मैं अभी सतना में सर्वशिक्षा अभियान के तहत एमआरसी समन्वयक के पद पर कार्य कर रहा हूं। पिछले महीने फरवरी में मुझे 2 पैरेन्टस ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। यह ट्रेनिंग विशेष आवश्यकता वाले बच्चों (Children with special needs) के अभिभावकों के लिए थी।
मैंने सभी तैयारियां समय पर पूरी कर लिया। पहली ट्रेनिंग 26 फरवरी 2010 को रखी गई। यह दिन मेरे लिए परीक्षा की घड़ी थी। हुआ कुछ यूं कि इस प्रोग्राम में मैं अकेले ही बोलने वाला था। मेरे साथ में एक महिला सहकर्मी हैं, लेकिन वे कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थीं। इसलिए मैंने बड़ी हिम्मत करके बोलने का फैसला किया।
मैंने सभी तैयारियां समय पर पूरी कर लिया। पहली ट्रेनिंग 26 फरवरी 2010 को रखी गई। यह दिन मेरे लिए परीक्षा की घड़ी थी। हुआ कुछ यूं कि इस प्रोग्राम में मैं अकेले ही बोलने वाला था। मेरे साथ में एक महिला सहकर्मी हैं, लेकिन वे कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थीं। इसलिए मैंने बड़ी हिम्मत करके बोलने का फैसला किया।
सबसे पहले अपना परिचय दिया और फिर कहा- मैं हकलाता हूं, अगर आप लोगों को मेरी कोई बात समझ नें नहीं आए तो दोबारा पूंछ सकते हैं। मैंने बीच-बीच में बाउंसिंग, प्रोलांगसिशएन तकनीक का इस्तेमाल किया और कहीं-कहीं पर थोड़ा हकलाया भी। इस प्रोग्राम में कई गांवों के 47 पैरेन्टस आए थे। मैंने उन्हें विकलांगता, विकलांगता के कारण, विकलांग बच्चों की शीघ्र पहचान करने के तरीके, विकलांग बच्चों की स्वीकार्यता, शिक्षा व्यवस्था, देखभाल और शासन की योजनाओं आदि के बारे में बताया।
इस दौरान मैंने विकलांग बच्चों की परिवार और समाज में स्वीकार्यता के बारे में लम्बी चर्चा किया। कई उदाहरण देकर बताया कि विकलांग बच्चे किसी से कम नहीं हैं। हमें उनकी क्षमताओं पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें आगे बढ़ाना चाहिए। कुल मिलाकर प्रोग्राम संतोषजनक रहा।
दूसरा प्रोग्राम 28 फरवरी 2015 को आयोजित किया गया। इसमें 39 अभिभावक आए। पहले की तरह इस कार्यक्रम को मैंने होस्ट किया। हमारे कार्यालय के अधिकारी ने पहले अपने विचार रखे। उसके बाद मैंने पूरा कार्यक्रम संचालित किया और लगातार चर्चा हुई।
इस तरह मैंने अपने जीवन के बहुत पुराने सपने को साकार होते देखा। यह सपना था- कई लोगों के सामने एक प्रोफेशनल के रूप में लेक्चर देने का।
मेरी इस सफलता में हकलाहट की स्वीकार्यता ने मेरी मदद की। सिर्फ यही एक ऐसा विकल्प था जिसे अपनाकर आज मैं अपना सपना पूरा कर पाया।
- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758
5 comments:
very nice amitji
सचमुच - अपना हाथ जगन्नाथ, को आपने बड़ी सहजता से सच कर दिखाया ! जीवन की अन्य चुनौतियों मे भी यही सिद्धान्त लागू होंगे.. और आप इसी तरह सफल होंगे...
हम सबकी शुभकामनाएं सदैव आपके साथ हैं.
Asp to chaa gaye Amit ji... Bahut achcha :)
आपने सही तरीके से स्वीकृति का मतलब समझाया है.
धन्यवाद
बहुत बढिया अमित जी,
आपके जज्बे को सलाम
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