पिछले दिनों हकलाने वाले एक दोस्त का फ़ोन आया था. बातचीत के दौरान उन्होंने बताया - "हकलाने के कारण कंप्यूटर और इंटरनेट सीखने के बारे में नहीं सोचा, क्योकि मैं चाहता था की पहले मैं अपनी हकलाहट को ठीक करूँ, फिर कोई दूसरी चीज के बारे में सोचूं."
यह सुनकर मुझे ज़रा भी आश्चर्य नहीं हुआ, क्योकि एक हकलाने वाले व्यक्ति के लिए सबसे पहली प्राथमिकता होती है अपनी हकलाहट को ठीक करने की कोशिश करना, यह जरूरी भी है. लेकिन हकलाहट के कारण जिन्दगी के दूसरे जरूरी कामों को छोड़ देना भी समझदारी का काम नहीं कहा जा सकता.
शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है जीवन के लिए तैयारी. हम अपनी हकलाहट को लेकर ही हमेशा बैठे रहें यह ठीक नहीं. जीवन चलाने के लिए धन की जरुरत होती है और धन कमाने के लिए अपनी क्षमताओं को निखारना, नई चीजों को सीखना जरूरी है. प्रोफेशनल युग में ज्ञान और कौशल दोनों का बहुत अधिक महत्त्व है.
आप कम्पूटर एनीमेशन, वेब डिजाइन, मल्टीमीडिया जैसे कई फील्ड में पार्ट टाइम या फुल टाइम काम करने के लिए ढेरों कोर्स करके अच्छा जॉब पा सकते हैं. जब आर्थिक निर्भरता आती है तो मन में एक आत्मविश्वास आता है.
और मैं डिलीवरी बॉय से रिपोर्टर बन गया . . .
एक और ज़रूरी बात यह है की शुरू में जो भी काम मिले मन लगाकर करें, कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता. मैने शुरूआत में भोपाल में एक कोरियर सर्विस में डिलीवरी बॉय की पोस्ट पर १,५०० (एक हजार पांच सौ रूपए) में लगभग आठ महीने तक काम किया था, पूरी ईमानदारी और मेहनत से. इसके बाद एक संयोग हुआ की एक कोरियर अखबार के आफिस का आया, जब मै वह देने के लिए गया तो वहां के सम्पादक जी सामने बैठे थे जो की मेरे परिचित थे और मेरी लेखन प्रतिभा से भी. उन्होंने मुझे बैठने को कहा और बातचीत के दौरान मुझे अपने अखबार में रिपोर्टर के पद पर काम के लिए प्रस्ताव दिया. मैंने तुरंत इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. मै हकलाता था इसलिए अखबार के मालिक ने इंटरव्यू के दौरान मुझे नौकरी देने से मना कर दिया था, लेकिन सम्पादक जी ने मुझ पर विश्वास करते हुए, अपने रिस्क पर मुझे नौकरी पर रखवा दिया. कुछ समय काम करने के बाद जब अखबार के मालिक ने मेरी रिपोर्ट्स को पढ़ा तो खुद अपने पास बुलाकर मेरी तारीफ़ की.
यहाँ मै यह कहना चाहता हूँ की मेहनत और खुद पर भरोसा करके हम अपनी राह को आसान बना सकते हैं. अगर सरकारी जॉब ना भी मिल पाएं तो भी प्राइवेट सेक्टर में छोटे-बड़े हर तरह के काम की भरमार हैं, बस उसके अनुसार कौशल विकशित करें और लग जाएं काम पर...
और साथ ही अपनी रुचिओं के अनुसार भी कुछ सीखते रहें, जैसे गिटार बजाना, कोई इनडोर या आउट डोर गेम, संगीत. हाँ, हमेशा इंटरनेट से चिपके रहने की सलाह मै अपने दोस्तों को नहीं दूंगा.
- अमित सिंह कुशवाह.
Mo. No. 0 9 3 0 0 9 - 3 9 7 5 8
10 comments:
Wow- dear Amit I did not know about this achievement of yours - Yes, Intentions matter, what work we do is not so important.. When we do justice to "small" things, we get "bigger" responsibilities..and stammering does not stop us; what stops us is only the fear- fear of stammering, fear of failing..
Thanks a lot for this SHARING..I am sure many young friends will learn a lot from your experiences...
This is a very inspiring story..Many thanks to the author for sharing it..
nice post...
Thank you amit ji for posting such a true inspiration experiences of your's. Now i became a fan of your's blog.
Amit ji, thanks for sharing such a wonderful experience with us. It's really a source of big motivation for us.
Sikander
waah ,kya likha hai aapne . aapke kahani sach me dusro ke leye parerna hai
Amit, aap to chupae rustam niklae! Aapkae houslaen aur mehanat ko salam. please apnae anubhavun ke bare main aise hi likhate rahen
Amit,
You are using your talent rightly and for a great cause.
My day has started very well after reading your story.. Expect many more from you.. Thanks
Nice post Amit ji!! You every post is a source of knowledge for every one.
As in other City, Tisa Meeting is going to be held in Nashik. so who is interested to join this meeting can contact on following No.
7709583602
Sachin Ingle.
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