August 15, 2011

खुलकर बोलो.. क्योकि हम आजाद हैं...!



देश की आजादी का जश्न हमें अपने आजादी के महत्त्व कि याद दिलाता है और कर्तव्यों के प्रति सचेत करता है.

हमारे संविधान ने हमें अभिव्यक्ति कि स्वतन्त्रतता प्रदान की है, अपनी सीमाओं को और लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखकर बोलने की आजादी है हमें.

अक्सर हकलाने वाले साथी अपनी बात सही तरीके से अभिव्यक्त कर पाने में कठिनाई महसूस करते हैं. सबसे बड़ा डर यह होता है कि अगर हम किसी शब्द पर रूक गए तो सामने वाला क्या सोचेगा? अपनी हकलाहट को छुपाने कि नाकाम कोशिश करते हैं हम. जब संविधान ने हमें बोलने की आजादी दी है, तो फिर बोलने में कैसा संकोच? जहां तक समाज और अन्य लोगों कि बात है तो आप ही बताइए कि दुनिया में ऐसा कौन सा व्यक्ति है, जिसकी आलोचना नहीं होती, उसकी कमियों का मजाक नहीं उड़ाया जाता? शायद आपके पास एक भी ऐसा नाम नहीं होगा.

कहने का मतलब यह है कि हकलाहट को छुपाने के बजाए उसे खुले दिल से स्वीकार करें और खुलकर बोलें. अगर आप एक सांस में दो शब्द भी सही तरीके से बोल पाएं तो आपका बोलना सार्थक होगा. बोलने कि जो भी तकनीकें हैं उनका आम लोगों के सामने अधिक से अधिक अभ्यास करें, निश्चित ही दूसरे लोगों की प्रतिक्रिया अच्छी होगी और उनका उचित सहयोग भी मिलेगा.

तो फिर बोल दे जो बोलना है...!

- अमित सिंह कुशवाह,
सतना, मध्य प्रदेश.

Mo. 0 9 3 0 0 9 - 3 9 7 5 8

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