March 22, 2012

बात करने के नए अवसर तलाशें . . . !

मै बचपन से ही जब भी मार्केट जाता था तो जो सामान खरीदना होता पर्ची में लिखकर ले जाता. यहाँ तक की एक वस्तु भी लेनी होती तो उनका नाम भी पर्ची में लिख कर देता. इस विवशता पर मुझे अक्सर दुःख होता की एक चीज लेने के लिए भी लिख कर देना पड़ता है. धीरे-धीरे वक्त गुजरता गया और आज मै शापिंग करते समय पर्ची का इस्तेमाल नहीं करता, बल्कि बोलकर ही सामान मांगता हूँ.

हकलाने के कारण हम अपने काम को आसान बनाने के लिए इस तरह के उपाय अपनाते हैं. जैसे हमेशा एक ही शॉप से सारा सामान खरीदना, क्योकि दुकानदार हमसे अच्छी तरह से परिचित होता है. जब दूकान पर कोई दूसरा ग्राहक न हो, तब वस्तु मांगना, हम जिस शॉप से हमेशा खरीदते हैं अगर वह बंद है तो दूसरे दूकान पर ना जाना. यह मेरे साथ अभी कुछ दिनों पहले हुआ. मै जिस दूकान से मोबाइल का रिचार्ज लेता था, वह एक दिन बंद थी तो मैंने उस दिन रीचार्ज नहीं लिया, फिर अगले दिन जब वह दूकान खुली तो उसके पास गया.


हकलाहट के कारण हम नए लोगों से जुड़ने में संकोच करते हैं. हम जीवन में चेंज नहीं करना चाहते, क्योकि उससे हम असहज हो जाते हैं. इस कारण हम लोगों से जुड़ने का सुनहरा अवसर खो देते हैं. अगर आप इन छोटी बातों पर भी ध्यान दें तो हर दिन नए लोगों से मिलने और बात करने का मौका मिल सकता है. जरा सोचिए आप जिस सामान को खरीदने के लिए हमेशा अपने घर से दूर जाते रहे हैं अगर वही चीज आपको घर के पास वाली दूकान पर मिल जाए तो..! क्योकि आप अनजाने लोगों से बात करने में कतराते रहे इसलिए आपको यह मालूम ही नहीं चला की आपकी जरूरत की चीज तो पास में ही मिल रही है.


आप एक काम और कर सकते हैं. जब आपको ज्यादा खरीदारी करनी हो तो लिस्ट साथ में लेकर जाएं और खुद एक-एक सामान बोलकर मांगें. इससे आपकों बोलने का मौका मिलेगा. और आप नए लोगो से जुड़ पाएँगे. इसी तरह जब टिकट खरीदनी हो तो लम्बी और गहरी सांस लेकर थोडा रिलेक्स हो जाएँ और आराम से बोले, जल्दीबाजी में नहीं. इससे आप जो बोलना चाहते हैं आसानी से बोल पाएँगे. 


जब कॉल सेंटर पर बात करने की लत लग गई . . .
२००९ में मुझे एक बार एयर टिकट बुक कराने के लिए जानकारी लेने का विचार आया. मैंने तुरंत वेब साईट से कई एयरलाइंस के टोल फ्री नंबर लिए और बात करना शुरू कर दिया. दिन में कई बार फोन करके फ्लाइट्स की जानकारी और फेयर के बारे में जानता रहता. इससे मै पूरे आत्मविश्वास से बात कर पाता था. एयर टिकट कैसे बुक होते हैं और कैसे एयर लाइंस का संचालन होता है इसके बारे में काफी कुछ जान गया. एक बार काल सेंटर पर एक महिला ने कहा की आप रोज़ फोन करते हैं, तो मैंने उन्हें बताया की मैं हकलाता हूँ और प्रैक्टिस करने के लिए फोन करता हूँ. तो उन्होंने कहा - "आप हकलाते हैं तो क्या हुआ, आप सबसे खुलकर बात किया करें."  इससे मुझे अहसास हुआ की दूसरे लोग हमारी सुनते हैं और हकलाहट को समझने की कोशिश करते हैं.


इस तरह हम बात करने के नए अवसर खुद तलाशें. अगर हम हकलाते भी हैं तो क्या फर्क पड़ता हैं, हमें तो हर हाल में बोलना है, अपना काम करना है. जब हम दूसरों की चिंता करना छोड़ देते हैं तो हम हकलाहट को नियंत्रित करने का पहला कदम उठाते हैं. इसलिए जब भी अपरिचित लोगों से बात करने का मौका मिले तो शुरू हो जाएं . . .


- अमितसिंह कुशवाह
0 9 3 0 0 9 - 3 9 7 5 8 

4 comments:

vinod chauhan said...

kya baat hai........amit sir!!right say!!nice topic...!!It is really a energy booster...topic..!!

Satyendra said...

बहुत सुन्दर अमित- एकदम सच लिखा है आपने । जीवन में मौके ही मौके हैं- बस हम ही अपने डर को सीने से चिपकाये पूरी जिन्दगी बिता देते हैं यूँ ही..

J P Sunda said...

"suru ho jayen"...padh kar maja gaya Amit ji. Dekhiyae aab jald hi hum bhi hindi lekan ki daud main shamil honge :-)

Narendra Vashistha said...

well said, Amit. It is quite true. As we have to jump into the water if we wish to learn swimming, similarly, it is the primary requirement for us to speak out with many people if we wish to improvement our stuttering.
NARENDRA VASHISTHA