October 23, 2014

हकलाहट के साथ विकसित अनचाही आदतों पर नियंत्रण करें


By - विजयकुमार, देहरादून

हकलाहट के साथ-साथ हमारे शरीर पर कुछ दूसरे प्रभाव भी दिखाई देने लगते हैं। हाव-भाव आसामान्य होना, सिर, आंख, नाक, हाथ-पैर आदि अंगों की प्रतिक्रिया अलग होना। ये सभी संकेत हमारे संचार पर बुरा प्रभाव डालते हैं। जब हम हकलाहट पर वर्क करना शुरू करते हैं तो सेकेण्डरी बिहेवियर पर ध्यान देना और उन पर नियंत्रण रखना भी सीखना चाहिए।

क्या हैं हकलाहट के सेकेण्डरी बिहेवियर?

- बोलते समय जब हम रूक जाते हैं तो आंखें बार-बार बन्द होती हैं। आंखें आसामान्य रूप से उपर-नीचे गति करती हैं। भौहों की प्रतिक्रिया भी आसामान्य हो जाती हैं।

- गर्दन उपर या नीचे जाती है। कभी-कभी गर्दन के साथ पूरा शरीर आगे की ओर झुक जाता है।
- जीभ बाहर की ओर निकालना या अन्दर इधर-उधर मुड़ जाना।
- नाक सिकुड़ जाना या नाक फूलना।
- हकलाहट के दौरान दोनों हाथ या एक हाथ हिलाना। हथेलियों को मसलना, हाथ झटकाना।
- पैर को आगे-पीछे करना। पैर पटकना, जमीन पर किक मारना।
- हकलाते समय मुह में हवा भर जाती है और गाल फूल जाते हैं।
- कंधा उपर-नीचे हो जाना या सिकुड़ जाना, कन्धे के उपर झटका लगना।
- पूरा पेट टाइट हो जाता है और पेट का अन्दर हो जाना या पूरा शरीर आगे की ओर झुक जाना।

हो सकता है कि ये लक्षण सभी हकलाने वालों में नहीं हों, परन्तु इनमें से ज्यादातर सेकेण्डरी बिहेवियर सामान्य होते है।

कम्यूनिकेशन पर पड़ता है असर

सेकेण्डरी बिहेवियर का हमारे कम्यूनिकेशन पर कुछ हद तक बुरा असर पड़ता है। हकलाने वाले व्यक्ति द्वारा कही गई बात श्रोता को ठीक तरह से समझ में नहीं आती, वह हमारी बात का दूसरा अर्थ निकाल लेता है। सुनने वाला उब जाता है।

कैसे दूर करें?

अगर आप इन अनचाही आदतों के उपर काम करना शुरू करेंगे तो यह आसानी से दूर की जा सकती हैं। सबसे पहले आपको अपनी इन आदतों को पहचानने की जरूरत हैं।

- बात करते समय अपना वीडियो बनवाना और उन्हें ध्यान से देखना। इससे आप आसानी से अनचाही आदतों को पहचान पाएंगे।
- आईने के सामने बैठकर रोज खुद से बातचीत करें। प्रतिदिन 10 मिनट तक।
- स्पीच थैरेपिस्ट से सलाह लेकर उन्हें अपनाएं और बीच-बीच में उनसे मिलते रहें।
- गु्रप में बैठकर अभ्यास करना। इससे आप दोस्तों से अपने सेकेण्डरी बिहेवियर के बारे में जान पाएंगे।
- अपने परिवार, दोस्त, रिश्तेदार आदि से इस बारे में बातचीत करना। उनसे जानने की कोशिश करें की बोलते समय उनके शरीर की प्रतिक्रिया किस तरह की होती है।
- इन सीखी गई आदतों का जानबूझकर बार-बार अभ्यास करना, जिससे आप इनके बारे में जागरूक हो जाएंगे।

बिहेवियर मोडिफिकेशन कितना कारगर है?

जब कोई हकलाने वा ला व्यक्ति इन सेकेण्डरी बिहेवियर को दूर करने का प्रयास करता है तो वह बिहेवियर मोडिफिकेशन तकनीक का इस्तेमाल करता है। साधारण शब्दों में सीखी गई अनचाही आदतों को बदलना, उन्हें दूर करना और सही आदतें सिखाना।

मैं जब देहरादून में समग्र के साथ जुड़कर कार्य कर रहा था, उस समय एक 20 साल का युवक हमारे सम्पर्क में आया। जब भी वह हकलाता था तो उसकी जीभ बार-बार बाहर निकलती थी। हम लोगों ने जीभ न निकलने के उपर काम किया और एक साल बाद उसकी जीभ का निकलना पूरी तरह से बन्द हो गया।

छोटे बच्चों में सेकेण्डरी बिहेवियर नहीं होते। वे जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं, उनमें इन आदतों का विकास होता जाता है। एक बच्चा था उम्र 14 साल। बोलते समय उसके गर्दन और सिर पर झटके लगते थे। जब इस बारे में मैंने उससे बात की तो उसने कहा कि नहीं, क्योंकि उसे इस बात का अहसास ही नहीं था। फिर मैंने उस बच्चे की अनुमति से उसका एक वीडियो बनाया और उसे दिखाया। तब बच्चे का अहसास हआ कि उसे झटका लगता है। इसके बाद हमने काम शुरू किया। 2 साल बाद उस बच्चे का सेकेण्डरी बिहेवियर बहुत कम हो गया। उसको इसका अहसास है व उसे करेक्शन करने की कोशिश भी करता है।

कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि हकलाने वाला अपनी स्पीच के साथ ही इन आसामान्य आदतों पर भी धीरे-धीरे काबू पाने का अभ्यास करे, तो एक कुशल वक्ता के रूप में अपनी पहचान बना सकते हैं।

1 comment:

kumar kundan said...

धन्यवाद इन बातों को ध्यान में लाने के लिए।