लोगों से बातचीत करते समय
जब हकलाहट होने लगती है, तो मैं परेशान हो उठता हूं? मन में यह विचार आता
है कि आखिर क्या फायदा हुआ टीसा को ज्वाइन करने का? 3 साल बाद भी हकलाहट को
ठीक नहीं कर पाया?
काफी सोच-विचार के बाद मैंने इन सभी सवालों का जवाब खुद के अन्दर ही पाया। पहला तो यह है कि हम हकलाने वाले खुद से जरूरत से ज्यादा अपेक्षा करने लगते हैं।
अक्सर होता यह है कि हकलाहट को ठीक तरह से समझने और स्पीच तकनीक की जानकारी होने के बाद जब हम उनका अभ्यास शुरू करते हैं, लोगों से बातचीत करते हैं, तो खुद से यह अपेक्षा करते हैं कि पहली बार में ही एकदम सही तरीके से बोल पाएं, जो कि एकदम असंभव है।
जरा गौर करिए एक बच्चा जन्म के तीन साल में बोलना सीखता है। अगर हम किसी बच्चे से यह उम्मीद करें कि वह पैदा होने के पहले ही दिन से बोलना शुरू कर दे तो यह उचित नहीं होगा।
ठीक इसी तरह हम हकलाने वाले 15-20 साल या उससे भी अधिक समय से हकलाते आ रहे हैं, और अब हम एक ही दिन में एकदम सही बोल पाने की कल्पना कैसे कर सकते हैं? यह संभव होगा निरंतर अभ्यास से।
टायल एण्ड एरर जीवन में सफलता पाने का एक प्रमुख मंत्र है।
वहीं जब हम किसी स्पीच थैरेपिस्ट के पास जाते हैं तो सबकुछ उसके उपर ही छोड़ देते हें। हमें भरोसा होता है कि स्पीच थैरेपिस्ट हमें पूरी तरह से ठीक कर देगा। हम खुद अपनी हकलाहट को लेकर लापरवाह हो जाते हैं। मन में विचार आता है कि थैरेपी के लिए फीस दी है, हकलाहट को ठीक करना अब सिर्फ थैरेपिस्ट का ही काम है।
यहां हमें हकलाहट और दूसरी अन्य बीमारियों में फर्क समझने की जरूरत है। दूसरी बीमारियों में हम दवाईयों, इजेक्शन या आपरेशन से ठीक हो जाते हैं, और यह पूरा काम डाक्टर के उपर निर्भर रहता है। लेकिन स्पीच थैरेपी या अन्य कोई दूसरी थैरेपी में निरंतर अभ्यास की ही आवश्यकता होती है और परिणाम भी देर से मिलते हैं।
हकलाहट को समझने के बाद जब हम उस पर वर्क करना शुरू करें तो स्वाभाविक है कि हकलाहट तो होगी। इसलिए इससे हार मानने की जरूरत नहीं है। आप एक बार में किसी शब्द को नहीं बोल पा रहे तो 4-5 बार रूककर दोबारा बोलिए ऐसा करने से आप उस शब्द को बोल पाएंगे।
खुद पर विश्वास रखना और अपेक्षा करना अच्छी बात है, लेकिन सफलता पाने के लिए निरंतर कोशिश जारी रखना भी आवश्यक है।
- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758
काफी सोच-विचार के बाद मैंने इन सभी सवालों का जवाब खुद के अन्दर ही पाया। पहला तो यह है कि हम हकलाने वाले खुद से जरूरत से ज्यादा अपेक्षा करने लगते हैं।
अक्सर होता यह है कि हकलाहट को ठीक तरह से समझने और स्पीच तकनीक की जानकारी होने के बाद जब हम उनका अभ्यास शुरू करते हैं, लोगों से बातचीत करते हैं, तो खुद से यह अपेक्षा करते हैं कि पहली बार में ही एकदम सही तरीके से बोल पाएं, जो कि एकदम असंभव है।
जरा गौर करिए एक बच्चा जन्म के तीन साल में बोलना सीखता है। अगर हम किसी बच्चे से यह उम्मीद करें कि वह पैदा होने के पहले ही दिन से बोलना शुरू कर दे तो यह उचित नहीं होगा।
ठीक इसी तरह हम हकलाने वाले 15-20 साल या उससे भी अधिक समय से हकलाते आ रहे हैं, और अब हम एक ही दिन में एकदम सही बोल पाने की कल्पना कैसे कर सकते हैं? यह संभव होगा निरंतर अभ्यास से।
टायल एण्ड एरर जीवन में सफलता पाने का एक प्रमुख मंत्र है।
वहीं जब हम किसी स्पीच थैरेपिस्ट के पास जाते हैं तो सबकुछ उसके उपर ही छोड़ देते हें। हमें भरोसा होता है कि स्पीच थैरेपिस्ट हमें पूरी तरह से ठीक कर देगा। हम खुद अपनी हकलाहट को लेकर लापरवाह हो जाते हैं। मन में विचार आता है कि थैरेपी के लिए फीस दी है, हकलाहट को ठीक करना अब सिर्फ थैरेपिस्ट का ही काम है।
यहां हमें हकलाहट और दूसरी अन्य बीमारियों में फर्क समझने की जरूरत है। दूसरी बीमारियों में हम दवाईयों, इजेक्शन या आपरेशन से ठीक हो जाते हैं, और यह पूरा काम डाक्टर के उपर निर्भर रहता है। लेकिन स्पीच थैरेपी या अन्य कोई दूसरी थैरेपी में निरंतर अभ्यास की ही आवश्यकता होती है और परिणाम भी देर से मिलते हैं।
हकलाहट को समझने के बाद जब हम उस पर वर्क करना शुरू करें तो स्वाभाविक है कि हकलाहट तो होगी। इसलिए इससे हार मानने की जरूरत नहीं है। आप एक बार में किसी शब्द को नहीं बोल पा रहे तो 4-5 बार रूककर दोबारा बोलिए ऐसा करने से आप उस शब्द को बोल पाएंगे।
खुद पर विश्वास रखना और अपेक्षा करना अच्छी बात है, लेकिन सफलता पाने के लिए निरंतर कोशिश जारी रखना भी आवश्यक है।
- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758
3 comments:
motivated lines......thanks sir.
Aapki blog se hamesha kuch seekhne ko milta hai. TISA join karne ke baad hum jo bolna chahte hein, use bolte hein, bhale hi haklahat hoti hai. par hum pahle ki tarah haklahat ko chupate nahi.
बहुत सटीक
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