May 24, 2012

हम हकलाते हुए भी बेहतर जिन्दगी जी सकते हैं . . . !!!


पिछले दिनों इस ब्लॉग में मेरी एक पोस्ट पर एक पाठक ने एक टिप्पणी में कुछ सवाल किए. जैसे - क्या ऐसा नही हो सकता की हकलाने वाला व्यक्ति, हकलाते हुए भी अपना भाषण पूरा करे, और हकलाते हुए ही चुनाव जीत जाए !! क्या जीत पाने के लिए हकलाने के ऊपर जीत पाना आवश्यक है? ये कुछ ऐसे सवाल थे जिन्होंने मुझे हकलाहट के बारे में एक नए नजरिए से सोचने का अवसर दिया.

प्रमेन्द्रसिंह बुंदेला और मैं २०१० में इंदौर में टीसा का स्वयं सहायता समूह चलते थे. २०११ में हम दोनों इंदौर से बाहर चले आए. इसके बाद मै इंदौर के हकलाने वाले साथिओं को फोन और एस.एम.एस. के जरिए यह निवेदन करता रहा कि आप लोग टीसा का स्वयं सहायता समूह चलाओ. लेकिन कोई भी सक्रिय नहीं रह सका. इसके आलावा मेरा एक अनुभव रहा कि स्वयं सहायता समूह कि बैठक में कुछ हकलाने वाले २-४ बार आते हैं और उसके बाद गायब हो जाते हैं. ऐसे ही मैंने जब अपने बचपन के २ हकलाने वाले दोस्तों से हकलाहट के बारे में बात करनी चाही तो उन्होंने मेरी बात को अनसुना कर दिया. इन सब अनुभवों से मुझे यह लगता था कि कई हकलाने वाले लोग अपनी हकलाहट को ठीक करने के लिए कुछ करना ही नहीं चाहते? लेकिन आज मुझे महसूस होता है कि मेरी यह सोच गत थी.
हमारे मध्य प्रदेश में एक पुराने समाजवादी नेता शक्तिप्रसाद पाण्डेय हुआ करते थे, जिनका पिछले साल निधन हो गया. पाण्डेय बोलने में हकलाते थे, पर हजारों लोगों के सामने बेबाकी से भाषण देते थे. ना तो उन्हें अपनी हकलाहट से कोई परेशानी थी, और ना ही उन्हें सुनने वालों को. ऐसे ही भोपाल में एक किरण व्यापारी हैं जो कि हकलाते हैं और रोज़ काउंटर पर बैठकर सैकड़ों ग्राहकों को सामान देते हैं, उनसे बात करते हैं. मैं यहाँ यह कहना चाहता हूँ कि हम हकलाते हुए भी बेहतर जिन्दगी जी सकते हैं, चुनाव लड़कर राजनीति कर सकते हैं. अगर कोई हकलाने वाला व्यक्ति सांसद या विधायक बन जाए तो वह हकलाते हुए सदन के अन्दर और बाहर बोल सकता है और उसकी बात हर हाल में सूनी जाएगी.

हम लोग टीसा से जुड़कर हकलाहट पर काम कर रहे हैं, क्योकि हम अपनी वर्तमान स्थिति से और ज्यादा बेहतर कुछ करना चाहते हैं. लेकिन जो लोग हकलाहट पर कोई काम नहीं कर रहे हम उन्हें गलत नहीं ठहरा सकते. क्योकि हर व्यक्ति के जीवन का एक अलग दृष्टिकोण, सोच होती हैं. कोई व्यक्ति हकलाकर भी संतुष्ट और सफल इनसान हो सकता है. हम एक सामाजिक प्राणी हैं इसलिए हमें सभी लोगों कि बात सुनना और उनके विचारों का सम्मान करना चाहिए. दुर्भाग्य यह है कि हम सभी बचपन से दूसरों पर अपने विचार थोपना, धाराप्रवाह और तेज आवाज में बोलने को ही सबसे बड़ा गुण समझते हैं. जबकि यह बिलकुल भी सही नहीं है. 

मैं इस बात से सहमत नहीं कि हम हकलाहट पर कोई काम ही न करें, हम अपनी ओर से जो अच्छा हो सके करना चाहिए. लेकिन हकलाहट को खुद पर हावी ना होने दें. समाज में हर हाल में आपकी बात सूनी जाएगी, थोडा हौसला ओर विशवास रखें. आज का समाज ज्यादा संवेदनशील और जागरुक हो रहा है. अगर आप किसी अनपढ़ आदमी को भी हकलाहट के बारे में और अपनी कोशिशों के बारे में बताएंगे तो वह भी ध्यान से सुनेगा. 

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Amitsingh Kushwah,
Satna (MP)
Mobile No. 093009-39758

6 comments:

Jitender Gupta said...

Aapka article padh kar Mujhe lag raha hai ki ek sikke ke kai pahloo ho sakte hain so kisi ek ko universal truth man lena sahi nahi hai."
thanx for sharing a new thought.

Satyendra said...

If you look carefully- Stammering is NOT the issue. The issue is - are we able to get our point across sufficiently well or not- THAT is the real issue. If we can do so, even with stammering, our audience has no problems. Problem begins- when we fail to communicate - and also REFUSE to admit that there is a issue!
This is why- TISA emphasizes: Accept the fact that you stammer AND work on your Communication skills (forget about conquering and curing stammering-- Focus on overall communication)..
The examples you share have done this.

Vinay said...

Thanks !!
Good Article !!
Sachin Sir's comment in true.... if we are able to put our thoughts to the other end well... then its good. Our Focus should be overall Communication!!
During bouncing, we stammer, but this helps in communicating our thoughts.... Like that we can use other techniques with the focus on communication

Er. Umesh said...

Very nice and motivate article. The only thing which stop us to fulfill our dream is you!! thanks for sharing such nice motivation article.

amit dixit said...

nice article Amit..thanks

Dinesh said...

Hi Amit,
Its always a pleasure to read your blog. Continue the good work.

Thanks
Dinesh.