हकलाने वाला व्यक्ति हमेशा इस बात को लेकर परेशान रहता है कि वह इलाज के लिए कहां जाए? दुर्भाग्यवश इंटरनेट और मीडिया पर हकलाहकट के बारे में अधिकतर जानकारी भ्रामक और असत्य मिलती है। इधर हाल के वर्षों में कुछ फर्जी और अयोग्य स्पीच थैरेपिस्ट ने धन कमाने के लिए हकलाहट को क्योर करने का भ्रमजाल फैला रखा है।
ऐसी स्थिति में हकलाने वाला व्यक्ति ठगा जाता है। वह इधर से उधर सालों तक "क्योर" की तलाश में भटकता रहता है। अपना समय और धन दोनों बर्बाद करके भी धाराप्रवाह बोलना नहीं सीख पाता।
मेडिकल साइंस हकलाहट का क्योर तो नहीं खोज पाया है, लेकिन स्पीच थैरेपी एक बेहतर विकल्प के रूप में अपनाई जा सकती है। आप एक योग्य स्पीच थैरेपिस्ट के सम्पर्क में रहकर उसके सामने स्पीच तकनीकों का अभ्यास कर सकते हैं, अपनी गलतियों को जान कर उसमें सुधार कर सकते है।
हालांकि टीसा की सेल्फ हेल्प की अवधारणा का एक वैज्ञानिक आधार है और स्वयं सहायता समूह कारगर है। फिर भी अगर आप चाहें तो अपने आसपास एक अच्छे स्पीच थैरेपिस्ट का चुनाव कर लाभ उठा सकते हैं। हम दावा नहीं करते की स्पीच थैरेपिस्ट आपको धाराप्रवाह बोलना सिखा देंगे, लेकिन इन्हें आजमाने में कोई बुराई नहीं है, क्योंकि यह मेडिकल साइंस में मान्य है।
कौन है स्पीच थैरेपिस्ट?
भारत में, हकलाने वाले व्यक्तियों को स्पीच थैरेपी देने के लिए कोई अगल से कोर्स नहीं है। डिप्लोमा, बीएससी और एमएससी लेवल के कई कोर्स संचालित हैं। इसमें बोलने, सुनने और भाषा संबंधी समस्याओं का बारीकी से अध्ययन करवाया जाता है।
कौन है स्पीच थैरेपिस्ट?
भारत में, हकलाने वाले व्यक्तियों को स्पीच थैरेपी देने के लिए कोई अगल से कोर्स नहीं है। डिप्लोमा, बीएससी और एमएससी लेवल के कई कोर्स संचालित हैं। इसमें बोलने, सुनने और भाषा संबंधी समस्याओं का बारीकी से अध्ययन करवाया जाता है।
हकलाना, तुतलाना और अन्य दूसरी वाणी संबंधी परेशानियों को भी इन्हीं कोर्स में शामिल किया गया है।
हकलाने के अलावा बधिरों, मानसिक मंद व्यक्तियों, पक्षाघात के मरीजों, दुर्घटना में दिमाग पर चोट / क्षतिग्रस्त होने पर भी स्पीच थैरेपी की जरूरत पड़ती है। यानी स्पीच थैरेपी कई प्रकार के लोगों को दी जाती है।
कोर्स को पूरा करने के बाद भारतीय पुनर्वास परिषद, नईदिल्ली प्रोफेशनल के रूप में मान्यता प्रदान करता है। एक पंजीयन प्रमाण पत्र और नम्बर दिया जाता है। इस प्रमाण पत्र को प्राप्त करने के बाद ही कोई व्यक्ति स्पीच थैरेपिस्ट के रूप में काम कर सकता है।
वहीं दूसरी ओर बिना कोर्स किए और मान्यता प्राप्त किए बगैर अगर कोई व्यक्ति स्पीच थैरेपी देता है तो उसे भारतीय पुनर्वास परिषद अधिनियम 1992 के अनुसार 1 साल की सजा और 1 हजार रूपए जुर्माना या दोनों हो सकता है।
सही स्पीच थैरेपिस्ट कहां मिलेंगे?1. सरकारी अस्पताल और सरकार द्वारा संचालित संस्थानों में जाकर जानकारी लें। वहां पर अगर स्पीच थैरेपी की सुविधा उपलब्ध है तो बहुत ही कम फीस पर आप इसका लाभ उठा सकते हैं।
2. परमार्थिक यानी चैरेटिबल अस्पतालों पर खोजने से कम फीस पर सही स्पीच थैरेपिस्ट मिल सकते है।
3. भारत के कई जिलों में जिला विकलांग पुनर्वास केन्द्र और क्षेत्रीय विकलांग पुनर्वास केन्द्र स्थापित हैं। वहां पर स्पीच थैरेपी की सुविधा अनिवार्य रूप से मिलती है, वह भी बहुत कम फीस पर।
4. विकलांगता के क्षेत्र में कार्यरत कई राष्ट्रीय संस्थान और उनके क्षेत्रीय केन्द्रों पर भी यह सुविधा उपलब्ध है।
वहीं दूसरी ओर बिना कोर्स किए और मान्यता प्राप्त किए बगैर अगर कोई व्यक्ति स्पीच थैरेपी देता है तो उसे भारतीय पुनर्वास परिषद अधिनियम 1992 के अनुसार 1 साल की सजा और 1 हजार रूपए जुर्माना या दोनों हो सकता है।
सही स्पीच थैरेपिस्ट कहां मिलेंगे?1. सरकारी अस्पताल और सरकार द्वारा संचालित संस्थानों में जाकर जानकारी लें। वहां पर अगर स्पीच थैरेपी की सुविधा उपलब्ध है तो बहुत ही कम फीस पर आप इसका लाभ उठा सकते हैं।
2. परमार्थिक यानी चैरेटिबल अस्पतालों पर खोजने से कम फीस पर सही स्पीच थैरेपिस्ट मिल सकते है।
3. भारत के कई जिलों में जिला विकलांग पुनर्वास केन्द्र और क्षेत्रीय विकलांग पुनर्वास केन्द्र स्थापित हैं। वहां पर स्पीच थैरेपी की सुविधा अनिवार्य रूप से मिलती है, वह भी बहुत कम फीस पर।
4. विकलांगता के क्षेत्र में कार्यरत कई राष्ट्रीय संस्थान और उनके क्षेत्रीय केन्द्रों पर भी यह सुविधा उपलब्ध है।
5. कई निजी हास्पिटल पर भी स्पीच थैरेपिस्ट हैं। वहां ज्यादा शुल्क देना पड़ता है।
ध्यान दें - इंटरनेट पर भ्रामक विज्ञापन या जानकारी देकर 15 दिन या एक महीने में हकलाहट को क्योर करने या धाराप्रवाह बोलना सिखाने का दावा करने वाले लोगों से सावधान रहें!
ध्यान दें - इंटरनेट पर भ्रामक विज्ञापन या जानकारी देकर 15 दिन या एक महीने में हकलाहट को क्योर करने या धाराप्रवाह बोलना सिखाने का दावा करने वाले लोगों से सावधान रहें!
2 comments:
अच्छी और सही जानकारी के लिये धन्यवाद!
मगर एक सच्चाई और सामने आई है- हकलाना संभवत: स्पीच डिसआर्डर न होकर एक मनोवैग्यानिक समस्या ज्यादा है, और शायद इसीलिये सपीच थिरैपी इसमे कम ही कामयाब होती है, रिलैप्स बार बार होते रहते हैं- इसके बहुत से उदाहरण तीसा मे मौजूद हैं..
एक और मत है जिसके अ्नुसार हकलाना एक DIVERSITY है जिसे अनावश्यक रूप से मेडिकलाइज किया गया है और सम्भवत: इसी लिये इसका इलाज इतना मुशकिल है..
ज्यादातर PWS चाहते है कि उन्हेँ लोग बस ध्यान से सुन लें- वे प्राय: CURE नही, समाज मे acceptance चाहते है..यह एक सामाजिक बदलाव के बगैर न होगा और इसके लिये PWS को ही काम करना पडेगा, ऐसा लगता है..
धन्यवाद - इस सामयिक लेख के लिये.
महात्मा गाँधी ने कहा था- जहाँ अकेले आदमी की ताकत प्रभावी नहीं हो रही हो, वहाँ समूह मे लडना ज्यादा प्रभावी होता है ।
और हकलाहट भी ठीक ऐसी ही है ।
स्पीच थेरेपी तो किसी भी बडे सरकारी अस्पताल से ली जा सकती है पर उस को व्यावहारिक जीवन मे ढालने के लिये समूह की जरुरत पडेगी ही, नही तो थेरेपी कुछ दिनो मे भुला दी जाती है । इसलिये टीसा से जुडे और अपनी तकनीको का रोज अभ्यास करे चाहे फ़ोन पर या SHG meetings मे, या Comm.workshops मे या national conference मे .
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