जीवन में कभी सुख तो कभी दुःख का सिलसिला चलता ही रहता है. हम सुख और अनुकूलताओं के इस कदर आदी हो जाते हैं की थोडा सा दुःख, परेशानी आने पर जल्दी से घबरा जाते हैं. यह इसलिए होता है क्योकि हमने बचपन से ही यह जाना है की चुनौतियां बुरी चीज हैं, उनसे दूर ही रहो...
जब हम बात हकलाहट की करते हैं तो अक्सर इसे लेकर हमारे मन में एक गहरी निराशा का भाव आता रहता है. यह स्वीकार कर पाना मुश्किल होता है की हम धाराप्रवाह बोलने में थोड़ी चुनौती का सामना करते हैं. और यह चुनौती हमारा जीना दूभर कर देती हैं.
हमें यह समझ लेना चाहिए की जिन्दगी में बिना संघर्ष और मेहनत के किसी को कुछ नहीं मिला. हकलाहट है तो उससे निबटने के तरीके भी उपलब्ध हैं. जिन्दगी की इस चुनौती को स्वीकार करके सही कदम उठाना भी जरूरी हैं. इसके बाद आप देखेंगे की हकलाहट कोई बाधा नहीं है आपके जीवन में . . .
याद रखिए आप सिर्फ कुछ शब्दों को बोलने में हकलाते हैं, और सबसे बड़ी बात यह है की आप भी दूसरों की तरह हर काम कर सकते हैं. तो फिर हकलाहट को लेकर इतना टेंशन मत लें आप . . . !
- अमितसिंह कुशवाह
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3 comments:
एकदम सच! निराशा से हम कुछ इस कदर घबरा जाते हैं कि कइ बार निराशा को ही जीवन का स्थायी भाव बना लेते हैं- उससे प्यार करने लगते हैं- अगर कोइ एस एच जी मे जाने की सलाह दे तो उसे नकार देते हैं। मेरे अनुभव मे लोग एक नये सेलफोन को जरूर "चेक" करेंगे, मगर एस एच जी को कदापि नहीं.. इस तरह उनकी जिन्दगी एक छोटे से तँग दायरे में, कुण्ठा में बीत जाती है..
It reminds me the following words:
We shall overcome, we shall overcome
We shall overcome someday
Oh, deep in my heart, I do believe
We shall overcome someday.
AND THAT DAY IS NOT FAR.
JASBIR SANDHU,
99150 06377
Lajwaab amit ji.
sach mein nirasha se kam karne se hamesha dukh hi milta hai..
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