- विनयकुमार त्रिपाठी (इलाहाबाद, उत्तरप्रदेश)
मैं अपनी पुरानी यादों को आप सबसे शेयर करना चाहता हूं। जब छोटा था तो यह अहसास ही नहीं था कि हकलाहट के कारण मेरी जिन्दगी नर्क होने वाली है। बचपन में मेरी आवाज सभी को बहुत प्यारी लगती थी। उम्र बढ़ने के साथ मुझे महसूस हुआ कि ठीक तरह से नहीं बोल पाता। फिर मैं लोगों से दूर होता गया। कुछ भी बोलना आसमान से तारे तोड़ना जैसा लगने लगा।
हमेशा सोचता कि अगर मैं हकलाता नहीं होता तो मेरे कई दोस्त होते, स्कूल में टीचर्स से खूब बातें करता। स्कूल में 15 अगस्त या 26 जनवरी का दिन आता, मुझे भी गाना गाने और भाषण देने का मन करता। यही भावना साल दर साल स्कूल के हर फंक्शन में मुझे कचोटती रही।
कालेज के तीसरे साल में मैंने एक कार्यक्रम में गाना गाने का मन बनाया, लेकिन कार्यक्रम का समय नजदीक आते ही मैं नर्वस हो गया। सोचता कि लोगों के सामने हकला गया तो वे क्या सोचेंगे? कालेज में कभी भी पार्टिसिपेट नहीं कर पाया। कालेज लाइफ के बाद दोस्तों से बातचीत करना बंद कर दिया।
मुझे कहीं भी जाना पसंद नहीं था। अपने रूम पर अकेले बैठकर किताबें पढ़ता। यह डर सताता कि अगर रूम से बाहर गया तो बोलना भी पड़ेगा। एक समय ऐसा आया जब हकलाहट की वजह से घर छोड़ने वाला था।
सौभाग्य से टीसा से जुड़ने का मौका मिला। टीसा ने मुझे नई जिन्दगी दी है। मुझे यह पता चला कि केवल मैं ही नहीं हकलाता हूं, बल्कि मेरे जैसे कई लोग हैं जो हकलाते हैं। हकलाने के बावजूद हम हर तरह के काम कर सकते हैं, अपने कम्यूनिकेशन को अच्छा बना सकते हैं।
9-11 अगस्त 2013 को हरबर्टपुर में आयोजित कार्यशाला में शामिल होने के बाद काफी हिम्मत आई और हकलाहट के प्रति नजरिए में बदलाव आया। लौटने के बाद मैंने 15 अगस्त 2013 को एक स्कूल में 500 लोगों के सामने भाषण दिया और एक गाना गाया।
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08874483583
मैं अपनी पुरानी यादों को आप सबसे शेयर करना चाहता हूं। जब छोटा था तो यह अहसास ही नहीं था कि हकलाहट के कारण मेरी जिन्दगी नर्क होने वाली है। बचपन में मेरी आवाज सभी को बहुत प्यारी लगती थी। उम्र बढ़ने के साथ मुझे महसूस हुआ कि ठीक तरह से नहीं बोल पाता। फिर मैं लोगों से दूर होता गया। कुछ भी बोलना आसमान से तारे तोड़ना जैसा लगने लगा।
हमेशा सोचता कि अगर मैं हकलाता नहीं होता तो मेरे कई दोस्त होते, स्कूल में टीचर्स से खूब बातें करता। स्कूल में 15 अगस्त या 26 जनवरी का दिन आता, मुझे भी गाना गाने और भाषण देने का मन करता। यही भावना साल दर साल स्कूल के हर फंक्शन में मुझे कचोटती रही।
कालेज के तीसरे साल में मैंने एक कार्यक्रम में गाना गाने का मन बनाया, लेकिन कार्यक्रम का समय नजदीक आते ही मैं नर्वस हो गया। सोचता कि लोगों के सामने हकला गया तो वे क्या सोचेंगे? कालेज में कभी भी पार्टिसिपेट नहीं कर पाया। कालेज लाइफ के बाद दोस्तों से बातचीत करना बंद कर दिया।
मुझे कहीं भी जाना पसंद नहीं था। अपने रूम पर अकेले बैठकर किताबें पढ़ता। यह डर सताता कि अगर रूम से बाहर गया तो बोलना भी पड़ेगा। एक समय ऐसा आया जब हकलाहट की वजह से घर छोड़ने वाला था।
सौभाग्य से टीसा से जुड़ने का मौका मिला। टीसा ने मुझे नई जिन्दगी दी है। मुझे यह पता चला कि केवल मैं ही नहीं हकलाता हूं, बल्कि मेरे जैसे कई लोग हैं जो हकलाते हैं। हकलाने के बावजूद हम हर तरह के काम कर सकते हैं, अपने कम्यूनिकेशन को अच्छा बना सकते हैं।
9-11 अगस्त 2013 को हरबर्टपुर में आयोजित कार्यशाला में शामिल होने के बाद काफी हिम्मत आई और हकलाहट के प्रति नजरिए में बदलाव आया। लौटने के बाद मैंने 15 अगस्त 2013 को एक स्कूल में 500 लोगों के सामने भाषण दिया और एक गाना गाया।
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3 comments:
विनय, बहु सुन्दर विचार हैं। 500 लोगों के सामने भाषण देकर आपने अपनी काबिलियत को साबित कर दिया है। आपकी हिम्मत को सलाम। हिन्दी में आगे लिखते रहें। साधुवाद!
very good . Now TISA workshop are doing miracles . Keep it up.
जिँदगी की असली उडान
अभी बाकी है ,
इरादो का इम्तिहान
अभी बाकी है ।
अभी तो नापी है मुठ्ठी भर
जमीन ,
अभी सारा आसमान बाकी है ।।
Vinay- keep marching ahead! We are proud of you!
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