November 1, 2010

हकलाहट मजाक का विषय नहीं है . . . !

'गोलमाल ३' फिल्म के मामले में सचिन सर और नितिन जी ने जो पहल की है वह सराहनीय है. आजकल लगभग हर हिंदी फिल्म में पात्रों से हकलाहट का अभिनय करवाकर जबरन हास्य पैदा करने की कोशिश की जा रही है. हकलाने वाले लोगों को मूर्ख और मजाक का पात्र समझाना दुखद और अमानवीय है.

मै अकसर सोचता था की फिल्मों में हकलाहट दोष से सम्बंधित दृश्य और संवाद नहीं दिखाए जाने चाहिए. अगर दिखाना ही है तो यह दिखाया जाना चाहिए कि कैसे हकलाहट दोष की बाधा को पार कर लोग हर छेत्र में काम कर रहे हैं और सामान्य बोलने वालों के साथ कंधे से कन्धा मिलकर चल रहे हैं.

तीसा के द्वारा जो कोशिश की गई है उससे फिल्म बनाने वालों को एक बार सोचने पर बाध्य होना पड़ेगा की हकलाहट वास्तव में क्या है, और यह मजाक का विषय नहीं हो सकता. मेरा तो यह सुझाव है की सभी साथी 'गोलमाल ३' के निर्माता, निर्देशक, लेखक और फिल्म सेंसर बोर्ड को अलग-अलग पत्र लिखकर अपनी नाराज़गी जाहीर करे जिससे आगे चलकर कोई हकलाने वालों को मजाक के तौर पर फिल्म में प्रस्तुत न करे.

- अमितसिंह कुशवाह,
इंदौर मध्य प्रदेश (भारत)
मोबाइल : 0 9 3 0 0 9 - 3 9 7 5 8

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