March 2, 2016

अनुवाद : अचानक बुरे दौर की वापसी...



मैं पिछले 6-7 महीनों से तीसा के एक स्वयं सहायता समूह का सदस्य था. बैंगलोर के स्वयं सहायता समूह में मुझे अपने बोलने की छमता को और अधिक निखारने का मौका मिला, जिसके बारे में कभी कल्पना भी नहीं किया था. दिसंबर 2016 में जीवन का पहला भाषण देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. लगभग 20 लोगों के सामने एक कविता पाठ करते हुए मैं आत्मविशवास से भर उठा. (एक बार इस कविता के लिए मुझे प्रथम पुरस्कार मिला था.) बैठक के दौरान आत्मविश्वास के साथ प्रशन किया और पूछे गए सवालों का जवाब दिया. कुछ समय बाद इतनी सारी अच्छी चीजों के बाद भी ऐसा लगा की सब कुछ ख़त्म हो गया. मैं पहले की स्थिति में दोबारा आ गया, जब मैं खूब हकलाता था.


इस बात का अहसास मुझे तब हुआ जब एक दुकान पर सामान खरीदने के लिए गया और उस वस्तु का नाम बताने में बहुत तकलीफ हुई, मैं अटक गया. इसके बाद एक घटना में और भी बुरा अनुभव मिला. जैसे, होटल में अपना रूम नंबर न बता पाना, टैक्सी में बैठने के बाद पता नहीं बोल पाया, जहां मैं जाना चाहता था. मैं बोलने के मामले में बुरे अनुभवों का रोज़ सामान करने लगा. 

यह सब जब मेरे साथ घटित हो रहा था तो मैं एकदम अकेला हो गया, चिंता में डूब गया, मेरा  आत्मविश्वास कमजोर होने लगा. मैं नहीं समझ पा रहा था दोबारा कैसे अपनी बोलने की छमता को वापस हासिल करूँ? अंतर्मन में बहुत उलझन थी, जिसे चिंता ने और अधिक इजाफा किया. मैं खुद अपनी मदद नहीं कर पा रहा था. मैं जितना ज्यादा इस विषय पर सोचता, बदले में बुरे परिणाम सामने आते. जब कोई भी उपाय कारगर नहीं हुआ, तब अपनी परेशानी को दूसरों के साथ साझा करने का विचार मन में आया. आखिर बैंगलोर स्वयं सहायता समूह के व्हाट’स एप्प ग्रुप पर अपने अनुभवों को सबके सामने रखा. इस सुंदर समूह के लगभग सभी सदस्यों ने अपनी सामर्थ्य के अनुसार मेरी मदद की. यह कहना अतिश्योक्ति होगा की बोलने के मामले में मैंने अपनी पहले वाली अवस्था को पा लिया. लेकिन हाँ, ऐसा कुछ जरूर हुआ जिसने मेरी मदद की. मैं यह समझ पाया की हमारी जिन्दगी में अपरिहार्य कारणों से उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं, हकलाने के मामले में भी... कोई भी व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता की वह हमेशा खुश रहेगा. कुछ गलतिओं के साथ उतार-चढ़ाव का सामना सभी को करना पड़ता है. हमें इन असफलताओं के बारे में ज्यादा सोच विचार नहीं करते हुए, इनसे बाहर निकलने की कोशिश करनी चाहिए.                                 

जब मैं गुजरे हुए वक्त को याद करते हुए सोचता हूँ की क्या चीज मुझे परेशान करती है. मैं ठीक से नहीं समझ पाता की अपनी स्पीच को बेहतर करने के मेरे प्रयास में कहाँ कमी रह गई. परन्तु मैं अपने कदम पीछे ले जाने के लिए तैयार नहीं हूँ. जीवन इतना आसान नहीं है और कोई भी मंजिल सिर्फ एक बार कोशिश करने नहीं मिलती. हम बार-बार नीचे गिरेंगे, खड़े होंगे तब अपने लक्ष्य को पा सकते हैं. इसी तरह हमें अपनी हकलाहट पर कार्य करने की जरूरत है. हम लगातार प्रयास करके, गलतियां करके, बुरे अनुभवों से गुजरकर ही एक कुशल संचारकर्ता बन पाएँगे. 



  • मोहित जायसवाल (बैंगलोर)      

   

3 comments:

Satyendra said...

बहुत सुन्दर अनुवाद.. अमित, धन्यवाद्

भैया मोहित, जब भी मिले अमित से, तो उसे समोसा तो जरुर खिलाना पड़ेगा, है ना? और मुझे भी, क्योकि ये मेरा भी आईडिया था.. :))

चलो, बहुत से हकलाने वालो के हितो को ध्यान में रखते हुए, हिंदी में भी कुछ न कुछ लिखते रहे..

Mohit Jaiswal said...

धन्यवाद अमित.. बहुत अच्छा अनुवाद किया हुआ है।

सचिन सर यह इस तरह का प्रयास वास्तव में अच्छा है । इस तरह से हम अधिक लोगों तक अपने अनुभवों को पहुँचा सकते हैं । एक बार फिर से धन्यवाद । :)

Er. Umesh said...

mohit bhai..isi ka naam zindgi hai..uthar chadav aayenge hi..or aane bhi chahiye. har isthi me apne aap ko santulit karna hi..adarsh vayakti ki pehchan hai