December 22, 2014

स्वीकार्यता को जीवन में व्यापक रूप में अपनाएं . . .

हम अपने जीवन में सुख की कल्पना दूसरों को देखकर करते हैं। दूसरे लोगों ने अपने जीवन में क्या-क्या हासिल किया है, यह देखकर हम यह अनुमान लगाते हैं कि हम कितने सुखी है? हकलाहट के बारे में भी हमारा नजरिया ऐसाी ही है। हम अन्य लोगों को धाराप्रवाह बोलते हुए सुनकर यह सोचते हैं कि ऐसा करना हमारे लिए भी जरूरी है। हम खुद को, अपनी हकलाहट को कभी स्वीकार ही नहीं कर पाते हैं।

जीवन के कई साल हकलाहट के क्योर और धाराप्रवाह बोलने की आशा में इधर-उधर भटकने के बाद टीसा के माध्यम से स्वीकार्यता की नई अवधारणा को समझने और अपनाने का मौका मिला। स्वीकार्यता केवल हकलाहट की नहीं, बल्कि जीवन की हर चुनौती को सहजता से स्वीकार करने का साहस मिला। अब समझ में आया कि खुद को और अपने जीवन की चुनौतियों को सहज रूप से स्वीकार कर लेना ही जीवन में सुख और आनन्द का बेहतर रास्ता है।

हम जितना अधिक हकलाहट या जीवन की अन्य चुनौतियों से भागते रहेंगे, ये उतनी ही बड़े रूप में हमारे सामने उभरकर आती है एक समस्या की तरह। आप चाहे जिन्दगी में कितने ही मुश्किल हालात का सामना कर रहे हों, स्वीकार्यता आपको मानसिक संबल प्रदान करती है, दुःख से बाहर निकलने का साहस देती है और मन में सकारात्मक उर्जा का संचार करती है।

स्वीकार्यता हमें जीवन के दुःख, मुश्किलों और असहज हालातों से निबटने का मार्ग बताती है। हम हकलाहट को स्वीकार कर अपनी हकलाहट से संघर्ष को विराम देते हैं। हम जबरन हकलाहट को छुपाने या संघर्ष से स्थिति से बाहर आ जाते हैं।

जीवन में सच्चा आनन्द सिर्फ स्वीकार्यता ही ला सकती है। दूसरे लोग कितने ही सफल, धनवान, प्रतिष्ठा वाले और धाराप्रवाह बोलने वाले क्यों न हों, हम उनसे अपनी तुलना न करें। बल्कि हमारे जीवन में जो है उसे खुलकर स्वीकार करें, और आगे बढ़ें।

एक वह समय था जब एक वस्तु खरीदने के लिए मुझे पर्ची पर लिखकर ले जाना पड़ता था। आज मुझे कभी यह सब नहीं करना पड़ता। हकलाहट की स्वीकार्यता ही एक ऐसा रास्ता है, जब आप दूसरों को अपनी हकलाहट के बारे में बिना किसी संकोच, भय और शर्म के बताते है, उनसे हकलाहट के बारे में चर्चा करते हैं और आत्मसंतुष्टि प्राप्त करते हैं।

हकलाहट को अपना लेना और स्वीकार कर लेना किसी भी हकलाने वाले के लिए कुछ हद तक मुश्किल जान पड़ता है। लेकिन अगर, एक बार दृढ़ संकल्प करके निकल पड़े तो सबकुछ बहुत ही सहज और आसान मालूम पड़ता है। टीसा के मंच पर हम सब आकर हकलाहट के बारे में खुलकर बातचीत करते हैं और दूसरे हकलाने वाले व्यक्तियों के अनुभव व सफलताओं को जानते हैं। इससे हम यह सीखते हैं कि दूसरे हकलाने वाले साथियों ने हकलाहट को स्वीकार कर अपने जीवन में सफलताएं अर्जित की हैं।

मान लीजिए, आप जीवन के बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हों। ऐसी स्थिति में आप जीवन में आई चुनौती का सामना धैर्य के साथ करें, चुनौती को स्वीकार कर लें। फिर देखिए कितनी आसानी है आप मुश्किल से मुश्किल दौर का सामना कर लेंगे, हंसते हुए, यही स्वीकार्यता है।

मेरे पिताजी को सड़क दुर्घटना में घायल हुए लगभग एक साल बीत रहा है। वे अबतक होश में नहीं आ पाए। मुझे उनकी देखभाल करने में बड़ा आनन्द आता है। अब मैंने स्वीकार कर लिया है कि जो कुछ हुआ उसमें हमारी कोई गलती नहीं थी, फिर जबरन शोक करने से क्या मतलब? फिर भी कुछ लोग अक्सर घर पर आते हैं, कहते हैं - समय खराब था, भगवान ने आप लोगों के साथ बहुत अन्याय किया? आदि-आदि। मेरी समझ में यह नहीं आता कि हम इंसान हर मुश्किल समय के लिए समय या भगवान को दोष क्यों देते हैं? कभी अपनी गलती को क्यों नहीं स्वीकार करते? कभी बुरे समय को खुलकर स्वीकार करने का साहस क्यों नहीं दिखाते।

मैं तो ईश्वर का धन्यवाद ज्ञापित करता हूं कि उन्होंने मुश्किल चुनौतियां मेरे हिस्से में दीं, शायद उन्हें मुझ पर विश्वास होगा कि मैं इन सबका सामना आसानी से कर पाउंगा। चाहे हकलाहट हों या हर दिन अपने पिताजी को जीवन के लिए संघर्ष करते हुए देखना, मेरे लिए अब यह सबकुछ बहुत सहज है। मैं इन हालातों से जरा भी नहीं घबराता, दुःखी नहीं होता।

जब ईश्वर ने हमें इतना सुंदर जीवन दिया है, दिन में 24 घंटे का समय दिया है, तो फिर ईश्वर को हर समस्या के लिए दोष देना कतई उचित नहीं होगा। वास्तव में 24 घंटे के समय का अगर हम सदुपयोग करना चाहें तो एक ही दिन में काफी सारा काम कर सकते हैं। मैंने खुद यह सब अपने जीवन में आजमाया हुआ है।

जीवन में दूसरों के विचारों को स्वीकार करना, दूसरों की खान-पान की आदतों, रहन-सहन को स्वीकार करना, दूसरों की वेशभूषा को स्वीकार करना। यह सब करने से हम जीवन में अनावश्यक रूप से आने वाले विवाद और संघर्ष को विराम दे सकते हैं, खत्म कर सकते हैं तथा दूसरों को और खुद को आनन्द दे सकते हैं।

कई बार हम न तो खुद को स्वीकार कर पाते हैं और न ही दूसरे लोगों को स्वीकार करते हैं, इसलिए दुःख और विवाद का सामना करना पड़ता है। बस, जीवन में सुख, आनन्द और सहजता का एक ही रास्ता है स्वीकार्यता। स्वीकार कर लेना जीवन की हर चुनौती का . . . ! हमें स्वीकार्यता को जीवन में व्यापक रूप में अपनाना चाहिए। फिर आप देखेंगे कि स्वीकार्यता ने आपके जीवन को कैसे सकारात्मक विचारों से भर दिया।

- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758

1 comment:

Satyendra said...

सचमुच ऐसी समझ काफी प्रयासो से आती है..और इसके बगैर काम चलता भी नही है ! यह विवेक कि जिन्दगी मे कहाँ स्वयँ को बदलना है और कहाँ अपनी परिस्थतियो को - इसे समझना और इस पर काम करना बेहद जरूरी है.. इसका एक आसान तरीका है - औरो से सीखना; स्वयँ सहायता समूह इसी सिद्धान्त पर आधारित हैं...