January 10, 2013

साहस के पर मत काटो


निवेदन - अगर आप थोडा सा साहस कर लें तो हकलाहट के बावजूद खुद को स्थापित कर सकते हैं, अपने सपनों को साकार कर सकते हैं। हमारी हकलाहट से दूसरे लोगों को ज्यादा मतलब नहीं है, लेकिन हम हमेशा दूसरों की फ़िक्र कर अपना मनोबल गिराते हैं, समय बर्बाद करते हैं। इसलिए साहस करें, आगे बढ़ें और सिर्फ अपनी सोचें की आपको कैसे लोगों से सफल संवाद करना है, चाहे हकलाकर ही क्यूँ न हो। बस हकलाहट की निराशा से दूर रहे। सकारात्मक सोच को आत्मसात करें।  - अमित 
 
लोग मेरे पास आते हैं- वे सिगरेट पीना छोड़ना चाहते हैं और वे हजारों बार कोशिश कर चुके होते हैं। और फिर कुछ घंटों के बाद, तलब इतनी उठती है, उनका पूरा शरीर, उनका पूरा स्नायु-तंत्र निकोटिन की माँग करने लगता है। फिर वे सारी धार्मिक शिक्षाओं को भूल जाते हैं कि 'सिगरेट पीओगे तो नर्क में गिरोगे।' वे तैयार हो जाते हैं, क्योंकि कौन जानता है कि नर्क है भी अथवा नहीं? पर अभी तो वे इस नर्क में नहीं रह सकते; सिगरेट के अलावा किसी और चीज के बारे में वे सोच भी नहीं सकते।



मैंने लोगों से कहा, 'धूम्रपान बंद मत करो। धूम्रपान करो लेकिन होशपूर्वक, प्रेम से, गरिमा से; जितना इसका आनंद ले सको, लो। जब तुम अपने फेफड़े बर्बाद कर ही रहे हो, क्यों न जितना संभव हो उतनी सुंदरता से, उतनी शान से करो। और फिर ये तुम्हारे फेफड़े हैं, किसी और को इससे क्या लेना-देना है। और मैं तुमसे वायदा करता हूँ कि नर्क तुम्हारे लिए नहीं है क्योंकि तुम किसी और को नुकसान नहीं पहुँचा रहे हो, तुम स्वयं को ही नुकसान पहुँचा रहे हो; और तुमने इसकी कीमत चुकाई है। तुम कोई सिगरेट की चोरी नहीं कर रहे हो, तुम उसकी कीमत चुका रहे हो। तुम्हें भला क्यों नर्क जाना होगा? तुम तो पहले से ही कष्ट उठा रहे हो। किसी को टीबी है और डॉक्टर कह रहा है, 'धूम्रपान बंद कर दो वरना निश्चित रूप से तुम्हें कैंसर हो जाएगा, तुम कैंसर की तैयारी कर रहे हो।' इससे अधिक नर्क और क्या होगा?

लेकिन जब तुमने धूम्रपान करने का निर्णय कर ही लिया है और तुम स्वयं इसे रोक नहीं पा रहे हो तब क्यों न इसे सुंदर ढंग से, होश से, धार्मिकता से ही करो। वे मुझे सुनते जाते हैं और सोचते जाते हैं, 'इस आदमी को तो पागल होना चाहिए। यह कह क्या रहा है- धार्मिकता से!'

और मैं उन्हें बताता हूँ कि सिगरेट के पैकेट को धीरे-धीरे कैसे होशपूर्वक जेब से बाहर निकालो। पैकेट को होश के साथ खोलो, फिर सिगरेट को होश के साथ बाहर निकालो- देखो, उसे चारों तरफ से निहारो। यह इतनी सुंदर चीज है! तुम सिगरेट को इतना प्रेम करते हो, तुम्हें सिगरेट को थोड़ा समय, थोड़ा ध्यान तो देना ही चाहिए। फिर इसे जलाओ; बाहर-भीतर आते-जाते धुएँ को देखो। जब धुआँ तुम्हारे भीतर जाए, सजग रहो। तुम एक महान कार्य कर रहे हो : शुद्ध हवा मुफ्त में उपलब्ध है; इसे दूषित करने के लिए तुम पैसा खर्च कर रहे हो, परिश्रम से कमाया हुआ पैसा। इसका पूरा आनंद लो।

धुएँ की गर्मी, धुएँ का भीतर जाना, खाँसी- सबके प्रति सजग रहो! सुंदर-सुंदर छल्ले बनाओ, ये सब छल्ले सीधे स्वर्ग की ओर जाते हैं। फिर भला तुम कैसे नर्क जा सकते हो; तुम्हारा धुआँ तो स्वर्ग जा रहा है, तो तुम कैसे नर्क जा सकते हो? इसका आनंद लो। और मैंने उन्हें मजबूर किया कि 'इसे मेरे सामने करो ताकि मैं देख सकूँ।'

वे कहते जाते, 'यह सब करना इतना अटपटा, इतना मूढ़तापूर्ण लगता है, जो आप कह रहे हैं।'

मैंने उनको कहा, 'यही एकमात्र उपाय है, अगर तुम इसकी तलब से मुक्त होना चाहते हो।'

और वे ऐसा करते, और मुझसे कहते, 'यह हैरानी की बात है, कि पहली बार मैं साक्षी था। मैं धूम्रपान नहीं कर रहा था- शायद मन या शरीर कर रहा था, लेकिन मैं तो मात्र देखने वाला था।'

मैंने उनसे कहा, 'तुम्हें अब कुंजी मिल गई है। अब सजग रहना और जितना चाहो उतना धूम्रपान करना क्योंकि जितना ज्यादा तुम धूम्रपन करोगे, उतने ही ज्यादा सजग तुम होते चले जाओगे। दिन, रात में, आधी रात में, जब तुम्हारी नींद खुले तब धूम्रपान करना। इस अवसर को मत गँवाओ, धूम्रपान करो। डॉक्टर की, पत्नी की चिंता मत करो; किसी की भी चिंता मत करो। बस एक बात का ध्यान रखना कि सजग रहना। इसे एक कला बना लेना।'

और सैकड़ों लोगों ने यह अनुभव किया कि उनकी तलब चली गई। सिगरेट चली गई, सिगार पीने की आदत छूट गई। धूम्रपान की इच्छा तक... पीछे मुड़कर देखने पर, उन्हें भरोसा भी नहीं आता कि वे इतने बंधन में थे। और इस कारागृह से बाहर आने की एकमात्र कुंजी थी- सजगता, जागरूकता।

जागरूकता तुम्हारे पास है, बस कुल बात इतनी है कि तुमने कभी इसका उपयोग नहीं किया है। इसलिए आज से ही इसका उपयोग करो ताकि यह तीक्ष्ण से तीक्ष्ण होती चली जाए। इसका उपयोग न करने से इस पर धूल जमा हुई है।

किसी भी कृत्य में-उठने में, बैठने में, चलने में, खाने में, पीने में, सोने में- जो कुछ भी तुम करो, इस बात का स्मरण रखकर करो कि साथ-साथ जागरूकता की, होश की अंतर्धारा भी तुम्हारे साथ-साथ चलती रहे। और तुम्हारे जीवन में एक धार्मिक सुगंध आनी प्रारंभ हो जाएगी। और सभी प्रकार की जागरूकता, अमूर्च्छा ठीक है और सभी प्रकार की मूर्च्छा गलत है।
- ओशो रजनीश

4 comments:

Satyendra said...

As I was reading it, I realised that Voluntary stuttering is 100% based on what Osho is saying.. And this is why it works. It certainly did for me..
Thanks Amit for sharing..

jasbir singh said...

Stammering is not natural. More you become aware, more you become natural and stammering goes away.
Awareness certainly works.

GORAV DATTA - I am Learning said...

Wah ! kamal ka likha hai apne

Kunwar said...

Yes right.....n jasbir g n sachin sir ap bhi bilkul right ho.......kunwar