June 26, 2012

दूसरों के मन को समझें . . . !


"मैं बहुत अकेला हूँ. कोई मेरी बात नहीं सुनता. कोई मेरी मदद नहीं करता. 
लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं, मुझे अपमानित करते हैं." 

हममें से अधिकतर लोगों के मन में इस तरह के गैर जरूरी विचार आते रहते हैं. कभी किसी ने फ़ोन रिसीव नहीं किया, कभी कोई आपके एस.एम.एस. का रिपलाय नहीं कर पाया, कभी कोई जल्दी में होने के कारण आपसे ठीक से बात नहीं कर पाया, कोई आपको समय नहीं दे पाता. . . कि हम खुद सोच में डूब जाते हैं. ऐसा लगता है कि हकलाने के कारण लोग हमें इगनोर कर रहे हैं. लेकिन यह सोच सही नहीं है. 

सच तो यह है कि हर इंसान इस तरह के व्यवहार का सामना लगभग रोज़ ही करता है. जरा सोचिए, आपका कोई दोस्त गंभीर रूप से बीमार है और दो-चार दिन आपके गुड मार्निंग एस.एम.एस. का उत्तर नहीं दे पाया और आप खुद ही सोच लें कि वह दोस्त आपको इगनोर कर रहा है. तो यह आप अपने दोस्त और दोस्ती के साथ न्याय नहीं कर रहे होंगे.  
हकलाहट के साथ हम लोगों में ढेर सारी खूबियाँ हैं. और हमें अपनी इन्ही खुबिओं को निखारने कि कोशिश करते रहना चाहिए. हमें दूसरे लोगों के मन, उनकी परेशानियो को भी समझना चाहिए. अगर कोई आपको हकलाते हुए देखकर हँसता है तो सिर्फ इसलिए क्योकि उसे हकलाहट के बारे में सही जानकारी नहीं होती. 

मानव जीवन और सामाजिक प्राणी होने के नाते हमारा यह दायित्व बनता है कि हम दूसरे लोगों के मन कि बात या उनकी दिक्कतों को जानने और समझने का प्रयास करें. इसके बाद ही किसी के बारे में कोई राय कायम करें. 

एक कुशल वक्ता वही हो सकता है जो सुनने वालों के मन को और उनकी जरूरतों को खुद ही समझ ले. यानी वह वही बोले जो दूसरों के मन को खुशी दे सके.  
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Amitsingh Kushwah,
Satna (MP)
Mobile No. 093009-39758

1 comment:

Satyendra said...

Very correct!
Amit, I am impressed by the way you are able to put together a picture which goes so well with your post!
These little posts can help many pws to recover from "Cognitive distortions", that is almost always caused by our stammering experiences..
Finally, it is we who have to change- not the world. The world will change at its own pace- we need worry too much about the world..
Thanks!
(My Hindi keyboard is not working today)