2 दिन पहले मैं अपने 3 रिश्तेदारों के साथ रेल्वे स्टेशन गया। हमें सतना से जबलपुर जाना था। 2 नार्मल टिकट और 2 सीनियर सिटीजन की टिकट लेना था। तय हुआ कि मैं ही टिकट खरीदूंगा। मैं टिकट काउन्टर पर गया। वहां बैठे सज्जन को गंतव्य स्थान तक का टिकट देने का आग्रह करता रहा। हकलाहट बहुत ज्यादा होने लगी। मैं बहुत कोशिश करके भी उन्हें नहीं समझा पा रहा था कि किस स्थान की, और कितने व्यक्तियों की टिकट लेना चाहता हूं।
थोड़ी देर बाद टिकट काउन्टर पर बैठे व्यक्ति ने पेपर और पेन मेरी तरफ बढ़ाया और कहा- इसमें लिख दें आप। कहीं सुनने में गलती होने से आपको गलत स्थान का टिकट मिल जाएगा, तो परेशानी होगी। उस रेल कर्मचारी ने बहुत ही सहज भाव से यह सब कहा। आखिर में मैंने अपने साथ गए रिश्तेदार को आगे किया, और टिकट ली।
थोड़ी देर बाद टिकट काउन्टर पर बैठे व्यक्ति ने पेपर और पेन मेरी तरफ बढ़ाया और कहा- इसमें लिख दें आप। कहीं सुनने में गलती होने से आपको गलत स्थान का टिकट मिल जाएगा, तो परेशानी होगी। उस रेल कर्मचारी ने बहुत ही सहज भाव से यह सब कहा। आखिर में मैंने अपने साथ गए रिश्तेदार को आगे किया, और टिकट ली।
मेरे जीवन में यह पहली बार हुआ था कि हकलाहट को नहीं समझ पाने की दशा में किसी ने पेपर-पेन देकर लिखने का आग्रह किया हो। जब मैं कालेज में था तो एक प्रोफेसर कहते थे कि जब भी कहीं बाहर जाओ तो पेपर-पेन अपने पास रखो। बोलने में परेशानी हो तो लिखकर अपनी बात बताओ। उस समय मुझे यह सब करना बहुत अजीब लगता था।
जीवन में कई ऐसे मौके आते हैं, जब हकलाहट काफी अधिक होने लगती है, और जरूरी काम भी करना होता है। जैसे- टिकट खरीदना, दवा खरीदना। इन हालातों में हम क्या करें कुछ समझ में नहीं आता। ऐसी स्थिति में अपनी बात पेपर पर लिखकर कह देना सुविधाजनक होगा।
मैं इस बात के खिलाफ हूं कि हम हमेशा लिखकर अपनी सूचनाएं देने और सम्वाद करने के आदी हो जाएं, लेकिन जब कोई आपातकाल का समय हो, तो यह करने मे ंकोई बुराई नहीं है। अगर बोलने के चक्कर में आपकी ट्रेन ही मिस हो जाए तो फिर क्या मतलब।
एक दूसरी बात यह समझ में आती है कि हमारा हकलाना किसी को कोई परेशान नहीं करता है और न ही कोई हमें उपेक्षित करने की कोशिश करता है। बल्कि वह सिर्फ सुनना चाहता है, समझने लायक बात सुनना चाहता है।
जिन्दगी में हकलाहट का सामना करने के लिए हकलाहट को भूल जाना जरूरी है। हकलाहट का बोझ ढोने से कहीं बेहतर हैं, हकलाहट को लेकर सकारात्मक हो जाएं। हकलाहट की स्वीकार्यता का यही एक गुण है कि हकलाहट आप पर हावी न हो, आपके जीवन पर हकलाहट का प्रभाव कम से कम हो।
- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758
5 comments:
Bahut santulit va vyavharik vicar..
Dhanyawad Amit
trust me dude...you have revealed the ULTIMATE TRUTH by your own personal experience.
Aapke post ke liye bahut Bahut badhai amitji. Aapke vichar aur anubhav se kai anya sathiyon ko himmat milegi
अमित, आपकी बात प्रेक्टिकल है।
मेरा सुझाव है कि पेपर-पेन निकालते पहेले एक गहरी सांस लेकर prolongation या bouncing को आज़माके जरुर देखे।
मेरे अनुभव में, prolongation और bouncing का अभ्यास लोगोके बीच (SHG, google hangout, skype calls, दोस्तोंमे) लगातार करने से ऐसे अवसर पर बहुत फायदा होता है। (Ashish, this can be added to my earlier answer to your million dollar question :-)
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