August 30, 2013

I'm a clown!


“द शो मस्ट गो ऑन’’ - सर्कस मालिक का राजू जोकर को उसकी माँ की मौत पर समझाते यह संवाद इतिहास रच गए! दूसरों को खुशियाँ बाँटना और रोते हुए चेहरे को हँसाना, चाहे खुद पर जो बीत रही हो- यही परिचय है सर्कस के एक जोकर का!

‘‘मेरा नाम जोकर’’ फिल्म का जोकर केवल सर्कस ही नहीं बल्कि मनोरंजन जगत से जुड़े उन तमाम कलाकारों को समर्पित है जिनके मुखौटे के पीछे छिपी जिंदगी का सच वो नहीं होता जो बाहर से दिखता है।


कल मैं टीवी पर एक कामेडी सीरियल देख रहा था। कलाकार दुबला-पतला! वह अपने दुबलेपन को हास्य के रूप में पेश करता है। काल्पनिक कहानियां गढ़ता है। बताता है कि पांचवी मंजिल पर उसका घर है। एक बार पत्नी ने कूलर चालू किया और वह हवा के झोंके से नीचे गिर गया!

फिल्म, टीवी, रंगमंच हो या लियल लाइफ। हमें ऐसे पात्र जरूर मिल जाते हैं, जो हंसाते हैं। उनका एक ही मकसद है लोगों के चेहरों पर मुस्कुराहट लाना। यही बात हकलाहट पर भी लागू होती है।

हम निराश, परेशान, उदास हैं, क्योंकि लोग हमारी हकलाहट को सुनकर हंसते हैं! कुछ ऐसे लोग भी हैं जो जान-बूझकर लोगों को हंसाते हैं। टापिक चाहे कोई भी हो, वे खुद को भी मजाकिया रूप में प्रस्तुत करते हैं। उन्हें ऐसा करने में जरा भी संकोच, शर्म या डर का अहसास नहीं होता।

यह इसलिए संभव हो पाता है कि कलाकार स्वीकार कर लेते हैं कि हंसाना उनका काम है, कला है। लोगों की हंसी उन्हें विचलित नहीं कर पाती है।

मैं यह नहीं कहना चाहता कि हम हकलाने वाले सर्कस के जोकर हैं! पर सर्कस का जोकर भी एक इंसान है। उसकी भावनाएं हैं। हमें उससे कुछ सीख लेने की जरूरत है।

हां, ठीक है, लोग हकलाहट को सुनकर हंसते हैं तो क्या हुआ? आप और ज्यादा खुलकर हकलाइए। आखिर लोग कब तक हंसेगे! एक समय ऐसा आएगा कि उनकी हंसी उन्हें ही शर्मिन्दा कर देगी।

हमें जीवन को बेहतर बनाने के लिए हकलाहट की शर्म से आजाद होना चाहिए। और इसका तरीका है लोगों की चिन्ता को भूलना! लोग क्या कहेंगे? लोग हंसेंगे? अरे! हंसेंगे, तो क्या हुआ? आपने कौन-सा गलत काम किया है।

हमारी भारतीय संस्कृति और लोकगीतों में लोगों की आसामान्य वाणी, वेशभूषा को मजाक के रूप मे ंसदियों से पेश किया जाता रहा है। एक हास्य कलाकार के लिए लोगों की हंसी ही उसकी खुशी है, सफलता है।

हकलाहट को नए नजरिए से देखे और समझे जाने की जरूरत है। मैं जोकर हूं और मेरी स्पीच सुनकर लोगों को हंसी आती है तो इसमें मेरी क्या गलती है? मेरा क्या दोष? यह तो उन लोगों को फैसला करना हैं कि वे किस चीज पर हंसें!

हकलाहट की शर्म को उतार फेंकना आसान नहीं है, लेकिन असंभव भी नहीं। सारे जहां कि फिक्र लिए हम कब तक घुटते रहेंगे? जिस दिन आपने हकलाहट की शर्म पर विजय पा ली, उस दिन आपकी सच्ची जीत हो जाएगी।

अब मैं हकलाता हूं तो कभी मन में निराशा का भाव नहीं आता। दुःख नहीं होता। लोगों पर गुस्सा नहीं आता। सोचता हूं वे लोग हकलाने के बारे में जानते ही नहीं, इसमें उनका क्या दोष? क्या अपराध? कुछ भी नहीं।

इसलिए बेकार की शर्म को छोड़ दीजिए! खुलकर हकलाइए!

--

- अमित 09300939758



2 comments:

Satyendra said...

दिल खुश हो गया यह सारगर्भित लेख पढ कर.. सचमुच, जीवन वास्तव मे एक नाटक ही तो है.. अगर थोडा हँस लें, अपने पे ही सही तो क्या गलत है ?

प्रभु ! कृपा हि केवलम् said...

थोडा अपने पर हँसना अलग बात है और जिंदगी भर दूसरे हम पर हँसे , ये अलग बात है । जोकर अपनी मनःस्थिति को शो के बाद बदलने के लिये स्वतंत्र है और हम..... जिंदगी भर ढोने के लिये मजबूर ।
लेकिन..........
धीरे धीरे ये मेरी समझ मे आ रहा है आज जो परिस्थितियाँ हमारे सामने है उसके जिम्मेदार हम स्वयं ही हैं । स्वामी विवेकानंद की बात समझ मे आ रही है - "you are the creator of your own destiny. Take the whole responsibility on your own shoulders."
रितिक रोशन अपने पहले अवार्ड फ़ंक्शन पर दुबई नही बोल पाया । वो बोलता है कि मैं जगह ढूँढ़ रहा था जहाँ जाकर 10,000 दस हजार बार दुबई बोल सकू और अंत मे आलमारी मे घूस कर 10,000 दस हजार बार बोला । टीसा मेंबर hard word कितनी बार बोलते हैं ।
मैने सिर्फ़ 100 बार एक शब्द को बोला जिसे मैं पिछले 4 साल से Boss के सामने नहीं बोल पाता था और अगले दिन इतनी आसानी से वो शब्द निकला कि मैं खुद हैरान था ।
this is simple mind re-programming.
So TISA members ! Stand up & work.