अखबारों में अक्सर ऐसे विज्ञापन प्रकाशित होते हैं जिनमे हकलाहट दोष का एक महीने में सफल इलाज करने की गारंटी दी जाती है. आज से लगभग 6 साल पहले मै भी इसी तरह एक विज्ञापन के चक्कर में आकर अपने पैसे बर्बाद कर चूका हूँ. और वहां पर जाने पर मुझे एक माह में सिर्फ इतना ही बताया गया की आराम से बात करना है.
बचपन में हकलाहट की समस्या पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता और स्कूल की पढाई पूरी करने के बाद जब कालेज लाइफ शुरू होती है और करियर के चुनाव का समय आता है तब इस समस्या पर परिवार वाले चिंता करते हैं.
आमतौर पर कुछ महीने तक स्पीच थेरपी लेने के बाद भी जब कोई खास सुधार नहीं होता तो हकलाहट दोष से पीड़ित व्यक्ति निराश हो जाता है और स्पीच थेरपी व अभ्यास करना बंद कर देता है. मेरे साथ भी कई बार ऐसा हुआ है. मन में यह विचार आता है की क्या परिणाम निकला इतनी मेहनत करने से ?
यहाँ पर मै सभी दोस्तों से कहना चाहता हूँ की कई सालों की गलत आदत को ठीक करने के लिए निरंतर अभ्यास और धैर्य की बहुत जरूरत होती है. इस दिशा में प्राणायाम करना, माउथ आर्गन बजाना, बासुरी बाजाना भी सहायक सिद्ध हो सकते हैं.
स्पीच थेरपी के ढेरों अभ्यास है और इनको अपनाया जा सकता है. घर पर नियमित अभ्यास के अलावा दिन में जब कभी और जहाँ भी समय मिले तो 10 मिनट के लिए ही सही अभ्यास जारी रखें. साथ ही हर समय बात करते हुए भी स्पीच की तकनीकों का इस्तेमाल करें. इसे एक जूनून बना ले. जिस प्रकार प्रतिदिन हमें भोजन की जरूरत होती है उसी तरह वाणी में सुधार के लिए हर हालत में रोज अभ्यास करना चाहिए और समय न मिलने के बहाने से बचना चाहिए.
एक मशहूर शायर कहते हैं -
"लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती."
. . . तो लगे रहो मुन्नाभाई !
- अमितसिंह कुशवाह,
स्पेशल एजुकेटर (एच.आई.)
इंदौर, मध्य प्रदेश (भारत)
मोबाइल : 0 9 3 0 0 9 - 3 9 7 5 8
विकलांगता से सम्बंधित मेरे एक ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
www.specialcitizenindia.blogspot.com
3 comments:
अमित जी - बहुत सुन्दर | एक दम ठीक कहा आपने- कोई भी तरीका अपनाओ, मगर उसे पर्याप्त समय दो, तो वह काम करेगा..अपनी मदद आप के सिद्धांत के तहत बहुत कुछ किया जा सकता है- बस थोड़े हौसले और लगन की जरूरत है | कृपया इसी तरह लिखते रहे
nicely written
Amit ji..aapne bilkul sahi likha hai.
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