February 6, 2015

हकलाना एक फिल्म के दृष्टिकोण से

दोस्तों  कल मैंने पी. के. फिल्म देखी  जिसमे एक एलियन धरती पे आता है और यहाँ के लोगो , संस्कृति , धर्म, समाज को किस तरह से  देखता है तथा उस पर कैसे इसका प्रभाव पड़ता है इस फिल्म को मै हकलाने से जोड़कर कुछ देर तक सोचा तो मुझे कुछ इस तरह के विचार आये जो मै आपसे शेयर करूँगा ।

नजरिया :- कैसे  नायक अपने यन्त्र को ढूढ़ने के लिए सभी धर्मो की शरण  में जाता है ।  अपने देखा होगा की कैसे किसी को ये फिल्म अच्छी लगी किसी को ठेस पहुँची संछेप में जितने लोग उतने विचार ।



   
              अगर हकलाने को केंद्र में  रख कर देखा जाए तो कुछ लोग मानते है की लोगो से इंटरैक्शन करके अपनी कमजोरी पे काम कर रहे है , कुछ लोगो  लिए ये एक मजाक का विषय है , कुछ लोग इसे बिज़नेस मानकर अपनी दुकान खोल लेते है , तो कुछ लोगो के लिए ये मानवता की सेवा है , कुछ लोगो को ये क्रिएटिव कार्य  के लिए टॉपिक मिल जाता है , कुछ लोगो के लिए समाज से जुड़ने का अच्छा माध्यम बन जाता है , कुछ लोगो को लगता है की ऐसे लोगो के साथ रहने से हकलाना बढ़ जायेगा , कुछ लोगो को लगता है की ऐसे लोगो के  साथ रहने से हकलाना के ऊपर काम करने में मदद मिलेगी , कुछ लोगो को इस ग्रुप के साथ खड़े होने पे उनका सम्मान बढ़ जाता है , तो किसी के सम्मान को ठेस पहुच जाती है

धारणा :- इस फिल्म में देखते है की जग्गू और सरफराज एक दूसरे को लाइक करने के बाद भी देश और धर्म की  पुरानी धारणा सिर्फ एक कॉल करके कन्फर्म करने के लिए रोक रही है एक दूसरे पे बिश्वास होने के बाद भी उनकी पहले से बनी धारणा किस तरह उनके रास्ते को रोख कर खड़ी हो जाती है ।

          अगर हकलाने को केंद्र में  रख कर देखा जाए तो किस तरह हमारे बचपन , स्कूल , कॉलेज , समाज , परिवार  के साथ बने बुरे धारणा  को आज भी वैसे ही लेकर चले जा रहे है कभी रुक कर इसे चेक करने की कोशीश  नही करते की क्या ऐसे विचार अभी भी उतना ही तर्कसंगत है जो पहले कभी रहे थे ।  ज्यादतर मामलो में धारणा तालाब के पानी की तरह होती है जिसमे गति ना होने के कारण वह कुछ समय के बाद साफ नही रह जाता । जबकि विचार नदी के पानी की तरह है जो बहने के कारण स्वच्छ बना रहता है । अगर हमलोग भी लोगो से मिलते रहे  थे लगातार तो हमारे विचारो का फ्लो बना रहेगा ।  पहले लोगो से नही मिलकर एक लूप बना लिए थे उसमे हमेशा परिवर्तन होता रहेगा जिससे हमारे विचारो में लचीलापन आएगा और उसमे परिवर्तन की क्षमता हमेशा बनी रहेगी और हकलाना फिर से वापस नही आएगा ।

चेतना पे प्रभाव :- कैसे एक भोला भाला एलियन धरती पे आता है जो की अपने ग्रह पे झूठ नही बोलता , कपड़े नही पहनता , उनकी कोई भाषा नही और धरती पे आकर वह सब कुछ सीख जाता है । किस तरह से समाज का उस पे प्रभाव पड़ता है ।

                 अगर हकलाने को केंद्र में  रख कर देखा जाए तो किस तरह बचपन में हुई घटनाओ से हमारे समाज ,दोस्त , परिवार  का  जो भी प्रतिक्रिया रही हकलाने को लेकर हमारे प्रति हमने उसी को सच मानकर अपने पर्सनैलिटी का निर्माण उसी तरह कर लिए  उनके मन में हकलाने को लेकर शर्म की भावना को देख कर अपने मन में शर्म , मेरे ब्लॉक को देख कर वो कभी डर जाते थे उसकी वजह से अपने मन में डर की भावना , इसी तरह संकोच, अविश्वास ,उपहास।
             इस तरह या तो हम उनको बदल दे या अपने आपको बदल ले ताकि उनके  प्रतिक्रिया का हमारे ऊपर प्रभाव न पड़े । या अपने मूल स्वभाव को स्वीकार कर ले तब भी बदलाव संभव है

तालमेल का अभाव :-  अन्त में अपने ग्रह वापस जाने के बाद फिर से धरती पे अपने दोस्तों के साथ वापस आता है तो अपने दोस्तों से बताता है की ये धरती के लोग जो बोलते है उसका वो मतलब नही होता है । एक ही बात के कई कई मतलब होते है जैसे कोई कहता है की आई लव चिकन इसका मतलब ये नही की वो चिकन से प्यार करता है वो उसे खाना  चाहता है । आई लव माय सन इसका मतलब की वह अपने बेटे से बहुत प्यार करता है और उसकी खुशी के  लिए कुछ भी कर सकता है वह उसे खाना नही चाहता ।


          अगर हकलाने को केंद्र में  रख कर देखा जाए तो  बंद कमरे में बैठ कर सोचते है की काश हम भी  कॉलेज के कार्यक्रम में भाग लेते , अपनी लाइफ में कुछ ऐसा करते जिससे समाज से जुड़े रहते ये हमारी इच्छा है
          जब इस बात को हम अपने दोस्तों से , परिवार से शेयर करते है वो हमारा एक्सप्रेशन होता है
         जब हम डिफरेंट डिफरेंट एक्टिविटीज के थ्रू लोगो से मिलना शुरू करते है वो हमारा एक्शन होता है
 लेकिन अफ़सोस हम सोचते कुछ और है  कहते कुछ और है , करते कुछ और है और मजेदार बात की होता कुछ और है

निष्कर्ष :- हकलाना एक बहुत ही खूबसूरत मकड़ी के जाले की तरह है जिसे हम पुरे इत्मीनान के साथ ,पुरे विश्वास के साथ बैठकर,लेटकर ,सोचकर ,अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाते है । जिसे देख कर कोई भी कहेगा की कितना शरीफ बच्चा है ना किसी से फालतू बोलता है ना लोगो से ज्यादा मिलता है सिर्फ अपने काम से काम रखता है । लेकिन कितने दुख की बात है की अपने पर्सनालिटी के निखारने के समय मे  इस तरह के मकड़जाल में उलझ कर अपने जीवन के बहुमूल्य समय को ऐसे की बर्बाद कर देते है । और भविश्य में इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकाते रहते है ।



                 

1 comment:

Satyendra said...

बहुत सही विश्लेषण...
कइ बार इसी उहापोह में जिन्दगी बीत जाती है !