September 29, 2015

हाँ मैंने जिंदगी जीना सीख लिया है....

दोस्तों बात आज के करीब डेढ़ साल पहले की है। जब मैं हकलाहट की स्वीकार्यता के बारे में नहीं जानता था। उस समय हकलाहट मेरे जीवन की सबसे बड़ी बाधा थी। मैं हमेशा अपने आप को दुखी महसूस करता है। ना ही ज्यादा लोगो से बात करता था और दिन भर बस घुटता रहता था। मैं अपनी सारी असफलताओ का श्रेय अपनी हकलाहट को देता था। वो काम तो मैं नही ही करता करता था जिसमे मुझे बोलना हो और साथ में वो काम भी नही करता था जिसमे मुझे नही बोलना होता था ( जैसे Gym करना, सुबह सैर करना इत्यादि)।

परन्तु आज की स्थिति बिलकुल अलग है। क्योंकि मुझे हकलाहट की स्वीकार्यता के बारे में पता है। आज मैं खुश रहता, अपने परिवार वालो से रिश्तेदारो से मिलता हूँ उनसे बातें करता हूँ। अपने दोस्तों के साथ बातें करता हूँ, उनके साथ घूमता हूँ और यहाँ तक की उनको जोक्स सुनाकर खुश भी रखता हूँ। आज हकलाहट मेरे किसी भी क्षेत्र में बाधा नही है।
अब मैं जिंदगी को खुलकर जी रहा हूँ। अब मुझे वो दिन याद आते है तो हँसी आती है की काश मुझे हकलाहट की स्वीकार्यता के बारे में उस वक्त भी पता होता।

This is my first post on this blog.

Life is very beutifull....

6 comments:

Satyendra said...

Thank you Anurag for sharing your precious thoughts...

Unknown said...

Bhut badiya anurag bhai haklahat aani jani cheez h bas chalte raho or khush raho.

Anurag Tetarwal said...

Hello Anurag....jo aapke sath hua vhi mere sath hua....abhi jo ho rha h vh bhi same hi h...mera bhi name anurag h aur aapka bhi...m bhi h-h-h-hklata hun or aap bhi....hm sb ek hi tree ke fruits hain.....post pdhkr accha lga...or bhi likhiye...mughe intjar rhega...

Ravi said...

बिलकुल अनुराग...हकलाहट बाँधा नही है बल्कि चुनोति है..
बस चुनोति लेते जाओ और आगे बढ़ते जाओ...

ABHISHEK said...

Bahut achche Anurag. Aisehi likhte rho aur apne vichaar sajha karte rho

Unknown said...

बिलकुल अनुराग भाईअगर हम हकलाहट को एक खेल के रूप में जिए तो जीवन सरल और बेहतर हो जाता हे।इसके विपरीत यदि हकलाहट को एक बीमारी या या हमारे जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी समझ कर जिए तो जीवन का हर पल एक चुनोती बन जायगा।