October 16, 2013

Fluency के पीछे मत भागिए . . . !

कुछ समय पहले एक हकलाने वाले मित्र से बातचीत हो रही थी। उन्होंने कहा कि बस, एक साल बाद वे Fluency पाने के बाद टीसा को छोड़ देंगे।

मित्र की यह बात सुनकर मुझे आश्चर्य तो हुआ, लेकिन उनका उत्तर गौर करने लायक है। हर हकलाने वाला यही चाहता है कि वह धाराप्रवाह बोलने लगे। इस चाहत में कई लोग अपना समय और धन दोनों बर्बाद करते हैं। बोगस इलाज/क्योर के जाल में फंसकर शोषण का शिकार होते हैं।

हमारे समाज में इंसान के लिए एक निर्धारित मानदण्ड/अपेक्षाएं हैं, और जो व्यक्ति इन पर खरा नहीं उतरता उसे उपेक्षित होना पड़ता है। धाराप्रवाह बोलना भी एक तरह की अनिवार्य आवश्यकता समझी जाती है। जरा गौर कीजिए, पशु, प़क्षी भी आपस में सम्वाद करते हैं, लेकिन उनकी वाणी इतनी विकसित नहीं की वे हमारी तरह आवाजें निकाल सकें। तो क्या यह समझा जाए कि उनका जीवन व्यर्थ है? कतई नहीं। पशु/पक्षी भी अपने दायरे में एक सार्थक संचार करते हैं।

अपने आसपास कुछ ऐसे लोग आपने अवश्य देखे होंगे जो बोल व सुन नहीं सकते। बधिर लोग इशारों की भाषा इस्तेमाल करते हैं। हमारी भाव भंगिमा, बाडी लैग्वेज, मुस्कुराहट आदि अप्रत्यक्ष रूप से संचार का ही काम करते हैं। हम बिना कुछ बोले अपनी मनःस्थिति दूसरों के सामने व्यक्त करते हैं।

यहां एक अहम सवाल यह है कि क्या सिर्फ धाराप्रवाह बोलना ही मानव जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है? और हम उसके पीछे भागते रहें।

यह जानने के लिए हमें इस बात पर विचार करना होगा कि हम धाराप्रवाह क्यों बोलना चाहते हैं? निश्चित ही सही संवाद/संचार करने के लिए। उपर के कुछ उदाहरणों से यह भलीभांति समझा जा सकता है कि सही कम्यूनिकेशन करने के लिए धाराप्रवाह बोलना ही जरूरी नहीं है। जो लोग धाराप्रवाह नहीं बोल सकते वे भी संचार करते हैं, भले ही उनका संचार करने का तरीका अलग हो।

टीसा हमेशा से ही कम्यूनिकेशन स्किल पर फोकस करता रहा है, इसलिए हम अपने आयोजन को कम्यूनिकेशन वर्कशाप कहते हैं, Fluency वर्कशाप नहीं।

एक हकलाने वाला व्यक्ति अगर किसी शब्द पर अटक जाता है, तो जबरन बोलने की कोशिश करने के बजाय 2-3 बार रूककर, गहरी सांस लेकर, बोलने की स्पीड को नियंत्रित कर निश्चित ही उस शब्द को बोल पाएगा। ऐसा करने से कोई भी व्यक्ति उसे रोक नहीं सकता।

वास्तव में धाराप्रवाह बोलने की चाहत हमें दूसरों से अपनी तुलना करने का एक मौका देती है। और यह करना हमारे लिए दुःख का कारण बनता है। आखिर हम दूसरों से अपनी तुलना क्यों करें? हम जैसे हैं, वैसे ही क्यों नहीं खुद को स्वीकार कर लें।

जहां तक मेरा अनुभव है, जब से मैं टीसा के सम्पर्क में आया हूं, हकलाहट के बारे में एक नई सोच और विचार ने जन्म लिया। अब मैं खुद को या अपने परिवार को हकलाहट के लिए जिम्मेदार नहीं मानता। अगर कभी ज्यादा हकलाहट हो भी जाए तो निराश नहीं होता। कोई मेरी हकलाहट सुनकर हंस दे तो टाल देता हूं, दुःखी नहीं होता। मैं सोचता हूं कि अगर हकलाकर ही बोल दिया तो कौन सा अपराध कर दिया?

हकलाहट पर कार्य करने से पहले हकलाहट की स्वीकार्यता के साथ ही फलूएन्सी की चाह को कुछ समय के लिए भूलना जरूरी है। जब आप फलूएन्सी को भूलना शुरू करेंगे तो एक दिन Fluency खुद आपको याद करेगी। आप धाराप्रवाह बोल पाएंगे, बशर्तें हकलाहट पर सही नजरिया, आत्मविश्वास और लगातार अच्छी कोशिशों को जारी रखना होगा।

- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
मो. 09300939758

6 comments:

ABHISHEK said...
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ABHISHEK said...

BAHUT ACHCHE VICHAAR AMITJI... Hamara Samaj ye chahta hai ki sabhi log ek jaise ho jain.. isi karan pws fluency ke peeche bhagta hai.. samaj me bhinnata ki bhi swagat honi chahiye

Anil said...

सही कहे आपने अमित जी की हम धाराप्रवाह क्यों बोलना चाहते हैं? निश्चित ही सही संवाद/संचार करने के लिए। इसके लिए धारा प्रवाह बोलना कोई जरुरी नहीं है,

Satyendra said...

बहुत सही कहा आपने! मुझे आजतक एक भी व्यक्ति नही मिला जो अपनी थिरेपी से संतुष्ट हो -मगर फिर भी लोग ये या वो क्योर सेण्टर या थिरेपी आजमाते रहते है । इस तरह जिंदगी के बेहतरीन साल मृग मरीचिका के पीछे दौड़ते दौड़ते बीत जाते है। जीवन का असली सार - दूसरों से संवाद, दूसरों से जुडना - उपेक्षित रह जाता है । एक वरिष्ठ सदस्य महज फ़्लुएन्सि के लिए पंद्रह किस्म की थिरेपी ले चुकने के बाद बेहद थक गए और तब उन्हें लगा की स्वयं को स्वीकार कर , कम्युनिकेशन स्किल्स पर काम करना ज्यादा सार्थक और आसान हो सकता था ….

Satyendra said...

I think it is a good idea- if people gave their BEST to TISA for just one year- and moved on with their life. Nothing wrong. I am sure wherever they go, they will spread the core ideas- of self & mutual help. And acceptance.
Life long commitment is a difficult thing and should not be expected.. Let TISA be a flowing river, where people benefit and leave, while new people join and the fresh flow is maintained - rather than becoming a stagnant pond of a few "recovered pws"!!.. Just my thoughts! :-))
Very good- thank that friend of yours, wish him all the best and keep challenging TISA..

प्रभु ! कृपा हि केवलम् said...

अमित जी,
छोडने की वही सोच सकता है जिसने ठीक से पकड रखा हो, जिसने पकडा ही नहीं, वो क्या खाक छोडेगा । कई लोग साल मे only 1-2 बार किसी TISA Activity मे शामिल हो जाते हैं... , उन्होने तो पकड ही नहीं रखा ।

TISA को या TISA की अवधारणा को लगभग हर Member ने छोडा हुआ है,
ज्यादातर के लिये TISA की Workshops, SHG, Skype or Hangout sessions , or telephone SHG मे actively participate करने के
बजाय Blog पोस्ट या TISA yahoogroup की mail लिखना या पढना और समर्थन या विरोध मे "दिमागी कसरत" करना ही TISA से जुडा होना है |

मैं आपके दोस्त को एक संदेश देना चाहता हूँ , जो कहते हैं कि "एक साल बाद Fluency
पाने के बाद टीसा को छोड़ देंगे ।"
TISA Fluency की बात नहीं करती है । TISA की मुख्य अवधारणा है Accept करना और Communication पर काम करना । so better to work on it