By Pradeep Parmar, (Surednra Nagar, Gujarat)
मेरा नाम प्रदीप परमार है। आयु 30 वर्ष। गुजरात के सुरेन्द्रनगर में रहता हू। पिछले 6 साल से जाब कर रहा हूं।
मुझे बचपन से हकलाहट थी। हकलाहट का अहसास 16 वर्ष की उम्र में हुआ। धीरे-धीरे हकलाहट मुझ पर हावी होने लगी। मैं जितना इसे छिपाने की कोशिश करता यह उतना ही खुलकर सबके सामने आ जाती।
1 साल पहले आमेर, जयपुर गया। वहां स्पीच थैरेपी के दौरान एक ही बात सिखाई जाती है कि बार-बार अपनी हकलाहट को छिपाओ। जब तक वहां पर था, सब ठीक रहा। सोचता था यहां से मेरी हकलाहट पूरी तरह से ठीक हो जाएगी।
आमेर की थैरेपी से कोई फायदा नहीं हुआ। मेरी तकलीफ और ज्यादा बढ़ गई। पहले से ज्यादा तनाव में रहने लगा। आमेर के सर को फोन किया तो उन्होंने कहा कि बोलने की स्पीड कम करो। मैंने स्पीड कम कर दी, लेकिन हकलाहट कम नहीं हुई।
एक दिन मैंने टीसा के बारे में इंटरनेट पर देखा। पहला वीडियो जयप्रकाश सुंडा का प्ले किया। सोचा, जयप्रकाश जी खुद इतना ज्यादा हकलाकर बोल रहे हैं, इनके साथ जुड़कर मैं कैसे ठीक हो पाउँगा?
टीसा में शामिल होने के एक साल बाद समझ में आया कि जयप्रकाश जी ने स्वयं को 90 प्रतिशत रिकवर कर लिया है। वे बिना कोई तकलीफ उठाए मजे से बोलते हैं। उनके अन्दर न तो हकलाने का डर है और न ही हीनभावना।
सचिन सर से मुझे काफी प्रेरणा मिली है। मैंने 25 साल तक अपनी हकलाहट को अस्वीकार किया, उसे छिपाया।
आज मैं आत्मविश्वास के साथ कह सकता हूं कि मेरी स्पीच पहले उतनी अच्छी नहीं थी, जितनी अब है।
आत्मविश्वास आने का कारण एक ही है कि अब डरना छोड़ दिया है। पहले हकलाहट मुझे हर पल डराती थी कि तुम्हें ठीक से बोलना है, बिना रूके। और मैं उसके वश में आकर और भी ज्यादा परेशान होता गया।
अब मैंने हकलाहट को बता दिया है कि तुम्हें जितना बढ़ना है बढ़ जाओ। मैं तुमसे डरने वाला नहीं हूं।
क्या कभी आपने सुना है कि सामान्य बोलने से किसी को भारत रत्न मिल हो? और किसी हकलाने वाले को देश निकाला? नहीं। तो फिर हम सब लोग धाराप्रवाह बोलने के लिए इतने पागल क्यों हैं?
जब धाराप्रवाह बोलने की दौड़ कम हो जाएगी तब एक अदभुत घटना घटैगी। हमें ज्ञात होगा कि हम हकला भी रहे हैं और सामान्य होने का अहसास भी कर रहे हैं। बस हमें और क्या चाहिए?
हमारी बिना अटके बोलने की आदत ही हमें और अधिक हकलाने पर मजबूर करती है।
हमारे एक-दो शब्द हकलाने पर एफिल टावर नहीं गिरेगा और न ही चीन की दीवार खोखली हो जाएगी। सच कहें तो हमारे हकलाने से कुत्ते को भी कोई फर्क नहीं पड़ता।
अगर मैं प्रधानमंत्री बन जाउं तो सभी हकलाने वाले व्यक्तियों को एक ही फरमान दूंगा कि कहीं भी नार्मल बोलने की जरूरत नहीं है। फिर देखें चमत्कार नार्मल स्पीच खुद ब खुद आपके कदमों पर होगी।
मैंने धाराप्रवाह बोलने की कोशिश करना छोड़ दिया है और फर्क भी दिखने लगा है। जैसे-जैसे मेरा डर निकल रहा है, मैं स्वयं को ज्यादा आरामदायक स्थिति में पा रहा हूं।
हकलाहट से पार पाने का एक ही उपाय है उससे दूर मत भागो। और स्वीकार करो कि हां, मैं हकलाता हूं। फिर देखो कमाल!
मेरा नाम प्रदीप परमार है। आयु 30 वर्ष। गुजरात के सुरेन्द्रनगर में रहता हू। पिछले 6 साल से जाब कर रहा हूं।
मुझे बचपन से हकलाहट थी। हकलाहट का अहसास 16 वर्ष की उम्र में हुआ। धीरे-धीरे हकलाहट मुझ पर हावी होने लगी। मैं जितना इसे छिपाने की कोशिश करता यह उतना ही खुलकर सबके सामने आ जाती।
1 साल पहले आमेर, जयपुर गया। वहां स्पीच थैरेपी के दौरान एक ही बात सिखाई जाती है कि बार-बार अपनी हकलाहट को छिपाओ। जब तक वहां पर था, सब ठीक रहा। सोचता था यहां से मेरी हकलाहट पूरी तरह से ठीक हो जाएगी।
आमेर की थैरेपी से कोई फायदा नहीं हुआ। मेरी तकलीफ और ज्यादा बढ़ गई। पहले से ज्यादा तनाव में रहने लगा। आमेर के सर को फोन किया तो उन्होंने कहा कि बोलने की स्पीड कम करो। मैंने स्पीड कम कर दी, लेकिन हकलाहट कम नहीं हुई।
एक दिन मैंने टीसा के बारे में इंटरनेट पर देखा। पहला वीडियो जयप्रकाश सुंडा का प्ले किया। सोचा, जयप्रकाश जी खुद इतना ज्यादा हकलाकर बोल रहे हैं, इनके साथ जुड़कर मैं कैसे ठीक हो पाउँगा?
टीसा में शामिल होने के एक साल बाद समझ में आया कि जयप्रकाश जी ने स्वयं को 90 प्रतिशत रिकवर कर लिया है। वे बिना कोई तकलीफ उठाए मजे से बोलते हैं। उनके अन्दर न तो हकलाने का डर है और न ही हीनभावना।
सचिन सर से मुझे काफी प्रेरणा मिली है। मैंने 25 साल तक अपनी हकलाहट को अस्वीकार किया, उसे छिपाया।
आज मैं आत्मविश्वास के साथ कह सकता हूं कि मेरी स्पीच पहले उतनी अच्छी नहीं थी, जितनी अब है।
आत्मविश्वास आने का कारण एक ही है कि अब डरना छोड़ दिया है। पहले हकलाहट मुझे हर पल डराती थी कि तुम्हें ठीक से बोलना है, बिना रूके। और मैं उसके वश में आकर और भी ज्यादा परेशान होता गया।
अब मैंने हकलाहट को बता दिया है कि तुम्हें जितना बढ़ना है बढ़ जाओ। मैं तुमसे डरने वाला नहीं हूं।
क्या कभी आपने सुना है कि सामान्य बोलने से किसी को भारत रत्न मिल हो? और किसी हकलाने वाले को देश निकाला? नहीं। तो फिर हम सब लोग धाराप्रवाह बोलने के लिए इतने पागल क्यों हैं?
जब धाराप्रवाह बोलने की दौड़ कम हो जाएगी तब एक अदभुत घटना घटैगी। हमें ज्ञात होगा कि हम हकला भी रहे हैं और सामान्य होने का अहसास भी कर रहे हैं। बस हमें और क्या चाहिए?
हमारी बिना अटके बोलने की आदत ही हमें और अधिक हकलाने पर मजबूर करती है।
हमारे एक-दो शब्द हकलाने पर एफिल टावर नहीं गिरेगा और न ही चीन की दीवार खोखली हो जाएगी। सच कहें तो हमारे हकलाने से कुत्ते को भी कोई फर्क नहीं पड़ता।
अगर मैं प्रधानमंत्री बन जाउं तो सभी हकलाने वाले व्यक्तियों को एक ही फरमान दूंगा कि कहीं भी नार्मल बोलने की जरूरत नहीं है। फिर देखें चमत्कार नार्मल स्पीच खुद ब खुद आपके कदमों पर होगी।
मैंने धाराप्रवाह बोलने की कोशिश करना छोड़ दिया है और फर्क भी दिखने लगा है। जैसे-जैसे मेरा डर निकल रहा है, मैं स्वयं को ज्यादा आरामदायक स्थिति में पा रहा हूं।
हकलाहट से पार पाने का एक ही उपाय है उससे दूर मत भागो। और स्वीकार करो कि हां, मैं हकलाता हूं। फिर देखो कमाल!
6 comments:
प्रदीप जी, बहुत सुन्दर बात कही है आपने। हमारे हकलाने से किसी को कोई फर्क नही पड़ता। हम लोग खुद ही डर में जीते रहते है। और जब हम इस डर का सामना करते हैं तो पता चलता है कि यह डर काल्पनिक था। वास्तव में कई लोगों को हमारी हकलाहट से नहीं बल्कि इस बात से ज्यादा मतलब होता है कि क्या बोल रहे है। अपना संदेश, अपनी बात दूसरे लोगों तक पहुचाना आवश्यक है, चाहे हकलाकर ही बोला जाए।
सुदर आलेख के लिए बधाई और आभार।
thanks pradeep for nice post with these line- अगर मैं प्रधानमंत्री बन जाउं
तो सभी हकलाने वाले
व्यक्तियों को एक ही फरमान
दूंगा कि कहीं भी नार्मल बोलने
की जरूरत नहीं है। फिर देखें चमत्कार..........
नार्मल स्पीच खुद ब खुद आपके कदमों पर होगी।
yes, if PWS has gathered courage to do volunteer stuttering with a very big block , definitely चमत्कार hi hota h
Beautiful post. There is a deep message here. Yes, it takes time, but once you understand that you yourself are creating your difficulties- you can make a U-turn and come out of stammering mindset. THAT is the TRUE cure..
आपने बिलकुल सही कहे की हकलाने से कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं बल्कि हकलाने का डर ही हमें तोड़ कर रख देता है। और अमित जी ने भी सही कहे की लोगो को कोई खास फर्क नहीं पड़ता की आप हकलाते हो या नहीं उनको तो केवल इन चीज से काम है की आप जो कहना चाह रहे हो सामने वाले को समझ में आ जाए।
आप का हिंदी लेखन अच्छा है। नियमित रूप से अपने अनुभव - विचार टीसा ब्लॉग पर लिखते रहिएगा । जिससे लोगो को और स्टेमरिंग के बारे में समझने का मौका मिलेगा । और वैसे भी ८ ० करोड़ को हिंदी भाषियों को छोड़कर अंग्रेजी में पोस्ट दी जा रही है जो की उन्हें समझने में दिक्कत आती है या नहीं आती है।
Hi
अति सुंदर प्रदीप जी, आपने सच में टीसा को सही मायने में समझा और उसका अनुसरण किया है।
Thanks for Nice post
Anand
SHG Delhi
आपका फोन नंबर दीजिए प्लीज
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