September 26, 2015

पिता को चाहिए आपका प्यार!

अब घर बहुत सूना सा लगता है। पापा के रूम में जाने का मन नहीं करता। उनके बिस्तर, तकिया, कपड़े और हर छोटे-बड़े सामान को बार-बार छूने और सीने से लगाने की कोशिश करता हूं। पापा का चेहरा बार-बार आंखों के सामने आता हैं। उनकी कहीं गई बातों को यादकर बार-बार मन दुःखी हो उठता है। जिन्दगी में पहली बार इतनी ज्यादा तकलीफ का अनुभव हुआ है।

पिता के साथ मेरे रिश्ते संघर्षपूर्ण रहे। प्यार और स्नेह की जगह नफरत और तनाव को महसूस किया। ऐसा नहीं है कि मेरे पिता हमेशा गलत थे, और मैं एकदम सही था। हमेशा अपनी हकलाहट के लिए पिता को दोषी मानना, उनके गुस्से को नफरत का रूप देना, यही सब चलता रहा। कभी पिता के स्नेह और प्यार को महसूस करने का मौका ही नहीं मिला।

इसी तरह जिन्दगी चलती रही। एक दिन अचानक 10 फरवरी, 2014 को मेरे पिता सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गए। उनकी आयु 62 वर्ष थी। काफी इलाज के बाद भी वे ठीक नहीं हुए। उनकी खामोशी बरकरार रही। वे कभी होश में नहीं आ पाए।

अचानक आई इस विपदा ने मुझे तमाम चुनौतियों का सामना करने का साहस दिया, साथ ही पिता को  समझने की ओर अग्रसर किया। अपने पिता को हर दिन, हर पल जीवन से संघर्ष करते देखना काफी दुखदायक अनुभव रहा है मेरे लिए। इसी दौरान अपने पिता की सेवा करने और उनके प्यार को महसूस करने का मौका मुझे मिला।

पिताजी के ठीक होने की उम्मीद ज्यों-ज्यों कम होती गई उनके प्रति मेरा प्यार बढ़ता गया। पिछले 17 महीने के दौरान मैंने पिता के स्नेह और प्यार को शिद्दत के साथ महसूस किया। वे खामोश थे, लेकिन उनके प्यार की तपिश मुझे हमेशा महसूस होती रहेगी।

अक्सर हम बच्चे/छोटे यह समझते हैं कि प्यार पाने का अधिकार सिर्फ हमें ही है। हम बड़ों से प्यार, स्नेह और सहानुभूति की अपेक्षा करते हैं, लेकिन बदले में उन्हें क्या देते हैं? शायद कुछ नहीं। यहां तक की धन और सम्पत्ति भी अपने बच्चों पर न्यौछावर कर देने के बाद भी प्यार के दो मीठे बोल के लिए बड़े तरस जाते हैं, यह कहां का न्याय है?

सच तो यह है कि हमारे पिता, माता और अन्य बुजुर्ग लोगों को प्रोत्साहन और प्यार की जरूरत होती है हमेशा, ताकि वे उपेक्षित और एकांत महसूस न कर पाएं। हो सकता है कि शादी, करियर या किसी अन्य मसले पर आपका निर्णय बड़ों से अलग हो, लेकिन इस पर शांत मन से बातचीत की जा सकती है। समय के अनुसार आपकी रूचि और विचार आपके पिता से भिन्न हो सकते हैं, लेकिन उन पर विचार-विमर्श करने का मौका हम क्यों गवां देते हैं?

आज मैं अपने पिता की कमी को जीवन में महसूस करता हूं। काश! मैं अपने पिता को बहुत पहले, समय रहते समझ पाता। कुछ यादगार पल उनके साथ गुजार पाता।

आप सब साथियों से अनुरोध है कि आप अपने पिता से अपने रिश्ते मधुर बनाने का प्रयास कीजिए। उनसे खुलकर बात करें। उन्हें सम्मान और प्रोत्साहन दें, ताकि आप इस महान् रिश्ते का जी भरकर जी पाएं और महसूस कर पाएं।

- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758

2 comments:

Satyendra said...

Thank you Amit for sharing your thoughts. I have met many pws who had a difficult relationship with their fathers. I too was one of them. I thought that my stammering was caused and sustained by my father and his scoldings. Now, 40 years later, I realize that he did what was best for me- to the best of his knowledge. Now, I have nothing but gratitude for him... But as you say, I can no more convey it to him. I hope others will take the cue- and work on their relationships with everyone around them..
Thank you once again...

Ravi said...

अमित आपके दुःख में हम शामिल है...
साथ में मैं ये भी कहना चाहूँगा कि आपका सन्देश सीधे दिल को छूता हैं.…
बहुत बहुत धन्यवाद आपका यहं साझा करने के लिए.…