- अनिल गुहार, बैतूल, मध्यप्रदेश
साथियों मैं टीसा का नया सदस्य हूं। पहली बार अप्रैल 2013 में हरबर्टपुर पर आयोजित कार्यशाला में शामिल हुआ। कार्यशाला से मुझे क्या-क्या फायदे हुए और कार्यशाला ने मेरे जीवन में क्या-क्या परिवर्तन किए इसे मैं कुछ बिन्दुओं में सहेजना चाहता हूं:-
1. टीसा की कार्यशाला में हकलाने वाले कई लोगों को देखकर यह हिम्मत बंधी कि मैं अकेला नहीं हूं, जो हकलाहट का सामना कर रहा हूं। मेरे जैसे और भी कई लोग हैं।
2. वर्कशाप में हकलाने के बारे में सही जानकारी मिली, स्पीच तकनीक का इस्तेमाल करना, और हकलाहट की स्वीकार्यता के बारे में विचार-विमर्श हुआ।
3. कार्यशाला हकलाहट को एक व्यापक रूप में और सकारात्मक दृष्टि से स्वीकार करने का मौका देती है। हम इसे एक विविधता के रूप में स्वीकार करना सीखते हैं।
4. हरबर्टपुर तक जाने के लिए रेल और बस का सफर भी काफी ज्यादा यादगार रहा। प्राकृतिक सौन्दर्य को करीब से निहारने का अवसर प्राप्त हुआ।
5. उत्तराखण्ड के लोगों, संस्कृति और खानपान को देखने-जानने का भी अवसर मिला।
6. कार्यशाला ने हकलाहट पर सही तरीके से कार्य करने की जानकारी और हिम्मत दोनों दी।
7. सचिन सर के मार्गदर्शन और उनकी सलाह से मैं काफी प्रभावित हुआ।
कार्यशाला से लौटने के बाद परिवर्तन -
1. कार्यशाला से आने के बाद अब मैं अपनी हकलाहट को छिपाने की कोशिश नहीं करता। मैं खुद ही कह देता हूं कि हां, मैं हकलाता हूं।
2. खुद आग होकर अनजान लोगों से हकलाहट के बारे में बातचीत करता हूं।
3. हकलाहट को लेकर पहले की तरह डर, शर्म और आत्मग्लानि की भावना अब खत्म हो चुकी है।
4. स्पीच तकनीक के उपयोग से अब मैं पहले से कहीं ज्यादा बेहतर ढंग से दूसरे लोगों से और फोन पर संचार/बातचीत कर पा रहा हूं।
5. कार्यशाला ने एक व्यवस्थित दिनचर्या अपनाने और योग/प्राणायाम करने के लिए मुझे अग्रसर किया है।
6. मेरा जीवन कहीं अधिक सकारात्मक और आशा से भरपूर हो गया है।
7. मैं हर काम को दुगने उत्साह से करता हूं।
दोस्तों ये कुछ खास बिन्दुओं के माध्यम से मैंने कार्यशाला में शामिल होने के फायदे और उसके बाद जीवन में आए बदलाव पर चर्चा की है। वास्तव में कार्यशाला ने मेरे जीवन में चमत्कार कर दिया है, जिसे शब्दों वर्णन नहीं किया जा सकता।
साथियों मैं टीसा का नया सदस्य हूं। पहली बार अप्रैल 2013 में हरबर्टपुर पर आयोजित कार्यशाला में शामिल हुआ। कार्यशाला से मुझे क्या-क्या फायदे हुए और कार्यशाला ने मेरे जीवन में क्या-क्या परिवर्तन किए इसे मैं कुछ बिन्दुओं में सहेजना चाहता हूं:-
1. टीसा की कार्यशाला में हकलाने वाले कई लोगों को देखकर यह हिम्मत बंधी कि मैं अकेला नहीं हूं, जो हकलाहट का सामना कर रहा हूं। मेरे जैसे और भी कई लोग हैं।
2. वर्कशाप में हकलाने के बारे में सही जानकारी मिली, स्पीच तकनीक का इस्तेमाल करना, और हकलाहट की स्वीकार्यता के बारे में विचार-विमर्श हुआ।
3. कार्यशाला हकलाहट को एक व्यापक रूप में और सकारात्मक दृष्टि से स्वीकार करने का मौका देती है। हम इसे एक विविधता के रूप में स्वीकार करना सीखते हैं।
4. हरबर्टपुर तक जाने के लिए रेल और बस का सफर भी काफी ज्यादा यादगार रहा। प्राकृतिक सौन्दर्य को करीब से निहारने का अवसर प्राप्त हुआ।
5. उत्तराखण्ड के लोगों, संस्कृति और खानपान को देखने-जानने का भी अवसर मिला।
6. कार्यशाला ने हकलाहट पर सही तरीके से कार्य करने की जानकारी और हिम्मत दोनों दी।
7. सचिन सर के मार्गदर्शन और उनकी सलाह से मैं काफी प्रभावित हुआ।
कार्यशाला से लौटने के बाद परिवर्तन -
1. कार्यशाला से आने के बाद अब मैं अपनी हकलाहट को छिपाने की कोशिश नहीं करता। मैं खुद ही कह देता हूं कि हां, मैं हकलाता हूं।
2. खुद आग होकर अनजान लोगों से हकलाहट के बारे में बातचीत करता हूं।
3. हकलाहट को लेकर पहले की तरह डर, शर्म और आत्मग्लानि की भावना अब खत्म हो चुकी है।
4. स्पीच तकनीक के उपयोग से अब मैं पहले से कहीं ज्यादा बेहतर ढंग से दूसरे लोगों से और फोन पर संचार/बातचीत कर पा रहा हूं।
5. कार्यशाला ने एक व्यवस्थित दिनचर्या अपनाने और योग/प्राणायाम करने के लिए मुझे अग्रसर किया है।
6. मेरा जीवन कहीं अधिक सकारात्मक और आशा से भरपूर हो गया है।
7. मैं हर काम को दुगने उत्साह से करता हूं।
दोस्तों ये कुछ खास बिन्दुओं के माध्यम से मैंने कार्यशाला में शामिल होने के फायदे और उसके बाद जीवन में आए बदलाव पर चर्चा की है। वास्तव में कार्यशाला ने मेरे जीवन में चमत्कार कर दिया है, जिसे शब्दों वर्णन नहीं किया जा सकता।
3 comments:
anil ji ko positive badlaw ke liye bahut bahut badhaee ....keep practicing keep sharing
अनिल जी, अपने अनुभव साझा करने के लिये शुक्रिया । और टीसा कार्यशाला मे सीखे हुए को दैनिक जीवन मे अपनाते रहें । यदि बेतुल मे प्रतीक, मनोज (participant of june workshop)और आप मिलकर SHG Meeting शुरु कर सके तो और भी कई लोग टीसा से जुड सकते हैं ।
बैतुल मे एक एस एच जी की शुरुआत आप के इन बदलावों को और स्थाई स्वरूप देगी और इस प्रक्रिया को आगे भी ले जाएगी..मिलजुल कर प्रयास करें.. यह तीसा के प्रति बडा योगदान होगा..
Post a Comment