पिछले सप्ताह नई दिल्ली में आयोजित टीसा की संचार कार्यशाला में शामिल होकर मैं ट्रेन से वापस लौट रहा था। सफर बहुत लम्बा था। लगभग 12 घंटे का। सुबह जब मैं ट्रेन के टॉयलेट पर गया तो दीवार पर एक वाक्य लिखा था :-
"आप दुनिया के सबसे बेहतर इंसान हैं . . . !"
यह पढ़कर मुझे थोडा आश्चर्य हुआ और प्रसन्नता भी हुई। आमतौर पर सार्वजनिक स्थानों के टॉयलेट अप्रिय वाक्यों से भरे रहते हैं जिन पर नज़र पड़ते ही शर्मिन्दगी उठानी पड़ती है। लेकिन यह पहला मौका था जब ऐसे स्थान पर कुछ अच्छा लिखा हुआ मिला। यह वाक्य लिखने वाले की जितनी तारीफ़ की जाए वह कम है। हालाकि मैं इस बात का समर्थन बिलकुल नहीं करता की सार्वजनिक स्थानों के टॉयलेट पर कुछ भी लिखा जाए.
हम हकलाने वाले खुद को कमतर आंकते हैं और धाराप्रवाह बोलने वालों को बेहतर समझने की भूल करते हैं। हम यह भी भूल जाते हैं की हममें दुनिया का सबसे बेहतर इंसान बनने की काबिलियत है। हमें उस काबिलियत को पहचानना चाहिए.
हम लोग बाहर की दुनिया में निकलने से संकोच करते हैं, क्योकि हकलाने का डर हम पर हावी रहता है। जबकि सच तो यह है की बिना बाहर निकले किसी को कुछ नहीं मिला। जरा सोचिए, अगर महात्मा गांधी गुजरात के पोरबंदर शहर तक सीमित रह जाते तो शायद वे न तो अच्छे तालीम ग्रहण कर पाते और न ही इतने महान और प्रसिद्ध हो पाते.
कहने का मतलब यह है की हमें भी अपनी सीमित दुनिया से बाहर निकलना चाहिए। हमारे पास रोज़ लोगों से बातचीत करने के ढेरों अवसर हैं, लेकिन हम उन्हें पहचान ही नहीं पाते। लोग किसी की सुनना नहीं चाहते लेकिन सुनाना चाहते हैं। आप भी ऐसा करें, रोज़ अनजान लोगों से पता पूंछें, कुछ जानकारी लें। जब आप रोज़ यह करेंगे तो आपका हौसला बढेगा, और हकलाहट का डर भागेगा।
बेहतर इंसान बनने का फंडा यही है की आप दुनिया में बाहर निकलें, लोगों से बातचीत करें, उनके विचारों को जानें समझें, उनकी मदद करें. जब आप किसी की बात सुनेगे तो वह भी आपकी बात सुनेगा. बस थोडा सा धैर्य रखें।
Amitsingh Kushwah
Bhopal (M.P.)
Mo. 0 9 3 0 0 9- 3 97 5 8
3 comments:
apki her post bahut ache hoti hai very good
Very Good Amit! Keep writing and sharing and traveling..
Great!
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