने वाला आराम से अपनी लिखने की स्पीड के अनुसार लिख पाया। 


इस तरह मेरी एक छोटी सी कोशिश से मैं खुद सही तरीके से संवाद कर पाया और लिखने वाले को भी कोई समस्या नहीं हुई, बल्कि आसानी रही। दरअसल, हम अपनी रोज़मर्रा की जिन्दगी में अपनी सुविधानुसार बोलने की सही तकनीक का चयन कर सकते हैं। हमारा काम हकलाहट को छिपाना नहीं बल्कि सही और सार्थक संवाद होना चाहिए।      

Amitsingh Kushwah,
SATNA (M.P.)
0 9 3 0 0 9 - 3 9 7 5 8 
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6 comments:

jasbir singh said...

There is no doubt Amit ji speaking at slow speed is a majic mantra for stammering cure. One needs to keep practicing it.

Satyendra said...

Very true observation. Now the challenge is to make it our "nature".. which can happen with practice under different circumstances..
Keep sharing your experiences and thoughts..

Unknown said...

Congrats Amit. Speaking slow helps us with pre and post block corrections as well.

Keep practising it and inspire others through your posts

Unknown said...

Congrats Amit. Speaking slow helps us with pre and post block corrections as well.

Keep practising it and inspire others through your posts

प्रभु ! कृपा हि केवलम् said...

amit ji, सबसे पहले तो आपके होसले को सलाम जिससे आप दूसरे से लिखवाने के लिये प्रेरित हुए, न कि खुद लिखने का सहज विकल्प चुना ।
मेरा भी अनुभव कुछ ऐसा ही रहा है, जब तक मैं defensive रक्षात्मक रहा I was trying to hide my stammering, हकलाहट का पहाड़ खडा हो गया और कई बार संघर्ष करने के बाद भी मैं एक एक शब्द बोलने में असफ़ल रहा, पर जैसे ही मैं आक्रामक मुद्रा में आया (ready to advertise about my stammering), हकलाहट का पहाड़ सिर्फ़ छोटी सी राई बनकर रह गया ।
पिछली february2012 मेरे brother की शादी में मैं चूहे की तरह सबसे बचता फ़िर रहा था ताकि कोई ये ना पूछ ले- आजकल कहाँ हो? As my work-place or district or state all are hard words for me.
लाख कोशिशों के बाद भी 2-3 लोगो ने ये सवाल दाग ही दिया और मैं 30-40 सेकंड के संघर्ष के बाद भी कुछ भी नही बोल पाया था ।.........
in july 2012; I attended first TISA workshop.
this week also मेरे छोटे brother की शादी थी पर इस बार मैं आक्रामक था और मैं जानबुझकर स्वागत द्वार के पास खडा था हर आने जाने वाले से बात करने के लिये । और आश्चर्यजनक रूप से सारे कठिन शब्द भी स्वतः ही बिना किसी संघर्ष के निकल रहे थे । 2-3 बार just 2-3 seconds का संघर्ष किया पर eye contact बनाये रखा और देखा कि उससे ना मुझे problem थी और ना सुनने वाले को ।
I thinks it was due my courage and ready to advertise about my stammering.
Thanks TISA

Satyendra said...

हेमन्त - एकदम सच कहा आपने । प्राय: लोग सोचते है कि पहले मै अपनी स्पीच को बदलूँ और तब अपने ऐटीट्यूड को बदलूँगा- आप समझ गये है कि यहाँ ठीक उल्टा सिद्दान्त है- नित नये प्रयोग करते रहे और हम सब के साथ बाँटते रहे.. धन्यवाद