July 10, 2013

टीसा देता है जीवन को नया आधार


- जितेंदर गुप्ता, नई दिल्ली

मुझे टीसा से जुड़े हुए लगभग 2 साल बीतने वाले हैं। इस दौरान मैंने टीसा के दिल्ली स्वयं सहायता समूह में सक्रिय सहभागिता की, कई इवेन्ट्स में शामिल हुआ और अन्य हकलाने वाले सदस्यों के सतत सम्पर्क में रहा।

पहले मैं हकलाहट को लेकर निराश, हताश रहता था। हमेशा चिन्ता में डूबा रहता। अब वैसी स्थिति नहीं है। टीसा में शामिल होकर मैंने हकलाहट को एक नए नजरिए से देखना और समझना शुरू किया।



मुझे यह समझ में आया कि हकलाहट को हम हकलाने वाले लोगों ने ही सबसे बड़ी समस्या बना लिया है। वास्तव में यह एक अदृश्य और अनचाहा डर है। कई लोगों के लिए हकलाना कोई असाधारण बात नहीं है। वे लोग से सिर्फ हमारी बात को ठीक ढंग से समझना चाहते हैं।

टीसा में कई नए हकलाने वाले दोस्तों से मिलकर हर बार बहुत अच्छा अनुभव होता है। इससे यह ज्ञात होता है कि हकलाने वाले बिना किसी रूकावट के हर क्षेत्र में, हर काम को कर रहे हैं, हर बाधा को सफलतापूर्वक पार करके।

मैं व्यक्तिगत तौर पर यह सोचता हूं कि हकलाहट को हम समस्या ही क्यों मानें। इसे हम अपने जीवन में स्वीकार कर लें, एक साधारण चीज की तरह तो हमारा जीवन आसान और सरल हो जाएगा।

टीसा वास्तव में हकलाने वाले व्यक्तियों को जीवन को एक नया आधार देता है, उन्हें जीने की राह दिखाता है और हर चुनौती का सामना कैसे करना है यह सिखाता है।

टीसा से जुड़कर मैंने अपने जीवन में कई अच्छी चीजों को सीखा, अच्छी आदतों को अपनाया और समाज के और ज्यादा नजदीक आया। यह सब टीसा का ही चमत्कार है।

जय टीसा!

3 comments:

Satyendra said...

बहुत सुन्दर !
पर ध्यान रहे- स्वीकार करने का सही अर्थ है, हकलाने को भूल कर आगे बढना और नई कुशलताएं (skills) सीखना- जिसमे सुनना, समझाना, समझना, प्रस्तुतिकरण, लिखना.. आदि आदि बहुत सी चीजें आती हैं..
अपने विचार इसी तरह बाँ‌टते रहें..
अमित, आपको भी अतिशय साधुवाद..

lalit said...

nice jitendra ....congrats for living good life since 2 year :-)

Anonymous said...

हकलाहट सिर्फ दिमाग का डर है और बोलने का डर है.........बचपन में अगर समूह में या दोस्तों के सामने खूब बोले होते तो बोलने का डर न होता........लेकिन ये अभी भी बिलकुल सही हो सकती है.....मैडिटेशन के द्वारा.......लोग बोलते है तो हम नहीं सुनते या सोचते है की वो क्या बोल रहे है.....तो हम क्यों सोचे की हमारे बोलने पर लोग क्या सोचेंगे.........दोस्तों खुद पे भरोसा रखो और डेली मैडिटेशन करो और दिल खोल के बोलो....