December 17, 2014

हकलाहट का कारण शारीरिक?

हकलाहट का कारण अब तक मनोवैज्ञानिक ही समझा जाता था
अमरीकी शोधकर्तआओं ने कहा है कि हकलाने का कारण हो सकता है मानसिक न हो कर शारीरिक हो. इस खोज से आगे हो सकता है कि हकलाने की दवा निकाली जा सके. कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर जेराल्ड मैग्वायर का मानना है कि हकलाना, मिर्गी या स्कित्ज़ोफ़्रेनिया जैसी ही एक समस्या है जो मस्तिष्क मे एक रासायनिक असंतुलन के कारण होता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने मस्तिष्क की जांच के बाद पाया कि हकलाने का सम्बन्ध मस्तिष्क के अन्दर के एक गहरे भाग से हो सकता है जो हमारी बोलने की क्षमता को नियंत्रित करता है.

उनका ये भी मानना है कि हकलाने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क के उस हिस्से में मस्तिष्क का एक रासायनिक तत्व डोपामाइन की मात्रा बहुत अधिक हो सकती है.

प्रो.मैग्वायर को आशा है कि इस शोध से हकलाहट दूर करने का रास्ता निकलेगा.

1970 में किये गये एक शोध में ये बात सामने आई थी कि हैलोपेरिडोल नामक दवा जिसका उपयोग स्कित्ज़ोफ़्रेनिया जैसी बीमारियों के लिये किया जाता था उससे हकलाने की समस्या को भी कुछ हद तक कम करने मे सफलता मिली थी.

लेकिन उस दवा के दुष्प्रभाव से उसके प्रयोग पर रोक लगा दी गई.

प्रो.मैग्वायर ने जो स्वयं हकलाने की समस्या के शिकार हैं, एक अन्य दवा ओलान्ज़ापाइन के प्रयोग की सलाह दी है जो हो सकता है कारगर साबित हो.

ब्रिटेन को ही लें तो यहाँ की लगभग 0.9 प्रतिशत आबादी हकलाहट का शिकार है. इनमें पुरुषों की तादाद महिलाओं से तिगुनी है.

हकलाहट काफ़ी हद तक आनुवंशिक होती है. यगि किसी का कोई निकट संबंधी इससे जूझ रहा है तो उस व्यक्ति के इससे प्रभावित होने के आसार काफ़ी ज़्यादा है.

2 comments:

प्रभु ! कृपा हि केवलम् said...

हकलाहट का कारण शारीरिक? Post पढकर मै भयभीत हो गया ।

हकलाहट अगर मिर्गी , सिजोफ्रेनिया जैसी बीमारी है तब तो PWS को ये उम्मीद छोड ही देनी चाहिये कि विज्ञान हकलाहट का समाधान खोज लेगा, क्योकि अभी तो मिर्गी, शिजोफ्रेनिया का भी कोई स्थायी हल नही खोजा गया है । वो भी अभी रोजाना दवाइयों से manage ही की जा रही है, cure नहीं ।

पर असल मे तो वैज्ञानिक सिर्फ लक्षणों को देख रहे है, असली कारण को नहीं। स्थूल को पकड रहें है सूक्ष्म को नहीं ।
स्वामी विवेकानन्द ने अपनी किताब राजयोग मे लिखा है - "मानव शरीर ऊर्जा का एक भंवर मात्र है physical body is whirlpool of energy."
किसी भी शारीरिक बीमारी का कारण कोइ मानसिक समस्या या और गहराई मे जाएं तो अन्तर्मन मे छिपी नकारात्मक भावनाएं ही है । क्योकि नकारात्मक भावनाए और विचार negative emotions and thoughts नकारात्मक ऊर्जा negative energy क्षेत्र बनाते है । नकारात्मक ऊर्जा कोशिका की माइटोकोन्ड्रिया मे जाकर कोशिका cells को क्षति (damage) पहुंचाना शुरु कर देती है । उदाहरण के तौर पर
Inferiority complex - Asthma
Frustration - Migraine
Fear - Heart attack
Anger - Lever Problem (acidity)
Grief - Lungs diseases
Nervousness - Stomach problem (constipation, diabetes)
Worry - Ulcer
Critics, Pride - Arthritis
Hostility - Coronary Heart disease
Hopelessness - Cancer
Negative Thinking - Brain stroke, Paralysis

इसीलिए अगर हम अपनी हकलाहट को खुलकर स्वीकार नहीं कर रहे , (WITHOUT ACCEPTANCE) तो सिर्फ हकलाहट ही नही बढा रहे, कई और रोगों को भी निमंत्रण दे रहे हैं ।
So
हकलाओ, मगर प्यार से, शान से , आत्मविश्वास से ....







Joy deep Majumder said...

@ Hemant : I had suffered from Epilepsy disorder from 5 years..and yes i had taken prescription drugs for all those 5 years..and let me tell you its been 20 years now that i have had not a single seizure, a far cry from those days .. when i would have a minimum of 1 episode of seizure every day..the point being "mirgi" treatment calls for stringent intake of timely drugs for about 2-3 years..the point also being many of us either commit ourselves out of the drugs ..either due to non focus...or lack of disposable funds..mind you te drugs are not economical by any means..which is one of the deterrent to many a common man.