May 30, 2012

जो बोलें सार्थक बोलें . . . !


लगभग दो साल पहले एक बार आफिस में शाम को एक मित्र मिलने आए. मैं उनसे ढाई घंटे तक ढेर सारी बातें करता रहा. इसके बाद वे अपने घर चले गए. इसके बाद मैंने महसूस किया कि मेरा मुंह ज्यादा बोलने के कारण थोडा दर्द कर रहा है, मेरी दिनचर्या में ढाई घंटे कि देर हो गई, और इससे भी बड़ी बात तो यह थी कि इस ढाई घंटे की बातचीत का कोई सार्थक पहलू नहीं था. क्योकि बातचीत समाज, सरकार और दूसरे लोगों कि आलोचना और खुद को अच्छा साबित करने तक ही सीमित थी. 

हम लोग अकसर और प्रायः रोज़ ही इस तरह कि विसंगतियों का शिकार होते हैं. जब ट्रेन में जा रहे हों तो इंडियन रेलवे को कोसना, बस में हो तो रोडवेस को बुरा-भला कहना, लम्बी कतार में खड़े हों तो काउंटर पर काम कर रहे कर्मचारी को धीमी गति से काम करने पर अनर्गल टिप्पणियाँ करना. यह सब हमारे प्रतिदिन के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है. लेकिन हम अगर एक दूसरे पहलू से सोचें तो हमें किसी को कोसकर, किसी कि बुराइयों या कमियों का मखौल उड़ाकर, किसी कि निंदा करके कभी कुछ नहीं मिला होगा. उलटे हमने बेवजह अपना मन ही अशांत और दुखी किया.  
सोचिए अगर आपने सिर्फ काम कि बात करना शुरू कर दिया तो क्या होगा? हों सकता है कि टाइम पास करने या गप-शप के लिए कोई दूसरा तरीका खोजना पड़ जाए. ध्यान दें, आप किसी बड़े अधिकारी जैसे कलेक्टर से मिलने जाएं तो वे मुश्किल से २-३ मिनट ही बात करते हैं और आपकी समस्या को सुनकर उसका समाधान करने कि कोशिश करते हैं. ऐसा उच्च पदों पर आसीन लगभग सभी लोग करते हैं - बातें कम, काम ज्यादा. क्या आप कह सकते हैं कि कम बातें करने वाले हमेशा घमंडी, आत्मकेन्द्रित और अंतर्मुखी होते हैं. कभी नहीं.     

दरअसल, यह हमारा मानवीय स्वभाव होता है कि हम दूसरों कि कमिओं कि आलोचना करना और स्वयं को बेहतर साबित करने कि होड़ में शामिल हो जाते हैं. अगर आप दूसरों के बारे में सोचने और उनकी चिंता करने के बजाए खुद के बारे में और अपने काम के विषय में विचार करें तो समय का सदुपयोग कर पाएंगे. जैसे जब आप हकलाहट को नियंत्रित कर बेहतर संवाद कौशल प्राप्त करने के लिए बोलने कि किसी तकनीक का इस्तेमाल करके बोलते हैं तो आपका यह बोलना सार्थक है क्योकि आप किसी अच्छे कार्य को रहे होते हैं. 

हमें धाराप्रवाह बोलने की अंधी दौड़ में शामिल होने कि बजाए सार्थक, आर्थपूर्ण और उपयोगी वार्तालाप कि आदत को विकसित करना चाहिए. इससे हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं और अपने बातचीत के द्वारा दूसरों को खुश और संतुष्ट कर सकते हैं. हमेशा वही बोले जो आपको और दूसरों को सुनना प्रिय लगे तथा शांति प्रदान करे. इससे आपके दोस्तों और समर्थकों कि संख्या खुद बढ़ जाएगी. बेकार की बातें करने का आदी होने से कहीं ज्यादा अच्छा है दो शब्द काम के बोलना.         
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Amitsingh Kushwah,
Satna (MP)
Mobile No. 093009-39758

6 comments:

Satyendra said...

बहुत सही ..
इस किस्म की अर्थहीन नकारात्मकता से हम अपना ही नुक्सान करते हैं...

Jitender Gupta said...

Aapne hame aaina dikha diya.
Lekin insan ki fitrat hi kuch aisi hai ki vah har waqt sadupyogi baten nahi kar sakta.

Dinesh said...

Bahuth khoob..

J P Sunda said...

यह हकलाने का एक फायदा ही है की बहुत सारे हकलाने वाले लोग बोलने की अहमियत को समझ रहे हैं | बहुत ही बढ़िया ब्लॉग , अमित जी |

jasbir singh said...

It is very important what comes out of our mouth.

Very good blog.

Amitsingh Kushwah said...

आप सभी कि अमूल्य टिप्पणिओं के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद . . . !