एक हॉल में 80 लोग बैठे हुए हैं। 15 साल का एक किशोर मंच पर आकर माईक थामकर अपना नाम बताने की कोशिश करता हुआ… ह-ह-ह… लेकिन अटक जाता है, एक बार फिर प्रयास करता है ह-ह-ह- हरमन सिंह। सामने बैठे हुए लोग हरमन के हकलाने पर तालियां बजाकर उसका स्वागत करते हैं। आमतौर पर हकलाने वाले व्यक्ति को किसी भी जगह बोलने में संकोच और डर का सामना करना पड़ता है, लेकिन यह एक ऐसा अवसर था जहां सभी को खुलकर हकलाने की पूरी आजादी थी।
भारत में पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी, केन्द्रशासित प्रदेश, प्राकृतिक सुन्दरता और आधुनिकता के लिए मशहूर शहर चण्डीगढ़ में द इण्डियन स्टैमरिंग एसोसिएशन (तीसा) का सातवां राष्ट्रीय सम्मेलन 30 सितम्बर से 2 अक्टूबर 2017 तक सेक्टर 24 स्थित इंदिरा हॉलिडे होम में सम्पन्न हुआ। सम्मेलन में आंध्रप्रदेश, गोवा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मूकश्मीर और उत्तराखण्ड राज्य के 80 हकलाने वाले व्यक्तियों ने सहभागिता की।
पहला दिन- हकलाओ मगर खुलकर…
राष्ट्रीय सम्मेलन की शुरूआत तो एक दिन पहले 29 सितम्बर को हो गई थी। 12 प्रतिभागी एक दिन पहले से इंदिरा हॉलिडे होम पंहुच चुके थे। 30 सितम्बर की सुबह से ही लोगों के आने का सिलसिला शुरू हो गया। पहले दिन सुबह 9 बजे नाश्ता और चाय परोसा गया। प्रतिभागियों ने नाश्ता के दौरान ही एक-दूसरे का अभिवादन और परिचय प्राप्त किया। वहीं पुराने साथी आपस में मिलकर बहुश खुश हुए।
सम्मेलन हॉल में 10 बजे से पंजीयन प्रारंभ हो गया। लोग बारी-बारी से अपना पंजीयन करवा रहे थे। सभी के ठहरने, जलपान और भोजन की व्यवस्था इंदिरा हॉलिडे होम पर ही की गई थी। यह स्थान चण्डीगढ़ शहर के मध्य स्थित है। परिसर की प्राकृतिक सुंदरता सभी का मन मोह रही थी।
तीसा का यह सातवां वार्षिक सम्मेलन था। कार्यक्रम के कुछ सामान्य नियम थे- खुलकर हकलाना, किसी को हकलाने पर टोकना नहीं, बिना मांगे किसी को सलाह नहीं देना और बोलते समय अपनी समय सीमा का ध्यान रखना।
सम्मेलन की औपचारिक शुरूआत परिचय से हुई। सभी प्रतिभागियों ने मंच पर आकर अपना परिचय दिया- वह भी खूब हकलाकर। यह एक ऐसा मंच था जहां पर लोगों को खुलकर हकलाने की पूरी आजादी थी, कोई रोक-टोक नहीं, कोई बंधन नहीं। जैसा चाहें वैसा हकलाएं…
सम्मेलन का आयोजन चण्डीगढ़ स्वयं सहायता समूह के करकमलों से आयोजित किया गया। आयोजक टीम में जसवीर सिंह, नितिन गौतम, जसवीर सिंह और आलोक प्रताप सिंह शामिल रहे। सम्मेलन में स्वागत भाषण जसवीर सिंह ने दिया। उन्होंने सम्मेलन में आने पर सभी का स्वागत करते हुए कहा कि हमें अपने सपनों को पूरा करने के लिए पूरी मेहनत के साथ जुट जाना चाहिए। सपने वे नहीं होते जो हम सोते हुए देखते हैं, बल्कि सपने वे हैं जो हमें सोने नहीं देते। दुनिया में कई ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने हकलाहट के बावजूद अपनी प्रतिभा के दम पर देश और समाज को गौरवांवित किया है। इसलिए लक्ष्य को पाने के लिए समर्पित हो जाएं।
सम्मेलन का आयोजन चण्डीगढ़ स्वयं सहायता समूह के करकमलों से आयोजित किया गया। आयोजक टीम में जसवीर सिंह, नितिन गौतम, जसवीर सिंह और आलोक प्रताप सिंह शामिल रहे। सम्मेलन में स्वागत भाषण जसवीर सिंह ने दिया। उन्होंने सम्मेलन में आने पर सभी का स्वागत करते हुए कहा कि हमें अपने सपनों को पूरा करने के लिए पूरी मेहनत के साथ जुट जाना चाहिए। सपने वे नहीं होते जो हम सोते हुए देखते हैं, बल्कि सपने वे हैं जो हमें सोने नहीं देते। दुनिया में कई ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने हकलाहट के बावजूद अपनी प्रतिभा के दम पर देश और समाज को गौरवांवित किया है। इसलिए लक्ष्य को पाने के लिए समर्पित हो जाएं।
यह राष्ट्रीय सम्मेलन अब तक हुए सभी आयोजनों से कुछ अलग था। इस बार सम्मेलन का कोई पूर्व निर्धारित एजेंडा नहीं था यानी पूरी आजादी थी हकलाने की… तीसा की मूल सोच भी यही रही है कि हकलाने वाले व्यक्ति को तीसा के मंच पर हकलाने के मामले में पूरी आजादी महसूस हो।
“मैं आसानी से अपने शब्दों को बिनी किसी संघर्ष से बोल पा रही हूं।”
प्रथम सत्र में हकलाने वाले साथियों को अपने अनुभव साझा करने के लिए मंच पर आमंत्रित किया गया। कानपुर से आए राहुल कुमार ने कहा- जब मैं पांचवीं कक्षा में पढ़ता था तब पहली बार हकलाहट को महसूस किया। मेरे हकलाने पर लोगों का रूख मुझे अंदर से बहुत परेशान कर देता था। स्पीच थैरेपी लिया, कई अभ्यास किया, लेकिन कोई फायदा नहीं मिला। उल्टे मेरा हकलाना बढ़ता ही गया। बचपन में चित्रकारी की ओर भी ध्यान गया, लेकिन प्रोत्साहन के अभाव में यह कला भी हाथ से निकल गई। सौभाग्य से इंटरनेट पर तीसा की खोज की और पहली बार इस मंच पर आकर बहुत सकारात्मक महसूस कर रहा हूं। यह एक ऐसा मंच है जहां हकलाने पर तालियां मिलती हैं।
नई दिल्ली से आई रूचि वर्मा ने बताया- तीसा में शामिल होने से पहले एक शब्द भी नहीं बोल पाती थी। स्वयं सहायता समूह में प्रोलागशिएसन और पाजिंग तकनीक का इस्तेमाल करने पर काफी राहत मिली है। अब मैं आसानी से अपने शब्दों को बिनी किसी संघर्ष से बोल पा रही हूं।
ध्यानेश केकरे (गोवा) ने कहा- हमें अपनी सोच को बड़ा बनाना चाहिए और बड़े बदलाव के लिए कार्य करते रहें। हकलाहट से बाहर निकलकर जिन्दगी के अन्य पहलुओं जैसे- नौकरी, विवाह, रिश्ते-नाते, सामाजिक मेलमिलाप आदि क्षेत्रों पर अब अपना ध्यान देने की जरूरत है, तभी हम जीवन का सच्च आनंद उठा पाएंगे।
गुजरात से आए सत्यम सिंह ने कहा- तीसा ने हकलाने वाले लोगों की जिन्दगी में आशा की एक किरण पैदा की है। हकलाहट को कई सालों से छिपाने वाले, हकलाहट से डरने वाले साथी अब हकलाहट का आनंद ले रहे हैं। यह सचमुच एक चमत्कार है।
“महिलाएं भी सभी बंधनों से आजाद होकर हकलाहट के बारे में जागरूक हो रही हैं।”
भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई से आई भावना पाटिल ने बताया- तीसा के साथ हकलाने वाली युवतियां/महिलाएं भी जुड़ रही हैं। मुम्बई स्वयं सहायता समूह में कई लड़कियां हैं, जो हर रविवार को बैठक में शामिल होकर हकलाहट पर चर्चा करती है। तीसा से महिलाओं का जुड़ना इस बात की ओर इशारा करता है कि अब महिलाएं भी सभी बंधनों से आजाद होकर हकलाहट के बारे में जागरूक हो रही हैं।
हिमाचल प्रदेश से पधारे शिवशंकर शर्मा ने कहा- हमारे अंदर से हकलाहट का डर जितना अधिक बाहर निकलता जाएगा, उतना ही हम बंधनमुक्त होकर प्रगति कर पाएंगे। मैंने स्वीकार्यता को गहराई से महसूस किया और समाज से जुड़ने के लिए प्रयासरत रहा।
राकेश जायसवाल (उत्तरप्रदेश) ने कहा- एक समय ऐसा था जब मेरे घर के आसपास भी मेरा काई दोस्त नहीं था। आज यह कहने में मुझे बड़ा गर्व महसूस हो रहा है कि तीसा से जुड़ने के बाद भारत के कई राज्यों में मेरे ढेरों दोस्त हैं।
“हकलाने वाले बच्चे भी हर तरह से काम कर सकते हैं।”
सम्मेलन में 15 साल के किशोर हरमन सिंह ने भी भाग लिया। हरमन की माताजी ने कहा- यहां आना एक अद्भुत मौका है। यहां आने पर पता चला कि हकलाने वाले बच्चे भी हर तरह से काम कर सकते हैं।
इस प्रकार लोगों ने अपने विचार व्यक्त किए। दोपहर 2 बजे लंच प्रारंभ हुआ। दोपहर 3 बजे फिर से सम्मेलन शुरू हुआ।
इस सत्र में तीसा के 2 वरिष्ठ सदस्यों ने तीसा की स्थापना, दृष्टिकोण और कार्यक्रमों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि तीसा की औपचारिक शुरूआत 2008 में हुई थी और 2011 में तीसा का पहला वार्षिक सम्मेलन भुवनेश्वर (उड़ीसा) में आयोजित हुआ। तीसा मूलतः 3 सिद्धांतों पर कार्य करता है- स्वीकार्यता, स्वैच्छिक सेवा और स्वयं सहायता। हकलाने पर हमें शर्मिंदा नहीं होना चाहिए, क्योंकि हम हकलाने के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। तीसा धाराप्रवाह बोलना सिखाने या हकलाहट के इलाज का दावा नहीं करता। वास्तव में धाराप्रवाह बोलने से ज्यादा जरूरी है सामाजिक होना। हमें स्वीकार्यता को महसूस करने की जरूरत है। हमें हकलाहट को खुलकर स्वीकार करना चाहिए, लेकिन खराब संचार को नहीं। इसका मतलब है कि हकलाने वाला व्यक्ति अपने संचार कौशल को बेहतर बनाने के लिए लगातार प्रयास करता रहे।
तीसा में अपनी रोचक गतिविधियों के लिए मशहूर शैलेन्द्र कुमार विनायक (नई दिल्ली) ने कई गतिविधियां करवाकर प्रतिभागियों को रोमांचित कर दिया। इन गतिविधियों में शामिल होकर प्रतिभागियों ने सफल संचार के विभिन्न पहलुओं के बारे में अपनी समझ विकसित की और अच्छा संचारकर्ता बनने के लिए व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया। इन गतिविधियों की विस्तृत जानकारी के लिए अप्रैल 2017 में नई दिल्ली में आयोजित कार्यशाला की रिपोर्ट पढ़े। लिंक
तीसा के कार्यक्रम में पहली बार शामिल हुए नए सदस्यों के लिए अलग से एक सत्र आयोजित किया गया। इसमें विभिन्न् स्पीच तकनीक का अभ्यास और संचार की बुनियादी बातों से अवगत कराया गया।
वैसे तो पहले दिन सम्मेलन का औपचारिक समापन शाम 6 बजे हो गया था, लेकिन परिसर पर ठहरे हुए प्रतिभागी आगे भी गतिविधियां करने के लिए इच्छुक थे। वहीं कुछ साथी चण्डीगढ़ शहर घूमने के लिए निकल पड़े। एक बार फिर सम्मेलन हॉल में कुछ साथी इकट्ठा हुए और अंताक्षरी, शोरा शायरी, फिल्मी गानों और डांस का सिलसिला रात 9 बजे तक चलता रहा। कुछ प्रतिभागी परिसर में ही अलग-अलग समूहों में एक-दूसरे से चर्चा कर उनके अनुभव जान रहे थे। रात 9 बजे सभी ने भोजन ग्रहण किया। इस तरह सम्मेलन का पहला दिन शानदार रहा।
दूसरा दिन- आजमाएं कुछ नया…
परिसर में ठहरे हुए प्रतिभागी सुबह से ही अपने कमरों से बाहर निकलकर एक-दूसरे से मिल रहे थे। कुछ साथी बाहर सुबह की सैर पर निकल पड़े, तो कुछ अपनी दिनचर्या के अनुसार प्राणायाम, योग और ध्यान कर रहे थे। सुबह 9 बजे सभी ने नाश्ता और चाय लिया। अब तक चण्डीगढ़ के स्थानीय प्रतिभागियों का आना भी शुरू हो गया था। सुबह 10 बजे सम्मेलन का दूसरा दिन प्रारंभ हुआ।
प्रथम सत्र में विपासना ध्यान की गतिविधि आयोजित की गई। चण्डीगढ़ के वरिष्ठ विपासना साधक ने बताया कि विपासना बहुत ही सहज और सरल ध्यान है। इसमें व्यक्ति को आराम से बैठकर केवल अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करना होता है। इस मौके पर विपासना ध्यान पर आधारित एक आडियो सुनाया गया। इसके बाद सभी लोगों ने अपनी आंखें बंद करके 10 मिनट विपासना ध्यान का अभ्यास किया। विपासना का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को मानसिक शांति देना और मन से सबल बनाना है। इससे व्यक्ति के अन्दर सकारात्मक ऊर्जा और विचारों का संचार होता है। आज कई प्रसिद्ध लोग विपासना के नियमित अभ्यासी हैं।
“हकलाहट में ही हमारी सम्पूर्णता है।”
द्वितीय सत्र में एक बार फिर हकलाहट पर चर्चा शुरू हुई। प्रमोद कुमार कथुरिया ने बताया- जीवन के 60 वर्ष तक धाराप्रवाह बोलने की चाह में इधर-उधर भटकता रहा। कई जगह जाकर स्पीच थैरेपी लिया। अंततः तीसा से जुड़ने के बाद महसूस हुआ कि हकलाहट में ही हमारी सम्पूर्णता है। धाराप्रवाह बोलना कतई जरूरी नहीं है।
शिमला से आए अभिषेक कुमार ने बताया कि स्वीकार्यता की अवधारणा ने जीवन में किसी भी चीज को कमी के साथ स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया है। अगर मैं हकलाता नहीं होता तो जिन्दगी में बहुत कुछ कर पाता, इस सोच से बाहर निकलकर हमें यह स्वीकारना चाहिए कि हकलाहट के बावजूद भी हम बहुत कुछ कर सकते हैं। पहले मैं किसी से फोन पर बात करने या किसी मीटिंग में जाने से पहले यह तैयारी कर लेता था कि वहां पर क्या बोलना है, किन-किन शब्दों का इस्तेमाल करना है। धीरे-धीरे यह सब प्रयास खत्म हो गए हैं। अब मैं खुलकर हकलाता हूं। कार्यालय में मेरे सहकर्मी मेरी हकलाहट को भी एक सामान्य स्पीच की तरह लेने लगे हैं। अब मेरे हकलाने पर उन्हें कोई परेशानी नहीं होती।
परमानन्द धीमान (देहरादून) ने कहा- हकलाने पर लोग क्या सोचेंगे, इसी चिंता में जीवन में 30 साल बिता दिए। जब मैंने लोगों से हकलाने के बारे में बात की और लोगों के सामने हकलाहट को स्वीकार किया तब मालूम हुआ कि लोगों की प्रतिक्रिया और सोच बहुत ही सकारात्मक है।
“धाराप्रवाह बोलने की अंधी दौड़ से बाहर हो जाएं।”
चण्डीगढ़ में पीएचडी छात्रा ईरम खान ने बताया- हकलाने पर मेरा अनुभव यह रहा है कि लोगों को हमारी हकलाहट से ज्यादा समस्या नहीं है। हम कैसे बोल रहे हैं, यह मायने नहीं रखता। हम क्या बोल रहे हैं, इसमें लोगों की दिलचस्पी ज्यादा रहती है। इसलिए अपने संचार को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। धाराप्रवाह बोलने की अंधी दौड़ से बाहर हो जाएं।
भोपाल से आए जगदीश मेवाड़ा ने एक सुंदर बात कहीं- जब हम भोजन ग्रहण करने में, चलने-फिरने में, देखने में जोर नहीं लगाते है, कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करते हैं, तो फिर बोलने के लिए क्यों जोर लगाते हैं, जल्दीबाजी करते हैं। हमें आराम से बोलना चाहिए। इससे हमारा बोला हुआ दूसरे लोग ठीक तरह से समझ पाएंगे।
इस तरह सभी ने अपने अनुभव साझा किए। दोपहर 2.30 बजे लंच हुआ। लंच के बाद सभी प्रतिभागी दोपहर 3 बजे हॉल में एकत्रित हुए। सभी प्रतिभागियों को एक-एक फोल्डर दिया गया। फोल्डर के अंदर एक प्रश्नावली और कुछ खाली कागज लगे हुए थे। बताया गया कि हम सभी को 4 समूहों में विभाजित होकर शहर के चार सार्वजनिक स्थानों पर जाकर हकलाहट के विषय में अनजान लोगों से बातचीत करनी हैं, उनका साक्षात्कार लेना है। ये चार सार्वजनिक स्थान थे- पंजाब विश्वविद्यालय, सुकमा झील, रॉक गार्डन और रोज गार्डन। सभी प्रतिभागियों ने अपनी पसंद के मुताबिक स्थान का चयन किया और अपने समूह के मुखिया के साथ गंतव्य की ओर रवाना हुए। सभी ने भीड़भाड़ वाले इलाके में अनजान व्यक्तियों से बातचीत की और हकलाहट पर उनके विचारों को जाना-समझा। ये सभी चारों स्थान सुंदर और मनोहारी हैं। प्रतिभागियों ने इनकी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत को नजदीक से निहारा। रॉक गार्डन में अनुपयोगी चीजों से बनाई गई सुंदर कलाकृतियों को पास से देखकर लोग प्रफुल्लित हो उठे। साथ ही रॉक गार्डन के ओपन स्टेज पर चल रहे डीजे पर कुछ साथियों ने डांस भी किया।
रात के भोजन की व्यवस्था पंजाब यूनिर्वसिटी की मेस में की गई थी। वहां पर जाकर सभी ने भोजन किया। इस तरह सम्मेलन का दूसरा दिन भी बहुत सुखद रहा।
तीसरा दिन- अलविदा संकल्पों के साथ…
आज सम्मेलन का आखिरी दिन था। सभी प्रतिभागी देश के दूर-दूर के इलाकों से आए हुए थे। अपनी फ्लाइट, रेल या बस के अनुसार सभी को आज अलविदा कहना था।
सुबह 9 बजे जलपान शुरू हुआ। 10 बजे सभी लोग सम्मेलन हॉल में आ गए। आयोजन समिति ने तीसा में सर्वश्रेष्ठ कार्य करने स्वयंसेवकों को स्मृति चिन्ह और प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया। सर्वश्रेष्ठ कार्य करने वाला स्वयं सहायता समूह था- मुम्बई। इसके अलावा सभी प्रतिभागियों को मंच पर बुलाकर सहभागिता प्रमाण पत्र वितरित किए गए।
मंच पर आकर लोगों ने इस सम्मेलन पर अपना फीडबैक दिया। सभी ने सम्मेलन के आयोजन की प्रशंसा करते हुए इसे एक अद्भुत सम्मेलन बताया। एक-एक करके लोगों के अलविदा कहने का सिलसिला जारी रहा। दोपहर 2 बजे लंच की व्यवस्था की गई। सभी ने लंच लिया। इसके बाद लोग अपने-अपने गंतव्य के लिए रवाना हुए।
इस यादगार सम्मेलन ने चण्डीगढ़ में एक नए इतिहास का सृजन किया। अब चण्डीगढ़ के इतिहास में एक नया अध्याय लिख दिया है तीसा ने।
सम्मेलन में शामिल होने पर सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद, बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएं… अगले साल 2018 में तीसा के आठवें सम्मेलन में आप सबका इंतजार रहेगा… धन्यवाद।
– अमित 09300939758
No comments:
Post a Comment