May 11, 2012

टीसा से जुड़ने पर आत्मविश्वास जागा


पहले ऐसा लगता था जैसे की इस दुनिया में अकेला मैं ही हकलाता हूँ लेकिन टीसा से जुड़ने के बाद मुझे ऐसा लगा की हकलाने वाला मैं इस दुनिया में अकेला व्यक्ति नहीं हूँ, बल्कि मेरे जैसे सैकड़ो लोग और हैं जो इस समस्या से परेशान हैं. इस वजह से मेरे अन्दर बहुत ज्यादा आत्मविश्वास पैदा हुआ, क्योंकि अब  मैं अकेला नहीं हूँ मेरे जैसे लोग और भी हैं.

मैं सोचता था कि हकलाने वाले लोगो को कोई नौकरी नहीं देगा, जबकि टीसा ज्वाइन करने के बाद जितने लोगो से मिला उनमे से अधिकतर लोग जॉब कर रहे थे या पहले कर चुके थे. यही वजह थी कि मैं टीसा के किसी भी सदस्य से मिला तो उनसे मैंने एक प्रश्न ज़रूर पूछा की वे क्या करते हैं या क्या कर रहे हैं ? और उनको जॉब मिलने में क्या दिक्कतें आईं? 


मैं किसी से भी कुछ भी नहीं पूछता था, क्योंकि मुझे लगता था की मेरे हकलाने की वजह से वे लोग मुझ पर हसेंगे और मेरा मजाक उड़ायेंगे. स्कूल और कॉलेज में भी टीचर से कुछ नहीं पूछता था और साथ ही अगर टीचर कोई सवाल मुझसे पूछती है तो उत्तर मालूम होते हुए भी मैं यह कहता था की मुझे उत्तर नहीं मालूम लेकिन अब मैं हकलाते हुए जवाब देने की सफल या असफल कोशिश ज़रूर करता हूँ.  

मैं किसी दुकान पर कुछ खरीदने जाता था तो एक स्लिप पर लिख कर दे देता था कि मुझे क्या चाहिए.  लेकिन अब मैं पहले बोलने की कोशिश करता हूँ. अगर नहीं बोल पता या दुकान पर ज्यादा भीड़ होती है तो मै  लिख कर दे देता हूँ |

मैं बात करते वक्त चेहरा इधर-उधर मोड़ता था कि कोई मेरे चेहरे के भाव न देख पाए, और पूरी कोशिश करता था कि किसी को यह न पता चले की मुझे हकलाने की आदत है. अपनी हकलाहट को छुपाने की पूरी कोशिश करता था लेकिन अब मैंने कुछ हद तक अपनी इस आदत को स्वीकार कर लिया है और इसलिए मैं बात करते वक्त मैं बाउंसिंग और पाजिंग का इस्तेमाल करने की कोशिश करता हूँ.  अब मैं अपना चेहरा छुपता नहीं बल्कि आँखों में देखकर बात करता हूँ.

अब मैं फ़ोन पर बात करने से हिचकिचाता नहीं हूँ,  हकलाते हुए ही सही लेकिन बात करने की कोशिश ज़रूर करता हूँ. कोशिश करने से पहले हार नहीं मानता,  और पहले मैं बात करने की कोशिश भी नहीं करता था, क्योंकि मैं मान चूका था कि मैं बात नहीं कर सकता, इसलिए कोशिश करना भी बेकार है.

टीसा ज्वाइन करने से मुझे क्या फायदा हुआ ? 

अगर मैं इसका आसान शब्दों में उत्तर दूँ तो मैं यह कहूँगा की टीसा ने मुझमें आत्मविश्वास भर दिया है. हकलाने के बारे में मेरे विचारों को बदल दिया और एक नई सोच से भर दिया.  अब मैं यह मानकर चलता हूँ कि हकलाहट मेरे जीवन में बाधा नहीं बनेगी. अब मैंने यह स्वीकार कर लिया है कि मैं हकलाता हूँ.  अब मुझे शर्म नहीं आती की मैं हकलाता हूँ. और अब मैं हकलाहट को लेकर किसी हीनभावना से ग्रस्त नहीं हूँ.

-जितेंदर गुप्ता 'प्रथम', नई दिल्ली 

6 comments:

J P Sunda said...

जितेंदर TISA में वाकई में एक जादू सा है | और यह इसलिए है क्यूंकि इसमे आप जैसे मेम्बेर्स हैं | आपका signature - "जितेंदर गुप्ता 'प्रथम'" पढ़कर तो मेरा चेहरा खिलखिला उठा :-) I believe you are working on that translation of that book.

Mohit kumar said...

Bilkul sahi Amit ji, TISA ne jaise jaadu hi kar dia hai hum haklo par.
Bas fark hai ki hum kab apne jimandari ko samjhenge, hum kab apne haklahat ko samjhenge.

amit dixit said...

Again thanks a lot TISA..and Jitendra!!main hamesha hi aapke hindi me likhe posts ka intejaar kiya karta hu...aajkal aapse phone par baat karta hu to pata chalta hai ki aapme bahut hi improvement huaa hai..u r working hard..and great going...gud luck!!

GORAV DATTA - I am Learning said...

congrats and keep going

Satyendra said...

सचमुच - मेरी दोस्ती का दायरा भी तीसा शुरू होने के बाद कुछ इस कदर बढ गया है कि बस पूछो मत !

Jitender Gupta said...

yes j.p. sir, mai translation par kam kar raha hu. lekin kuchh bhi likhane se pahle use mai khud acchi tarah samajh lena chahta hu taki mai acche se samajha saku. kyonki mai chahta hu ki meri traslated book kisi ke kam aaye raddi me na jaye.

thanx for your valuable comment.