नई
दिल्ली में आयोजित टीसा की तीसरी नेशनल कांफे्रन्स के अंतिम दिन 6
अक्टूबर, 2013 को टीसा के संस्थापक, डा. सत्येन्द्र श्रीवास्तव (सचिन सर)
ने अपना प्रेरणादायी उदबोधन दिया। प्रस्तुत है उनकी स्पीच के सम्पादित अंश -
एक साथ 100 से अधिक हकलाने वाले व्यक्तियों से मिलकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। मैं आपके साहस की प्रशंसा करता हूं कि आप लोगों को अपनी हकलाहट को सामने लाने का प्रयास किया। यह स्वीकार करने के लिए साहस की जरूरत होती है कि आप या आपका बच्चा हकलाता है। खासकर हकलाने वाली महिलाओं की उपस्थिति निश्चित ही एक नए अध्याय की शुरूआत है।
इस शुभ अवसर पर मैं आप लोगों से मुख्य रूप से 3 बातें साझा करना चाहता हूं ये बातें मेरे दिल के बहुत करीब हैं। ये हैं- हकलाहट का क्योर, स्वयं सहायता समूहों की भूमिका और टीसा का भविष्य।
काफी सालों की खोज और प्रयासों के बाद मैं यह समझ पाया हूं कि हकलाहट के 2 तरह के क्योर हैं - पहला बोगस यानी फालतू/फर्जी क्योर, दूसरा वास्तविक क्योर। दूसरा क्योर सच में कारगर है और टीसा एक ऐसा समूह है जो इसे प्रोत्साहित करता है।
बोगस क्योर के संबंध में कुछ बातें अक्सर पढ़ी और सुनी जाती रही हैं, जैसे-
किसी भी प्रकार की हकलाहट का इलाज 15 दिनों में . . .
इस मशीन को अपने कान पर लगाए और हकलाहट से छुटकारा पाएं . . .
पिछले जन्म का पाप- कारण जानें और सिर्फ एक सोशन में हकलाहट क्योर करें . . .
चाईनीज पानी पीकर हकलाहट क्योर करें . . .
सम्मोहन के 10 सेशन लें और हकलाहट का समाधान पाएं . . .
एक सही क्योर की बात करें तो सितम्बर, 2009 में फराह खान द्वारा लिए गए इंटरव्यू में रितिक रोशन की कहीं बातें गौर करने लायक हैं -
फराह खान - 6 साल की आयु से शुरू हुई हकलाहट की समस्या कब तक जारी रही, डुग्गू?
रितिक - 6 से 35 साल तक, मैं अभी 35 साल का हूं।
फराह - परन्तु आप तो बहुत अच्छे से बोलते हैं?
रितिक - क्योंकि, इससे बाहर निकलने का एक रास्ता है।
फराह - हां, इससे बाहर निकलने का एक रास्ता है और हम इसके बारे में आज बात करेंगे।
अगर आप इस रूचिकर इंटरव्यू को इंटरनेट पर देख पाएं तो पाएंगे कि सुपरस्टार रितिक रोशन ने कहीं भी हकलाहट के क्योर, 2 सप्ताह या 2 माह के जादुई क्योर की चर्चा नहीं की है। रितिक ने बताया है कि वे आज भी एक घंटे रोज प्रैक्टिस करते हैं। उन्होंने परेशान करने वाले पलों की बात की है। बालीबुड में अपनी चुनौतियों का जिक्र किया है कि दाएं हाथ में 2 अंगूठे, हल्के रंग की आंखों, कमर की समस्या, सिर की नसों में खून के बहाव की चुनौती - इन सभी से बाहर निकलकर सफल हुए हैं। एक के बाद एक कठिन मेहनत ने रितिक रोशन को सफलता दिलाई। उनके खुद के प्रयास और सपर्मण ने सुपरस्टार बना दिया। कोई जादू नहीं! कोई चमत्कार नहीं!
इसलिए सच्चा क्योर आपकी कठिन मेहनत पर निर्भर करता है, स्पीच थैरेपिस्ट की कठिन मेहनत पर नहीं। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप हकलाहट को खुलकर कैसे स्वीकार करते हैं, कैसे समस्याओं का सामना करते हैं और कैसे उस पर काम करते हैं। अपने व्यवहार और कार्यशैली में क्या सकारात्मक बदलाव लाते हैं। आप इस सच्चे क्योर को पाकर ही अपने दिमाग से हकलाहट के बोझ को आजाद कर सकते हैं। मेरे लिए, यही सच्चा क्योर है।
हकलाहट से आजाद होने के लिए सामाजिक संगठन जैसे स्वयं सहायता समूह में शामिल होना चाहिए, क्योंकि हकलाना एक स्पीच डिसआर्डर नहीं है। हम अकेले होने पर अच्छा बोलते हैं, बच्चों से बातचीत करते समय या गाते समय नहीं हकलाते। पालतू जानवरों से ठीक तरह से बात करते हैं। यह क्या है? डा. जोसेफ सीफेन, जो कि एक प्रोफेसर, एक थैरेपिस्ट, एक हकलाने वाले व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं, उन्होंने यूनिवर्सटी कालेज आफ लास इंजिलिस में अपनी लम्बी रिसर्च के बाद कहा- हकलाना, व्यक्ति को सामाजिक संदर्भों में खुद अभिव्यक्त नहीं कर पाने का दोष है।
चलिए, कुछ देर के लिए हकलाहट को एक सामाजिक समस्या मान लिया जाए। एक ऐसी समस्या जिसमें हम सामाजिक क्रियाकलापों में खुद को अभिव्यक्त कर पाने में असमर्थ पाते हैं। इसके बाद, हमें क्या सहायता चाहिए? सामाजिक बातचीत!
कुछ उदाहरणों पर गौर कीजिए! आप यहां से नई दिल्ली स्टेशन पैदल अकेले जाना चाहें तो 2 घंटे का समय लग सकता है। वहीं अगर आप मेटो से जाएं तो जल्दी और आसानी से पहुंच जाएंगे। अपने स्वयं सहायता समूह को एक स्पेशल मेटो समझिए। निश्चित ही कोई सिर्फ एक व्यक्ति के लिए मेटो नहीं चलाएगा। अपने जैसे दूसरे व्यक्तियों से मिलना, बातचीत करना, लिखना और दूसरे हकलाने वाले व्यक्तियों को खोजना क्यों जरूरी है, इसलिए की आप मेटो की यात्रा का समूह में आनन्द ले पाएं, खुशी से, आनन्द से अपने संचार कौशल पर कार्य करें अपने स्वयं सहायता समूह में आकर।
मैंने अक्सर लोगों को कहते सुना है - मैं क्या कर सकता हूं? मैं कैसे सहायता कर सकता हूं? मैं क्या जानता हूं?
मुझे विश्वास है कि आप अपनी सहायता खुद कर सकते हैं। दूसरे हकलाने वालों की बात ध्यान से सुनकर, उनका सम्मान करके। हम सब यही चाहते हैं? क्यों नहीं? कोई आपकी हकलाहट को नजरअंदाज कर ध्यान से सुने, बिना किसी आश्चर्य के आपकी ओर देखे? यह सब हमें खुद करना है दूसरे हकलाने वालों के साथ। और कई हकलाने वाले ऐसा करते हैं, दिल से और बिना किसी अपेक्षा के। यह कोशिश हमें शिखर पर ले जाती है।
मेरा मानना है कि भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के लिए यह एक बड़ा मिशन है। विशाल कार्य है। इसके लिए हमें और अधिक कांफ्रन्स, वर्कशाप, ज्यादा स्वयं सहायता समूह, यात्रा करने और हकलाहट पर बातचीत करने वाले बहुत से लोगों की जरूरत होगी। हमें ऐसे समर्पित व्यक्तियों की आवश्यकता है। और अब मैं अपनी तीसरी बात पर आता हूं। समाज के रूप में हमारा भविष्य, टीसा का भविष्य। हमें खुद को कायम रखने के लिए क्या करना चाहिए?
किसी संगठन की जीवन रक्षा और प्रगति समर्पित व्यक्तियों और कार्यकर्ताओं के प्रयासों से ही संभव होती है। जो लोग मेरी फलूएंसी धाराप्रवाहिता, मेरा क्योर, मेरी स्पीच की धारणा अपने मन पर बैठा लें और अपना समय/उर्जा देने के लिए इच्छुक हों। हम लगातार ऐसे व्यक्तियों की पहचान, नियुक्ति और प्रोत्साहन देना चाहेंगे। साथ ही स्वयं सहायता के मिशन को बढ़ाना, यह कभी खत्म न हो। यह इस धरती पर संभव होगा।
आज हम दो व्यक्तियों को धन्यवाद देना चाहते हैं, जिन्होंने टीसा को इस मुकाम पर पहुंचाया है। टीसा के वर्तमान को-आर्डिनेटर जयप्रकाश सुंडा और टीसा के नए को-आर्डिनेटर श्री मणीमारण। हम इन दोनों के बेहतर जीवन की कामना करते हैं।
हमें स्वयं के लिए समर्पित होने की जरूरत है। अपनी सहायता खुद करने की जरूरत है और अपने जैसे दूसरे लोगों की सहायता करना भी जरूरी है।
खुद का अस्तित्व खुद की कोशिशों से ही संभव है। इसलिए अपने स्व को पहचानें। अपने मैं को सार्थक करें।
Thank you, Amit! Yes, for me, it was a rare opportunity and result of Good karma, from past births! I am sharing the English translation here, for the benefit of the non-Hindi speakers, as well. (sachin)
एक साथ 100 से अधिक हकलाने वाले व्यक्तियों से मिलकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। मैं आपके साहस की प्रशंसा करता हूं कि आप लोगों को अपनी हकलाहट को सामने लाने का प्रयास किया। यह स्वीकार करने के लिए साहस की जरूरत होती है कि आप या आपका बच्चा हकलाता है। खासकर हकलाने वाली महिलाओं की उपस्थिति निश्चित ही एक नए अध्याय की शुरूआत है।
इस शुभ अवसर पर मैं आप लोगों से मुख्य रूप से 3 बातें साझा करना चाहता हूं ये बातें मेरे दिल के बहुत करीब हैं। ये हैं- हकलाहट का क्योर, स्वयं सहायता समूहों की भूमिका और टीसा का भविष्य।
काफी सालों की खोज और प्रयासों के बाद मैं यह समझ पाया हूं कि हकलाहट के 2 तरह के क्योर हैं - पहला बोगस यानी फालतू/फर्जी क्योर, दूसरा वास्तविक क्योर। दूसरा क्योर सच में कारगर है और टीसा एक ऐसा समूह है जो इसे प्रोत्साहित करता है।
बोगस क्योर के संबंध में कुछ बातें अक्सर पढ़ी और सुनी जाती रही हैं, जैसे-
किसी भी प्रकार की हकलाहट का इलाज 15 दिनों में . . .
इस मशीन को अपने कान पर लगाए और हकलाहट से छुटकारा पाएं . . .
पिछले जन्म का पाप- कारण जानें और सिर्फ एक सोशन में हकलाहट क्योर करें . . .
चाईनीज पानी पीकर हकलाहट क्योर करें . . .
सम्मोहन के 10 सेशन लें और हकलाहट का समाधान पाएं . . .
एक सही क्योर की बात करें तो सितम्बर, 2009 में फराह खान द्वारा लिए गए इंटरव्यू में रितिक रोशन की कहीं बातें गौर करने लायक हैं -
फराह खान - 6 साल की आयु से शुरू हुई हकलाहट की समस्या कब तक जारी रही, डुग्गू?
रितिक - 6 से 35 साल तक, मैं अभी 35 साल का हूं।
फराह - परन्तु आप तो बहुत अच्छे से बोलते हैं?
रितिक - क्योंकि, इससे बाहर निकलने का एक रास्ता है।
फराह - हां, इससे बाहर निकलने का एक रास्ता है और हम इसके बारे में आज बात करेंगे।
अगर आप इस रूचिकर इंटरव्यू को इंटरनेट पर देख पाएं तो पाएंगे कि सुपरस्टार रितिक रोशन ने कहीं भी हकलाहट के क्योर, 2 सप्ताह या 2 माह के जादुई क्योर की चर्चा नहीं की है। रितिक ने बताया है कि वे आज भी एक घंटे रोज प्रैक्टिस करते हैं। उन्होंने परेशान करने वाले पलों की बात की है। बालीबुड में अपनी चुनौतियों का जिक्र किया है कि दाएं हाथ में 2 अंगूठे, हल्के रंग की आंखों, कमर की समस्या, सिर की नसों में खून के बहाव की चुनौती - इन सभी से बाहर निकलकर सफल हुए हैं। एक के बाद एक कठिन मेहनत ने रितिक रोशन को सफलता दिलाई। उनके खुद के प्रयास और सपर्मण ने सुपरस्टार बना दिया। कोई जादू नहीं! कोई चमत्कार नहीं!
इसलिए सच्चा क्योर आपकी कठिन मेहनत पर निर्भर करता है, स्पीच थैरेपिस्ट की कठिन मेहनत पर नहीं। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप हकलाहट को खुलकर कैसे स्वीकार करते हैं, कैसे समस्याओं का सामना करते हैं और कैसे उस पर काम करते हैं। अपने व्यवहार और कार्यशैली में क्या सकारात्मक बदलाव लाते हैं। आप इस सच्चे क्योर को पाकर ही अपने दिमाग से हकलाहट के बोझ को आजाद कर सकते हैं। मेरे लिए, यही सच्चा क्योर है।
हकलाहट से आजाद होने के लिए सामाजिक संगठन जैसे स्वयं सहायता समूह में शामिल होना चाहिए, क्योंकि हकलाना एक स्पीच डिसआर्डर नहीं है। हम अकेले होने पर अच्छा बोलते हैं, बच्चों से बातचीत करते समय या गाते समय नहीं हकलाते। पालतू जानवरों से ठीक तरह से बात करते हैं। यह क्या है? डा. जोसेफ सीफेन, जो कि एक प्रोफेसर, एक थैरेपिस्ट, एक हकलाने वाले व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं, उन्होंने यूनिवर्सटी कालेज आफ लास इंजिलिस में अपनी लम्बी रिसर्च के बाद कहा- हकलाना, व्यक्ति को सामाजिक संदर्भों में खुद अभिव्यक्त नहीं कर पाने का दोष है।
चलिए, कुछ देर के लिए हकलाहट को एक सामाजिक समस्या मान लिया जाए। एक ऐसी समस्या जिसमें हम सामाजिक क्रियाकलापों में खुद को अभिव्यक्त कर पाने में असमर्थ पाते हैं। इसके बाद, हमें क्या सहायता चाहिए? सामाजिक बातचीत!
कुछ उदाहरणों पर गौर कीजिए! आप यहां से नई दिल्ली स्टेशन पैदल अकेले जाना चाहें तो 2 घंटे का समय लग सकता है। वहीं अगर आप मेटो से जाएं तो जल्दी और आसानी से पहुंच जाएंगे। अपने स्वयं सहायता समूह को एक स्पेशल मेटो समझिए। निश्चित ही कोई सिर्फ एक व्यक्ति के लिए मेटो नहीं चलाएगा। अपने जैसे दूसरे व्यक्तियों से मिलना, बातचीत करना, लिखना और दूसरे हकलाने वाले व्यक्तियों को खोजना क्यों जरूरी है, इसलिए की आप मेटो की यात्रा का समूह में आनन्द ले पाएं, खुशी से, आनन्द से अपने संचार कौशल पर कार्य करें अपने स्वयं सहायता समूह में आकर।
मैंने अक्सर लोगों को कहते सुना है - मैं क्या कर सकता हूं? मैं कैसे सहायता कर सकता हूं? मैं क्या जानता हूं?
मुझे विश्वास है कि आप अपनी सहायता खुद कर सकते हैं। दूसरे हकलाने वालों की बात ध्यान से सुनकर, उनका सम्मान करके। हम सब यही चाहते हैं? क्यों नहीं? कोई आपकी हकलाहट को नजरअंदाज कर ध्यान से सुने, बिना किसी आश्चर्य के आपकी ओर देखे? यह सब हमें खुद करना है दूसरे हकलाने वालों के साथ। और कई हकलाने वाले ऐसा करते हैं, दिल से और बिना किसी अपेक्षा के। यह कोशिश हमें शिखर पर ले जाती है।
मेरा मानना है कि भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के लिए यह एक बड़ा मिशन है। विशाल कार्य है। इसके लिए हमें और अधिक कांफ्रन्स, वर्कशाप, ज्यादा स्वयं सहायता समूह, यात्रा करने और हकलाहट पर बातचीत करने वाले बहुत से लोगों की जरूरत होगी। हमें ऐसे समर्पित व्यक्तियों की आवश्यकता है। और अब मैं अपनी तीसरी बात पर आता हूं। समाज के रूप में हमारा भविष्य, टीसा का भविष्य। हमें खुद को कायम रखने के लिए क्या करना चाहिए?
किसी संगठन की जीवन रक्षा और प्रगति समर्पित व्यक्तियों और कार्यकर्ताओं के प्रयासों से ही संभव होती है। जो लोग मेरी फलूएंसी धाराप्रवाहिता, मेरा क्योर, मेरी स्पीच की धारणा अपने मन पर बैठा लें और अपना समय/उर्जा देने के लिए इच्छुक हों। हम लगातार ऐसे व्यक्तियों की पहचान, नियुक्ति और प्रोत्साहन देना चाहेंगे। साथ ही स्वयं सहायता के मिशन को बढ़ाना, यह कभी खत्म न हो। यह इस धरती पर संभव होगा।
आज हम दो व्यक्तियों को धन्यवाद देना चाहते हैं, जिन्होंने टीसा को इस मुकाम पर पहुंचाया है। टीसा के वर्तमान को-आर्डिनेटर जयप्रकाश सुंडा और टीसा के नए को-आर्डिनेटर श्री मणीमारण। हम इन दोनों के बेहतर जीवन की कामना करते हैं।
हमें स्वयं के लिए समर्पित होने की जरूरत है। अपनी सहायता खुद करने की जरूरत है और अपने जैसे दूसरे लोगों की सहायता करना भी जरूरी है।
खुद का अस्तित्व खुद की कोशिशों से ही संभव है। इसलिए अपने स्व को पहचानें। अपने मैं को सार्थक करें।
Thank you, Amit! Yes, for me, it was a rare opportunity and result of Good karma, from past births! I am sharing the English translation here, for the benefit of the non-Hindi speakers, as well. (sachin)
Dear
Friends
This
is no Farewell Address- I am sure I am going to meet you many - many
more times yet.
I
consider it a rare fortune and a good omen! - to meet more than a
hundred people who stammer under one roof! - and would like to
congratulate you for the courage you have displayed. Yes, it needs
COURAGE to accept that you or your child stammers.
Now
let me please use this wonderful opportunity to share with you three
things which have been very close to my heart. These are: Question of
CURE; Role of Self Help Groups and third: Future of TISA- our
community.
Regarding
cure- I must say, that finally after many years, I have understood
this: There are two kinds of cure- a bogus one and a real one. The
second one really works and THAT is the one we in TISA are trying to
promote.
The
bogus kind of cure often reads and sounds like this:
“Cure
any kind of stammering under 15 days...”
“Pop
this machine in your ear and forget about stammering..”
“Past
life regression- identify the cause – and cure your stammering for
ever in one session!”
“Chinese
water by Ex stammerer - cure your stammering!”
“Take
ten session of Hypnosis and Forget that you ever stammered..”
The
genuine cure sounds like this:
(Transcript
from Tere mere Beach- Farah Khan Interviews Hritik Roshan- September
2009)
Farah
Khan: Beginning at 6 years, how long did this problem of
stammering last, Duggu?
Hritik:
Six to thirty five; I am thirty five now.
Farah:
But you are speaking perfectly alright now?
Hritik:
Because there is a way out.
Farah:
Yes, there is a way out and that is what we want to talk about
today..
If
you follow up this interesting interview available on Internet- you
would notice that this superstar nowhere talks about a cure, a
magical cure in two weeks or two months! He talks about one hour
practice everyday- even now. He talks about embarrassing moments. He
talks about his problems as he struggles to become an actor in
Bollywood: two thumbs on right hand, light colored eyes, back
problem- and recently- blood clot in the brain - not just stammering-
all of which he overcame, one by one, through consistent hard work.
His own efforts and determination. No magic. No miracle.
So,
true cure is based on your hard work- not on therapist's hard work;
It is based on accepting openly that you are facing a problem and
that you want to do something about it. It is based on a change in
ATTITUDE – not so much in the way you talk or breathe. And this
true cure should better be called “Over coming stammering mindset”.
To me, THIS is the TRUE CURE.
This
overcoming of stammering mindset can be attempted in a social set up
like a self help group. Why? Because stammering is NOT a speech
disorder. We speak fine when we are alone, talk to children or sing.
This is what Dr Joseph Sheehan, a professor, a therapist, a stutterer
himself- had to say after a life time of research at University
College of Los Angeles:
Stuttering
is a disorder of the social
presentation of the
self.
Let
us believe him for a moment: let us say- it is a social problem- a
problem wrapped in a social context and dynamics. Then, what could
help us most? Social interactions of
course!
Let
me give you an example. You can walk alone from here to New-Delhi
station. It might take two hours, I guess. But if you can get into a
metro, you can get to New Delhi station, faster and easily. Think of
your self help group as your special metro. Obviously, no one will
run a metro for just one person. This is why you must go out, talk,
write, and find others like you- so that you can enjoy your metro
ride with a group of like minded people- and have fun and work on
your social as well as communication skills in your Self help group.
I
have heard people saying: What can I do? How can I help? What do I
know? I believe- you can render greatest help by listening with
deep attention and respect to other stammerers. That is what most of
us want, dont we? Someone who would listen to us with out judging us,
without looking at their watch again and again? That is ALL you have
to do. And many of YOU have actually done it- whole heartedly and
without any expectations of return. This gathering is a convincing
proof of that..
But
if we think of the whole country- the whole South East Asia- this is
a big task- very very big task; Therefore we need many more
conferences, workshops, many more Self-help groups, many more people
traveling and talking about stammering. For that, we need dedicated
people. And here comes my THIRD point- our future as a community,
future of TISA. How do we sustain ourselves?
Any
movement, any organization will always depend on dedicated people for
its survival and growth. People who can rise above “my fluency,
my cure, my speech” mindset
and are willing to offer their time and energies selflessly. If
we can identify, recruit, motivate such people regularly- and
appreciate them- this self help movement will not stop. It will go
beyond this land. We have been very fortunate in finding two such
people and I will take this opportunity to thank both of them today
publicly. The outgoing Coordinator JP and the new incumbent- Mr
Manimaran. Let us all cheer them and wish them all the very best in
life. And let us all dedicate ourselves to “Helping ourselves and
each other selflessly”.
Let
me conclude, by repeating what men and women like us, said three
millennium ago, in the Vedic age: “This Self is to be realized
through self-effort!”
Have
a great journey home, and back for the next NC!
Thank
you, very much!
ssssssachin
5 comments:
amit ji es post ke liye bahut bahut dhanyavad , because i missed this session .
same here amit ji :) mai bhi sachin sir ki speech nhi sun paaya :) par aapka bahut bahut dhanyawad ki aap national conference me aaye :) aur NC ki raunak ko chaar chaand laga diya
yes vishak aur mein saath mein hi market gaye the.
thanks to Sachin sir for a wonderful and very encouraging speech,which is full of energy,they given us.
And also thanks to Amit ji for posting it.
Very upto the occasion and precise speech by Dr.Sachin and so well pendown by Mr.Amit.
Thank you very much both of us.
Post a Comment