मुझे टीसा से जुड़े हुए लगभग डेढ़ साल हो गए हैं. इस दौरान मैंने टीसा के साथ जुड़कर जो कुछ किया और जो हकलाहट के बारे में जान पाया उसने हकलाहट के बारे में मेरी सोच को बदला, और अब मैं खुद को एक बेहतर स्थिति में पाता हूँ.
टीसा से जुड़ने के क्या लाभ हैं यह मैं अपने अन्य दोस्तों से शेयर करना चाहता हूँ.
१. टीसा को ज्वाइन करने के बाद आपको मालूम होता है की आप हकलाने वाले अकेले व्यक्ति नहीं हैं. बल्कि हमारी तरह और भी कई लोग हैं जो इस चुनौती का सामना कर रहे हैं.
२. टीसा में आने के बाद हम यह समझ पाते हैं की सिर्फ एक माह में हकलाहट को ठीक करने का दावा करने वाले लोग और उनके विज्ञापन भ्रामक हैं और झूठे भी हैं.
३. टीसा के स्वयं सहायता समूह की मीटिंग्स में जाकर हम अन्य हकलाने वाले दोस्तों से अपनी समस्याओं पर खुलकर बातचीत करके तनावमुक्त होते हैं.
४. टीसा में आकर हमें बोलने की कई तकनीकों की जानकारी होती है, जैसे बाउंसिंग. हम इनका इस्तेमाल करके सार्थक संवाद कर पाते हैं.
५. प्रोफेशनल स्पीच थेरेपी का कोर्स सिर्फ क्लिनिक तक ही सीमित होता है जबकि टीसा में हम इनडोर और आउटडोर दोनों तरह की गतिविधियाँ करते हैं.
६. टीसा में आकर हम अपने संवाद कौशल को बेहतर बनाने की खुद प्रयास करते हैं, जबकि स्पीच थेरेपी में हम सब कुछ स्पीच थेरेपिस्ट पर छोड़ देते हैं.
७. टीसा से जुड़कर हम अपनी हकलाहट के लिए अपने परिवार और समाज को दोष देना बंद करते हैं. और उनके बारे में सकारात्मक सोच का विकास होता है.
८. टीसा हमें हकलाहट को खुले मन से स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है, इससे हम हकलाहट को छिपाने की नाकाम कोशिश नहीं करते.
९. टीसा हमें बताता है की हम हकलाहट के बावजूद कैसे अर्थपूर्ण संवाद कर सकते हैं.
१०. टीसा से जुड़े हुए कई डाक्टर, इंजीनीयर, प्रोफेसर, टीचर और अन्य उच्च पदों पर कार्यरत हकलाने वाले लोगों के बारे में जानकर और उनसे मिलकर यह जान पाते हैं की हकलाहट के बावजूद भी हम अपने सपनों को साकार कर सकते हैं और हकलाहट करियर में बाधा नहीं है.
और सबसे बड़ी बात यह है की टीसा ने दी है हमें वजह मुस्कुराने की . . . !
- अमितसिंह कुशवाह,
Mo. 0 9 3 0 0 9 - 3 9 7 5 8
टीसा से जुड़ने के क्या लाभ हैं यह मैं अपने अन्य दोस्तों से शेयर करना चाहता हूँ.
१. टीसा को ज्वाइन करने के बाद आपको मालूम होता है की आप हकलाने वाले अकेले व्यक्ति नहीं हैं. बल्कि हमारी तरह और भी कई लोग हैं जो इस चुनौती का सामना कर रहे हैं.
२. टीसा में आने के बाद हम यह समझ पाते हैं की सिर्फ एक माह में हकलाहट को ठीक करने का दावा करने वाले लोग और उनके विज्ञापन भ्रामक हैं और झूठे भी हैं.
३. टीसा के स्वयं सहायता समूह की मीटिंग्स में जाकर हम अन्य हकलाने वाले दोस्तों से अपनी समस्याओं पर खुलकर बातचीत करके तनावमुक्त होते हैं.
४. टीसा में आकर हमें बोलने की कई तकनीकों की जानकारी होती है, जैसे बाउंसिंग. हम इनका इस्तेमाल करके सार्थक संवाद कर पाते हैं.
५. प्रोफेशनल स्पीच थेरेपी का कोर्स सिर्फ क्लिनिक तक ही सीमित होता है जबकि टीसा में हम इनडोर और आउटडोर दोनों तरह की गतिविधियाँ करते हैं.
६. टीसा में आकर हम अपने संवाद कौशल को बेहतर बनाने की खुद प्रयास करते हैं, जबकि स्पीच थेरेपी में हम सब कुछ स्पीच थेरेपिस्ट पर छोड़ देते हैं.
७. टीसा से जुड़कर हम अपनी हकलाहट के लिए अपने परिवार और समाज को दोष देना बंद करते हैं. और उनके बारे में सकारात्मक सोच का विकास होता है.
८. टीसा हमें हकलाहट को खुले मन से स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है, इससे हम हकलाहट को छिपाने की नाकाम कोशिश नहीं करते.
९. टीसा हमें बताता है की हम हकलाहट के बावजूद कैसे अर्थपूर्ण संवाद कर सकते हैं.
१०. टीसा से जुड़े हुए कई डाक्टर, इंजीनीयर, प्रोफेसर, टीचर और अन्य उच्च पदों पर कार्यरत हकलाने वाले लोगों के बारे में जानकर और उनसे मिलकर यह जान पाते हैं की हकलाहट के बावजूद भी हम अपने सपनों को साकार कर सकते हैं और हकलाहट करियर में बाधा नहीं है.
और सबसे बड़ी बात यह है की टीसा ने दी है हमें वजह मुस्कुराने की . . . !
- अमितसिंह कुशवाह,
Mo. 0 9 3 0 0 9 - 3 9 7 5 8
3 comments:
हाँ अमित, वाकई में हकलाने वाले लोगों से लगातार मिलते रहने से अपने आप बहुत सारे बदलाव आ जाते हैं
हाँ- बहुत सुन्दर। अगर आप ऐसे ही लिखते रहे तो सम्भवत: मै भी हिन्दी मे पोस्ट करना शुरु कर दूँ..
अपनी जुबान मे लिखने का मजा ही कुछ और है..
Aapne toh TISA ka full defination de diya hai amit ji, bilkul yahi haal hota hai jo log TISA se judte hai.Aapka article hamesha padhne layak hota hai.
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