" मैं क्यों हकलाता हूँ ?? सभी दोस्तों और भाई-बहनो में मैं ही क्यों हकलाता हूँ ?? ये विचार निरंतर मेरे मन में चल रहे हैं... हकलाहट के प्रति असंवेदीकरण की प्रक्रिया क्या है ?? खुद की हकलाहट के प्रति निरंतर चिंता को कैसे समाप्त की जाए ,..?? चाहे कुछ पलों के लिए ही सही...
मैं अपने इस त्री-वर्षीय अध्ययन-पाठ्यक्रम से मुक्ति चाहता हूँ..... मैं पढ़ नहीं पाया हूँ , जबकि अगले सप्ताह अर्ध-वार्षिक परीक्षाएं हैं .. मैंने अपनी हकलाहट को स्वीकार लिया है, पर मैं उससे प्रेम नहीं करता .... जीवन नर्क बन गयी है... मैं सब कुछ छोड़ देना चाहता हूँ..... "
ऐसे ईमेल मुझे युवा हकलाने वाले लोगों से ज्यादातर मिलते रहते हैं ... इन्हें पढ़कर मुझे ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई डूबता हुआ व्यक्ति सहायता मांग रहा हो..... ऐसी स्थिति में क्या किया जाए ????
पहली बात - आपको सोचने के लिए मानसिक व् भौतिक रूप से एक खुले परिवेष की आवश्यकता है.... आप ऐसा नहीं कर सकते, यदि आपने अपनी प्रतिष्ठित अध्ययन-पाठ्यक्रम को छोड़ कर घर लौट जाने का मन बना लिया है(या अपनी नौकरी छोड़ देने का मन बना लिया है)...-एक हार मान लिए इंसान की भांति .... क्योंकि ऐसी निराशा में लिए निर्णय अपने दुष्परिणाम साथ लाते हैं .....
आपकी मनःस्थिति अन -अवरुद्ध होनी चाहिए.... मेरी राय है की आप 24 घंटे के लिए किसी शांत स्थान पर चले जाएं - किसी प्राकृतिक स्थान पर कैंपिंग , किसी आश्रम या आध्यात्मिक स्थान , या किसी ऐसे मित्र के पास जो आपको अकेला छोड़ सके.....
अब कुछ समय के लिए प्राकृतिक-परिवेष में टहलने चले जाएं , या किसी तालाब में तैराकी कर लें ... इसके बाद एक कलम और कागज़ लें और अपने विचारों को लिखें - अपने भय , चिंता , समस्याओं को लिखें। .... सही - गलत शैली की चिंता न करते हुए उन्मुक्त धारा में लिखें... जब तक हमारे अस्पष्ट विचार दिमाग में रहते हैं तब तक हमें घबराहट और चिंता होती है। .. कागज़ पर लिख देने से हम उन्हें निष्पक्ष रूप से देख और समझ पाते हैं। ...
अब आप ये लिखें कि आपके साथ अत्यंत भयावह परिस्थिति क्या हो सकती है ?? जब आप इसे लिखेंगे तो आप पाएंगे की इस परिस्थिति से जुड़े अन्य विचार भी आपके मन में आएंगे - इन्हें भी लिखें। .. आप पाएंगे कि घने अंधकार में भी हल्की सी प्रकाश की किरणें दिखेंगी । .. उम्मीद की इन किरणों से धीरे धीरे पूरी तस्वीर प्रकाशमय हो जाएगी। साथ ही आप पाएंगे कि लिखने के दौरान ही इस भयावह परिस्थिति के प्रति आपके मन के भय व् दहशत कम होते चले जाएंगे । . आप पाएंगे की ये अत्यंत भयावह विकल्प भी कई विकल्पों में से एक है - हम उसे पूरे यकीन से अच्छा या ख़राब भी नहीं कह सकते हैं। ..
अब जब आपने सबसे अप्रिय संभावना की परिकल्पना कर ली है, समझ ली है - तो इससे वापस लौटें। हकलाहट के कारण कोर्स छोड़कर चले जाने (या नौकरी छोड़ देने) से कम नाटकीय विकल्प के विषय में सोचें।।। इंटरनेट पे तलाश करें कि ऐसी परिस्थिति में अन्य लोगों नें क्या कदम उठाए । अपने ऐसे दोस्तों व् परिचित लोगों से फ़ोन पर बात करें जो आपको सलाह दे सकें। इन सभी श्रोतों से मिली जानकारी को अपने अन्तः-कर्ण में ग्रहण करें।
अब अपने विकल्पों को प्राथमिकता अनुसार क्रमबद्ध रूप में लिखें। ऐसी योजना बनायें जो अमल करने योग्य हो। प्रत्येक गतिविधि के लिए उचित समय-सीमा एवं पुनरावृत्ति की योजना लिखें।। साथ ही ये भी लिखें कि प्रत्येक गतिविधि के लिए पहले से क्या-क्या तैयारी करनी होगी। .. ध्यान रहे कि ये बदलाव धीरे-धीरे हों व् इनके लिए उचित समय सीमा निर्धारित करें। .. बदलाव की गति ना बहुत त्रीव हो ना बहुत धीमी , मद्धम मार्ग अपनाएं। . भविष्य में इस योजना के विश्लेषण और आगे की योजना बनाने के लिए पहले से दिन निर्धारित कर लें। .. अब इस योजना की प्रतियां बना लें और उन्हें अपने घर के उन स्थानों पे लगा दें जहाँ आपका आना-जाना हो। ..
चुंकि अब आपकी योजना तैयार है , तो दिन के शेष वक़्त में कुछ मनोरंजक गतिविधि में भाग लें- कुछ नया,ऐसा जो आपके दिल को सुकून देने वाला हो (सिनेमा देखना इनमें शामिल नहीं है !!) .... साइकिल चलाना , तैराकी , नौकाटन या कुछ और जो आपके दिल को सुकून और प्रेरणा देता हो। ...
धयान रहे, ऊपर दिए गए सुझाव आपके कॉलेज कैंपस या कार्यस्थल की कोलाहल में संभव नहीं हैं। . इनके लिए एकांत की आवश्यकता है। .. कुछ दिनों के अंतराल पर एकांत में जाना ही आजकल के " तनाव-पूर्ण जीवन-शैली " की दवा है। .. दूसरी सीख ये है कि जब आप अत्यंत तनाव में हों , भाव-विभोर हों - तब किसी तरह का फैसला न लें। परवार-जनों,मित्रों और स्वयं के लिए आपकी इतनी जिम्मीदारी तो बनती है। ...
अंत में , स्वीकार्यता का अर्थ है जीवन के सभी अनुभवों को स्वीकार करना - चाहे वो सुखद , दुःखद या निरपेक्ष हों। .. और इन अनुभवों को अपने लिए उपयोगी संभावनाओं में परिवर्तित कर देना। .. जैसा कि दक्षिण भारत की एक गैर सरकारी संगठन करती है - रद्दी इकट्ठा करके उसे रोज़ के इस्तेमाल के चीज़ों में परिवर्तित करना ,जिससे हमारा वातावरण आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रह सके ।
नोट : क्या आप ये सोच रहे हैं कि आपको 24 घंटे की छुट्टी कौन देगा ? लेकिन कुछ देर पहले ही आप सब कुछ छोड़ देने की बात सोच रहे थे। तो क्या आप केवल 24 घंटे का अवकाश नहीं ले सकते। . भगवान् ना करे , अगर आप बीमार हो जाते तो अवकाश लेते न ? असल बात है अपने परिवेष से कुछ समय के लिए दूर जाकर विश्लेषण करना । इसके सिवा और कुछ भी कारग़र नहीं होगा। .. शुभकामनायें।
मूल अंग्रेजी लेख : डॉ सत्येंद्र श्रीवास्तव
अनुवाद : अभिषेक कुमार
4 comments:
बहुत सुन्दर अभिषेक...
भाषा थोड़ी और सरल बनायीं जा सकती है- जैसे की हम आमने सामने बैठ कर बात कर रहे हों - है ना?
पढ़ कर बहुत सी पुराणी बातें यद् आ गईं ..
धन्यवाद्!
सर , गूगल का सहारा लिया था... कुछ शब्द बहुत भारी-भरकम हैं। .. मैंने भी पहले नही देखा था!!! आगे की लेखों को सरल रखने की कोशिश करूँगा। .. हिंदी पढ़नी पड़ेगी :)
हां - ये सच है की हम, सभी इंग्लिश के चक्कर में अपनी बोली और भाषा भूलते जा रहे हैं.. मगर थोड़े प्रयास से हम दो या तीन भाषाओँ पर भी अच्छी पकड़ बना सकते हैं.. नियमित रूप से लिखना इस का एक अच्छा तरीका है..
maja aa gya
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