October 8, 2014

NC 2014 : हकलाहट और भाषा संचार में बाधक नहीं . . .

यूक्रेन निवासी Mr. Rachel Sergey पिछले दिनों टीसा की नेशनल कांफ्रेन्स में शामिल हुए। यहां पेश है उनसे हुई बातचीत के सम्पादित अंश -

बैंगलौर में एक चैरिटी स्कूल में वालेन्टियर टीचर के रूप में कार्य करने का मुझे अवसर मिला है। मैं इस स्कूल में बच्चों को ड्रामा, योगा, विज्ञान और कला विषय सिखाता हूं।

भारत आते समय मेरे मन में अनेक आशंकाएं थीं। यहां आकर सबकुछ अच्छा रहा। इतने सारे प्यारे बच्चे और सहयोगी साथियों ने मेरे अंदर के सारे डर को दूर कर दिया। साथ ही टीसा के बैंगलौर स्वयं सहायता समूह में शामिल होकर हकलाने के बारे में बहुत कुछ सीखने का सुंदर अवसर मिला।

मेरा मत है कि हकलाहट और भाषा हमारे संचार में बाधक नहीं है। हम हकलाते हुए भी सार्थक संवाद कर सकते हैं। हम किसी भाषा का ज्ञान कम होने के बावजूद भी संचार कर सकते हैं।

टीसा की एन.सी. मेरे लिए काफी अच्छा अनुभव रहा है। 100 से अधिक हकलाने वाले लोगों से मिलकर और उनके अनुभव जानकर यह कह सकता हूं कि मेरे देश और यहां भारत में हकलाने वाले लोगों की चुनौतियां एक जैसी हैं, सामाजिक बाधाएं एक जैसी हैं।

भारत में कई सफल हकलाने वाले साथियों को देखकर यही महसूस हुआ कि हममें भी बहुत सारी योग्यता, क्षमता, प्रतिभा हैं, बस जरूरत है उसे निखारने की, उसे दूसरे लोगों के सामने लाने की।

मेरा मानना है कि हकलाहट को स्वीकार करना जीवन के लिए बहुत ज्यादा जरूरी है। धाराप्रवाहिता के पीछे भागने, क्योर खोजने में अपना समय बर्बाद करने से कहीं बेहतर हकलाहट को सहज रूप में स्वीकार कर लेना।

हकलाहट को स्वीकार करना थोडा मुश्किल काम जरूर लगता है, लेकिन यह बहुत ही आसान है। हकलाहट को छिपाने से अच्छा है हकलाहट को स्वीकार कर लेना। फिर आप देखिए, हकलाहट को छिपाना बेहतर है या खुलकर हकलाना।

पुणे में आयोजित इस एन.सी. ने मेरे मन में एक अमिट छाप छोड़ी है। मैं खुद को सौभाग्यशाली समझता हूं कि इस एन.सी. का हिस्सा बनने का मौका मुझे मिला। आप सबको बहुत धन्यवाद।

(जैसा उन्होंने अमितसिंह कुशवाह को बताया)

3 comments:

Satyendra said...

बहुत सच...

Ravi said...

अच्छा कहा...

kumar kundan said...

हकलाहट और भाषा संचार में बाधक नहीं,Absolutely