कई साल पहले टीवी पर एक सीरियल देखा था। एक सीनियर सिटीजन को संयोग से एक अद्भुत चश्मा मिलता है। इस चश्मे को पहनने के बाद वह लोगों के मन की बात को सुन पाता है। सामने वाले उसके बारे में क्या-क्या सोच रहा है, यह सबकुछ वह जादुई चश्मा पहनने वाले बजुर्ग को बता देता है।
धीरे-धीरे वह व्यक्ति इस चश्मे को लेकर बहुत परेशान लगता है। पत्नी, बच्चे, रिश्तेदार, पड़ोसी और परिचित उसके बारे में क्या-क्या अप्रिय सोचते हैं यह बात जानकर बहुत दुःखी होता हैं और अंत में उस चश्मे को त्याग देता है।
‘‘अरे! वह हकला अमित कई दिनों से दिखा नहीं।’’ यह वाक्य शायद मेरे परिचित/दोस्त कभी इस्तेमाल करते होंगे? मुझे हकला कहकर याद करते होंगे? अगर यह सब जानते हुए भी मैं सभी के सामने अपनी हकलाहट को छिपाने की कोशिश करूं तो इसमें कौन-सी बहादुरी है?
मैं हमेशा इसी भ्रम में जीता रहूं कि लोगों के सामने हकलाहट को छिपाकर बहुत नेक काम कर रहा हूं। इससे दूसरे लोगों को सुकून मिलेगा, तो यह सोच मुझे और ज्यादा कमजोर बनाएगी।
आप खुद दूसरों के सामने बोलें कि हां, मैं हकलाता हूं! तो इससे आपकी मजबूती और बढ़ेगी। और लोगों को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। वस्तुतः अधिकांश व्यक्तियों को इससे कोई सरोकार नहीं कि आप कैसे बोल रहे हैं। वे तो सिर्फ आपकी बात को ठीक तरह से सुनना व समझना चाहते हैं।
अपने मन से भ्रम का चश्मा निकालने की जरूरत है। इस गलतफहमी में रहना बेकार है कि सब लोग आपकी हकलाहट के बारे में जानते ही नहीं? या फिर आप छिपाने में इतने माहिर हैं कि लोगों को पता ही नहीं चलता! आप लाख कोशिश कर लें हकलाहट को हाइड करने की, लेकिन हर बार, हर समय यह कतई संभव नहीं।
मैं अपना जाब ज्वाइन करने के चार माह तक सहकर्मियों से हकलाहट को छिपाने की भरसक कोशिश करता रहा। इस डर से कि उन्हें पता न चले कि मैं हकलाता हूं। इसके बाद मैंने हकलाहट पर आफिस के लोगों का इंटरव्यू लेना शुरू किया। तब मुझे पता चला कि मैं लगातार छिपाने की कोशिश करने के बाद भी हकलाहट को लोगों के सामने आने से नहीं रोक पाया। फिर भी इस भ्रम में जीता रहा कि शायद लोगों को मेरी हकलाहट के बारे में अहसास न हुआ होगा?
जिन्दगी में भ्रम में होना भी बहुत जरूरी है। अगर आपको यह पता चल जाए कि आपकी पत्नी, बच्चे, भाई, बहन, रिश्तेदार और दोस्त अपने मन में आपके बारे में क्या-क्या उठपटांग सोचते हैं तो सारे रिश्ते ही खत्म हो जाएंगे। लेकिन हकलाहट के मामले में ऐसा नहीं होगा। जब आप लोगों को बताएंगे कि आप हकलाते हैं, लोगों को खुलकर हकलाकर दिखाएंगे कि आप ऐसे हकलाते हैं, तो आपका मन शांत हो जाएगा। और लोगों को आपकी हकलाहट के बारे में ज्यादा सोचने, विचारने और आपस में बातचीत करने का मौका खत्म हो जाएगा। वे समझ जाएंगे कि आप हकलाहट को लेकर कमजोर नहीं हैं। फिर वे आपकी कोई दूसरी कमी खोजना शुरू करेंगे। और यही आपकी जीत होगी।
मान लीजिए आप अपने लिए जीवनसाथी की तलाश में हैं। यदि पहली मुलाकात में आपने यह बता दिया कि हकलाते हैं तो यह आपके लिए बेहतर होगा। वहीं अगर आप हकलाहट को छिपाने की कोशिश करेंगे तो यह दीर्घकाल में पीड़ादायी हो सकता है। आप हमेशा इस भ्रम में जीते रहेंगे कि आपके होने वाले जीवनसाथी को आपकी हकलाहट का पता चला होगा या नहीं? और अगर शादी होने के बाद आपके लाइफ पार्टनर को आपकी हकलाहट नागवार गुजरी तो रिश्ते में कड़वाहट आना तय मानिए।
इसलिए यह जरूरी है कि सारे भ्रम को तोड़ा जाए। लोगों को खुलकर बताया जाए अपनी हकलाहट के बारे में। जब कोई व्यक्ति चश्मा लगाता है तो लोग देखते ही पहचान लेते हैं कि आंखों में कोई परेशानी होगी, लेकिन हकलाहट के मामले में ऐसा नहीं होता। जब तक आप वार्तालाप नहीं करेंगे तब तक सामने वाला व्यक्ति समझ हीं नहीं पाएगा।
कुछ लोग हकलाहट को छिपाने के लिए सिर्फ हां/न में ही बात करना ज्यादा पसंद करते हैं। इशारों का अनावश्यक रूप से अधिक इस्तेमाल करते है। इंदौर स्वयं सहायता समूह के एक सदस्य अवधेशप्रताप सिंह ने एक मजेदार वाक्या सुनाया था।
अवधेश इंदौर में एक स्थान पर खड़े थे और उन्हें लिफट लेनी थी। उन्होंने अपने हाथ की तीन उंगलियों को अर्ध खोलाकार घूमाते हुए इशारा किया। सामने से बाइक पर आता हुआ व्यक्ति समझ गया कि इन्हें तीन पुलिया नामक जगह पर जाना हैं। उसने गाड़ी रोकी, लिफ्ट दी और कहा- क्या सटीक इशारा किया है भाई। मान गए।
वास्तव में हकलाहट को छिपाने की प्रवृत्ति हमें तरह-तरह के इशारे करना सिखा देती है। यह स्थिति हमारी दिनचर्या में तो उपयोगी होती है, लेकिन हर तरह के कम्प्यूनिकेशन में यह सफल नहीं हो पाती। इसका बस एक ही तरीका हे, भ्रम से बाहर निकलना। भ्रम को तोड़ना और खुलकर हकलाना।
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अमित 09300939758
धीरे-धीरे वह व्यक्ति इस चश्मे को लेकर बहुत परेशान लगता है। पत्नी, बच्चे, रिश्तेदार, पड़ोसी और परिचित उसके बारे में क्या-क्या अप्रिय सोचते हैं यह बात जानकर बहुत दुःखी होता हैं और अंत में उस चश्मे को त्याग देता है।
‘‘अरे! वह हकला अमित कई दिनों से दिखा नहीं।’’ यह वाक्य शायद मेरे परिचित/दोस्त कभी इस्तेमाल करते होंगे? मुझे हकला कहकर याद करते होंगे? अगर यह सब जानते हुए भी मैं सभी के सामने अपनी हकलाहट को छिपाने की कोशिश करूं तो इसमें कौन-सी बहादुरी है?
मैं हमेशा इसी भ्रम में जीता रहूं कि लोगों के सामने हकलाहट को छिपाकर बहुत नेक काम कर रहा हूं। इससे दूसरे लोगों को सुकून मिलेगा, तो यह सोच मुझे और ज्यादा कमजोर बनाएगी।
आप खुद दूसरों के सामने बोलें कि हां, मैं हकलाता हूं! तो इससे आपकी मजबूती और बढ़ेगी। और लोगों को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। वस्तुतः अधिकांश व्यक्तियों को इससे कोई सरोकार नहीं कि आप कैसे बोल रहे हैं। वे तो सिर्फ आपकी बात को ठीक तरह से सुनना व समझना चाहते हैं।
अपने मन से भ्रम का चश्मा निकालने की जरूरत है। इस गलतफहमी में रहना बेकार है कि सब लोग आपकी हकलाहट के बारे में जानते ही नहीं? या फिर आप छिपाने में इतने माहिर हैं कि लोगों को पता ही नहीं चलता! आप लाख कोशिश कर लें हकलाहट को हाइड करने की, लेकिन हर बार, हर समय यह कतई संभव नहीं।
मैं अपना जाब ज्वाइन करने के चार माह तक सहकर्मियों से हकलाहट को छिपाने की भरसक कोशिश करता रहा। इस डर से कि उन्हें पता न चले कि मैं हकलाता हूं। इसके बाद मैंने हकलाहट पर आफिस के लोगों का इंटरव्यू लेना शुरू किया। तब मुझे पता चला कि मैं लगातार छिपाने की कोशिश करने के बाद भी हकलाहट को लोगों के सामने आने से नहीं रोक पाया। फिर भी इस भ्रम में जीता रहा कि शायद लोगों को मेरी हकलाहट के बारे में अहसास न हुआ होगा?
जिन्दगी में भ्रम में होना भी बहुत जरूरी है। अगर आपको यह पता चल जाए कि आपकी पत्नी, बच्चे, भाई, बहन, रिश्तेदार और दोस्त अपने मन में आपके बारे में क्या-क्या उठपटांग सोचते हैं तो सारे रिश्ते ही खत्म हो जाएंगे। लेकिन हकलाहट के मामले में ऐसा नहीं होगा। जब आप लोगों को बताएंगे कि आप हकलाते हैं, लोगों को खुलकर हकलाकर दिखाएंगे कि आप ऐसे हकलाते हैं, तो आपका मन शांत हो जाएगा। और लोगों को आपकी हकलाहट के बारे में ज्यादा सोचने, विचारने और आपस में बातचीत करने का मौका खत्म हो जाएगा। वे समझ जाएंगे कि आप हकलाहट को लेकर कमजोर नहीं हैं। फिर वे आपकी कोई दूसरी कमी खोजना शुरू करेंगे। और यही आपकी जीत होगी।
मान लीजिए आप अपने लिए जीवनसाथी की तलाश में हैं। यदि पहली मुलाकात में आपने यह बता दिया कि हकलाते हैं तो यह आपके लिए बेहतर होगा। वहीं अगर आप हकलाहट को छिपाने की कोशिश करेंगे तो यह दीर्घकाल में पीड़ादायी हो सकता है। आप हमेशा इस भ्रम में जीते रहेंगे कि आपके होने वाले जीवनसाथी को आपकी हकलाहट का पता चला होगा या नहीं? और अगर शादी होने के बाद आपके लाइफ पार्टनर को आपकी हकलाहट नागवार गुजरी तो रिश्ते में कड़वाहट आना तय मानिए।
इसलिए यह जरूरी है कि सारे भ्रम को तोड़ा जाए। लोगों को खुलकर बताया जाए अपनी हकलाहट के बारे में। जब कोई व्यक्ति चश्मा लगाता है तो लोग देखते ही पहचान लेते हैं कि आंखों में कोई परेशानी होगी, लेकिन हकलाहट के मामले में ऐसा नहीं होता। जब तक आप वार्तालाप नहीं करेंगे तब तक सामने वाला व्यक्ति समझ हीं नहीं पाएगा।
कुछ लोग हकलाहट को छिपाने के लिए सिर्फ हां/न में ही बात करना ज्यादा पसंद करते हैं। इशारों का अनावश्यक रूप से अधिक इस्तेमाल करते है। इंदौर स्वयं सहायता समूह के एक सदस्य अवधेशप्रताप सिंह ने एक मजेदार वाक्या सुनाया था।
अवधेश इंदौर में एक स्थान पर खड़े थे और उन्हें लिफट लेनी थी। उन्होंने अपने हाथ की तीन उंगलियों को अर्ध खोलाकार घूमाते हुए इशारा किया। सामने से बाइक पर आता हुआ व्यक्ति समझ गया कि इन्हें तीन पुलिया नामक जगह पर जाना हैं। उसने गाड़ी रोकी, लिफ्ट दी और कहा- क्या सटीक इशारा किया है भाई। मान गए।
वास्तव में हकलाहट को छिपाने की प्रवृत्ति हमें तरह-तरह के इशारे करना सिखा देती है। यह स्थिति हमारी दिनचर्या में तो उपयोगी होती है, लेकिन हर तरह के कम्प्यूनिकेशन में यह सफल नहीं हो पाती। इसका बस एक ही तरीका हे, भ्रम से बाहर निकलना। भ्रम को तोड़ना और खुलकर हकलाना।
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अमित 09300939758
2 comments:
मै भी यह चश्मा पहन चुका हूं बरसों...
अब यकीन नही आता कि दिमाग का ये छोटा सा खेल समझने मे मुझे बरसो लग गये..! अब लगता है कि मेरा अहम (कि मै औरो से ज्यादा अक्लमंद हूँ) ही सबसे बडी रुकावट थी; मेरे दिल मे यकीन था कि औरों का चाहे जो हो- मेरा हकलाना छुपा छुपा कर एक दिन बिल्कुल ठीक हो जाएगा !!
sahi hai
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